एक आरो प्रसंग पर लिखय सँ अपना केँ नहि रोकि सकलहुँ आइ…. पहिने कहि देने छी जे लिखबाक बहुत बात अछि, बहुत रास सामग्री गाम सँ बटखर्चाक रूप मे अनने छी। ई प्रसंग अछि जे विगत १५ दिन मे बहुत रास नव-नव घटना घटल जाहि मे दैनिक जागरण द्वारा मैथिली केँ ‘हम हैं हिन्दी’ (हिन्दीक साहित्यिक कार्यक्रम) मे ‘बोली बिना भाषा सूना’ शीर्षक अन्तर्गत तुच्छ सहभागिता देल गेल आर ताहि मे माननीय वरिष्ठ साहित्यकार विभूति आनन्द (Bibhuti Anand) सर केर नाम विमर्शीक तौर पर प्रचारित कयल गेलन्हि। हालांकि विभूति आनन्द सर सँ आयोजक नहिये कोनो पूर्व सहमति लेलक, नहिये कोनो सल्लाह केलक जे एहि तरहक विमर्श मे ओ विमर्शी बनताह, मैथिलीक प्रतिनिधित्व करताह वा नहि। बात कोना न कोना सोशल मीडिया पर खूब आगि जेकाँ पसरल आ जतेक गणमान्य लोक सब छथि, खासकय जे फेसबुक पर एक्टिव छथि ओ सब कियो एहि कार्यक्रम सँ मैथिली प्रति दुर्भावना आ ‘बोली’ कहिकय नीचाँ देखेबाक कुत्सित कार्य भेल ई निर्णय लेल गेल। स्वयं विभूति आनन्द सर एहि तरहक कार्यक्रम मे सहभागिता नहि देबाक आ बहिष्कार करबाक घोषणा कय देलन्हि। बात बढैत गेल…. अनन्त विजय नाम्ना संपादक (दैनिक जागरण) स्वयं ४५ मिनट धरि मारिते रास प्रलोभन-स्रलोभन सेहो देलखिन विभूति सर केँ मुदा…. चन्द्र टरे सूरज टरे, टरे जगत् व्यवहार - पै दृढव्रत हरिश्चन्द्र को, टरे न सत्य विचार – यैह कहाबत मुताबिक श्री विभूति आनन्द साफ मना कय देलन्हि भाग लेबय सँ आ प्रतिकार करबाक – बहिष्कार करबाक नीति पर सेहो अटल रहला।
सोशल मीडिया केर न्याय अपना तरहक होएत छैक, लेकिन से न्याय लोकन्याय जेकाँ मानल जाएछ। कतहु-कतहु बात बुझबाक या बात ग्रहण करबा मे सेहो गलती होयबाक कारणे उल्टा-पुल्टा परिणाम सेहो एलैक अछि, लेकिन तैयो पब्लिक जँ गलते बुझि लेलक आ राजा प्रतापभानु केँ श्राप दय देलक त हुनका रावण बनिकय अपन श्राप सँ मुक्ति लेल रामक हाथें मारल जाहे पड़तन्हि। मुदा दैनिक जागरण केर उपरोक्त केस मे मैथिलीभाषी अपन १९२५ सँ २००३ केर आखिर धरिक संघर्षक ताप फेर अनुभव कयलन्हि आ हिन्दीक बोली सँ ऊबार पेलाक बाद फेरो अनन्त विजय समान अति-होशियार मीडियाबाज केर फेर मे फँसय सँ साफ मना करैत उल्टा एहि कार्यक्रमक बहिष्कारक निर्णय कयलन्हि। मुदा अनन्त विजय – एक चलल अखबारक संपादक… ओ एक दिन लेल हारि मानि लेलनि, मैथिली केँ ओहि ‘बोली बिना भाषा सूना’ सँ हँटा देल गेल, पुनः तेकर ऐगला दिन कोनो मैथिलहि केर चढेला-बढेला आ अपनहि मुद्दा केँ अपनहि शत्रु बनि हेरेबाक दोगलइ केर कारण ऐगला दिन फेरो अखबार मे विज्ञापन दैत विभूति आनन्द सर केर स्थान पर पटना युनिवर्सिटी केर एक मैथिली प्रोफेसर कोनो वीरेन्द्र झा नाम्ना व्यक्ति केँ नाम राखि ताहि कार्यक्रम मे मैथिली केँ यथावत् राखल गेल। ओहो! फेर कि छल! एक त मैथिल ओहिना विदेहक सन्तान, देहक कोनो खासे चिन्ता नहि…. मुदा जखन कियो देहे पर मूतत तखन त मूतनिहारक हथियार नहि छपैट लेलक मैथिल त अहाँ जे कहू!
दैनिक जागरण द्वारा दोबारा मैथिली केँ शामिल केलापर ओकर विरोध तेहेन आगिक लपट जेकाँ मैथिलक जनमानस मे पसरल जे सीधा ओहि कार्यक्रमक गेट सँ लैत सभागार धरि पटना मे पहुँचि ताहि प्रोफेसर साहेबक मुंह मे कारी चून लगा देल गेल। लोक सब ई कहैत ओ कारी चून लगौलक जे मना केलाक बादो बात नहि बुझलिहीन रे परफेस्सर… आब ले… ई भोग। अनन्त विजयक सब धाही अपनहि पछुऐत मे घुसैड़ गेल। खचरय केर सीमा नंघनाइ मैथिल जनमानस संग केहेन होएत छैक से तुरन्ते पता लागि गेलनि। हौ भाइ! विध्वंस एतुका लोकक बाइन नहि, मुदा एना जे देह पर मुतबहक तखन त….! हिहिहि!! केहनो लोक रहबहक सोझाँ…. बुझि जाह। सुनने नहि छहक ओ खिस्सा…. जानकीजी भले अपना मोने गेलीह रामजी संगे वनवास…. मुदा मिथिला मे ई खबरि कनेक घुमाकय आयल छलैक। एतय बात पहुँचलैक जे भरत केँ राजा बनेबाक लेल ई सब षड्यन्त्र कयल गेल अछि। पहुँच गेल छलैक तिरहुतिया सेना अयोध्या…. हाहाहा! बुझहक एहि सब बातक अर्थ। ई ठट्ठा थोड़े न रहैक। ओ त भने स्वयं रामजी आ समस्त प्रजा लोकनि सब जखन असलियत बतेलक तखन जा कय बात थोड़ थाम भेलैक। अनन्त विजय या कोनो मीडिया आ कि केहनो शक्ति…. डोन्ट प्रोवोक मैथिल्स इन सच एन अगली वे! अंगिका केँ भाषा बनेबाक लेल मैथिल मात्र सक्षम अछि। षड्यन्त्रपूर्वक अपमानक मार्ग आ कि नीचाँ देखेबाक तरीका सँ मैथिली केँ हिन्दीक बोली अंगिकाक पैरेलल जुनि करू। अपन सामर्थ्यक विकास करू बरु!
एम्हर एकटा छींट भाइ छथि, ओ आइ-काल्हि मैथिलहि केर टीक मे टीक ओझड़ाबैत अपन पुरान बाइन सँ निजात नहि पाबि सकलाह अछि। पद्मश्री डा. उषा किरण खान केर एक कार्यक्रमक शान्तिपूर्ण बहिष्कार केर विरोध मे जे आगि उगलब ओ शुरू कयलन्हि, चेतना समितिक ऊपर टीका-टिप्पणी प्रतिकूल माहौल मे शुरू कयलन्हि, फेर अपने इच्छे वोमिटींग करैत अन्टू-शन्टू लिखब शुरू कयलन्हि से जारी छन्हि। जारी राखथि। धरि टैगासुर बनिकय जे सभक ध्यान खींचि फूसिक बहस केँ आगाँ करैत मूल मुद्दा आ मैथिलक ध्रुवीकरण केँ तोड़य चाहि रहला अछि से गलत अछि। हिनका जेहेन छींटखोपड़ी सँ समस्त मैथिल अभियानी केँ सतर्क रहब जरूरी अछि। ई हिनकर बहुत पुरान आदति रहलनि अछि। उषा मैडम स्वयं आन्दोलनक धार केँ स्वीकार करैत अपन स्थिति स्पष्ट कयलीह, लेकिन ई चुगलबाज सब एक-दोसरा केँ अपनहि मे फेरो भिड़ाबय लेल अथक प्रयास करब शुरू कय देलनि अछि। सावधान रहय जाउ। नाम आ काम दुनू नकली!
तहिना किछु लोक बेसुरा राग अलापैत वगैर समुचित जानकारी आ अध्ययन मैथिलीभाषी लेल प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली पर सेहो अनाप-सनाप लिखब शुरू कय देने छथि। कियो मैथिली केर पढौनी एक भाषा विषयक रूप मे स्वीकार्य कहैत छथि, कियो ई पुछैत फिरैत छथि जे जँ माध्यम मैथिली भऽ जायत तऽ किनकर-किनकर बच्चा पढत… आदि। ई सब वैह छींटखोपड़ी टाइपक लोक सब छथि जिनका ‘मैथिल’ पहिचान सँ बड बेस ‘बिहारी’ पहिचान मे सन्तोष भेटैत छन्हि। मैथिली भाषा मरि जाय, जरि जाय… जे होइ… हिनका कि! जे सब माध्यम मैथिली हो कहि रहला अछि तिनकर विषय एहेन भटकल लोकक वांछित मैथिली विषयक पढौनी सँ नितान्त अलग छन्हि। ओ भाषाक पढाई टा नहि, प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली एहि लेल चाहैत छथि जे एना केला सँ साक्षरता बढतैक, आइ जे पढाइ-लिखाइ सँ डेराइत छैक से नहि डरेतैक, सभक बच्चा केँ पढय मे सहजता हेतैक। विश्व समुदाय द्वारा एहि मादे अनेकों शोध करायल गेलैक। स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा एहि सम्बन्ध मे दुइ गोट निर्णय देल गेल छैकः
संयुक्त राष्ट्र संघ केर एक रिपोर्ट मे दू बात सोझाँ आयल –
१. अधिकांश बच्चा स्कूल जाय सँ कतराइत अछि कियैक तँ ओकर शिक्षाक माध्यम ओ भाषा नहि छैक जे भाषा घर मे बाजल जाइत अछि।
२. संयुक्त राष्ट्र संघ केर बाल अधिकारक घोषणा पत्र मे सेहो यैह कहल गेल छैक जे बच्चा केँ ओही भाषा मे शिक्षा प्रदान कयल जाइक जे भाषाक प्रयोग ओकर माता-पिता, दादा-दादी, भाइ-बहिन व सारा पारिवारिक सदस्य करैत होएथ।
बिना समुचित अध्ययनक अपनहि इच्छे फेसबुक समान सामाजिक संजालक महत्वपूर्ण पटल पर हुले-ले-हुले-ले केने फिरब केकरो कल्याण नहि कय रहल अछि। नुकसान सँ बचाउ, लाभ अर्जित करू। शुभकामना!
हरिः हरः!!