अकावतीक खिस्सा

स्रोत: सुभाषचंद्र झा, सहरसा द्वारा पठायल गेल एक पेपर कटिंगakavatik khissa

(संभवत: दैनिक जागरण मे प्रकाशित मैथिली हास्य-परिहास लेख)

लेखक – केदार कानन

अकावतीक खिस्सा

अकावती मसोमातक खिस्सा मोन पड़ैत अछि। छोट रही तँ पीसी कहैत छलि जे एक दिन नौ बजे राति मे अकावती मरि गेली। आंगन मे कन्नारोहट शुरु भेल। दू-तीन घंटा कानला बाद सभ क्यो लहास के अगोरने भोर कयलक। दोसर दिन एगारह बजे सभ क्यो अकावतीक खाट पर लदने कबरगाह गेल। माटि कोड़ल जाय लागल। आब अकावती के माटि तर मे देबाक तैयारी शुरुए भेल रहय कि ओ या अल्लाह या अल्लाह कहैत उठि क बैसि गेली।

अधिकांश लोक भूत-भूत कहैत कबरगाह सँ पड़ायल। सभके चकबिदोर लागि गेलै, ई कोना भेलै आखिर? मुदा धीरे-धीरे सब किछु सामान्य भेल आ लोक मानि लेलक जे अकावतीक औरदा खटायल नहि रहै तें घुरि क चलि आयल। अकावती सेहो रस ल क खिस्सा सुनबैत छलि। हम सभ पुछियै – दीदी कोना घुरि क चल अयलीह गै? अकावती कहब शुरु करय –

‘बौआ गेलियै ने अल्लाह मियां के घर तँ ओ कहलखिन – अकावती एतेक सकाले तों कियैक आबि गेलही। एखन तोहर टेम नहि भेल छौ। एखन जो। हम की करितियै? बौआ भरि राति तैँ बाटि मे लागि गेल। एहि जग्गह तों ओ छैक। जगमग करैत इजोत। खूब नीक-नीकुत खाय लेल मिलल। पानि केहन मीठ रहै, की कहबौ। तेहने महमह करैत फूल-पातीक जंगल। पहाड़-नदी। कलकल-छलछल करैत पानि। ह’ ह’ कए बहैत हवा। मोन नै होय जे गाम घुरी। लेकिन अल्लाह मियां के हुकुम रहै, जो, तोहर टेम नहि पुरलौ-ए। तैं बौआ, आब पड़लै। कहि क’ अकावती चुप भ’ जाइ। फेर सबहक चेहरा पर पसरल विस्मय-शंका-जिगेय्सा देखि तरे-तर मुस्की छोड़य। फेर आंगन मे बैसि ओ भरि पेट खाय आ लाठीक बलें ठुक-ठुक करैत अपन घर चलि जाय। ई लगभग प्रत्येक दुपहरियाक खिस्सा रहैक आ हमर सभक मनोरंजनक हिस्सा। ओ जहिया आबय हम सभ यैह प्रश्न पुछियै आ ओकर सधल सम्हरल यैह उत्तर होइत छलै। हम सभ जनै छी जे निष्प्राण रोगी के सांस बन्न भेला पर मुंह मे मुंह द क सांस देल जाइ छै, छाती पर मशीन सँ दबाव देल जाइत छै आ एहि क्रिया सँ कोनो-कोनो रोगीक सांस घुरि अबैत छैक, देह मे प्राण घुरि अबैत छैक। एहिना किछु अकावतीक संग भेल हेतैक की? ओकर टूटल सांसक ताग फेर कोना जुड़ि गेलैक, से सोचि आइयो छगुन्ता लगैत अछि। अल्लाह मियांक घर सँ घुरलाक बाद तीन चारि वर्ट ओ आरो एहि नश्वर जीवनक भोग केलनि। अपन सुख सेहन्ता पूरा केलनि। आइ एते दिनक बाद अकावती दीदी कियैक मोन पड़लीह, नहि जानि। भूकंप मे एतेक रास भेल असामयिक आ दर्दनाक मृत्युक हाहाकार तँ नहि एकर कारण थिक…..।