तनुजाक ‘रोचक संस्मरण’ मे काज कयनिहाइर पिंकी संग मधुबनीक भेंट

कथा-संस्मरण

– तनुजा दत्ता

साल भरिक बाद सासुर जेबाक मौका भेटल । गेला पर सब किछ बदलल-बदलल बुझाइत रहय । कमेनहाइर सेहो बदलि गेल छलीह ।
‎….. ‘भाभी! अहाँ सब बच्चा केँ ल क छत पर जाउ, हम बर्तन माँजि दय छी’ ई हमर ननदि के स्वर छलैन्ह । हम कहलियन्हि ‘कियैक से किरण नहिं अओतीह?’। ‘नहिं भाभी! ओ सासुर चलि गेलय से दोसर पिंकी केँ राखि लेलियय’। हम अपना तरफ सँ आग्रह केलियैन्ह जे अहाँ बच्चा सब ल क छत पर जाउ । हम बर्तन माँजि क अबैत छी ।
 
‎…हम बरतन सब समेट क माँजऽ बैसलहुँ, तखने १४-१५ सालक लड़की आबि क हमरा बगल में ठाढ़ भऽ गेलीह । चूँकि हुनका हम पहिने नहिं देखने रहियैन्ह, नहिं ओ हमरा, ताहि द्वारे चिन्हबाक कोनो सवाले नहिं रहय ।
….लेकिन हम हुनकर भाव सँ बुझि गेलियैन्ह जे ई हमरा बारे में जानय लेल उत्सुक छथि । उत्सुकता केँ यथावत् करय लेल हम बरतन पर जोर द-द कय माँजय लगलहुँ ।….
 
‘आँइ यै! एतय अहाँ काज करय छियैय’ हम मुड़ी झुकौने जवाब देलियैन्ह ‘हँ’ । जाबैत हम किछु आर सोचितहुँ ताबैत दोसर सवाल हुनका तरफ सँ और भेल। ‘कतेक दै है क’, ‘दु सैय’ ई हमर तरफ सँ जवाब छलैन्हि । ‘आँइ यै! दू सैय मे कि सब करय छियैय? रोटियो बनबैत हेबय?’ कहलियन्हि ‘हँ’ । तुरत मे फेर तेसर सवाल भेल ‘अहाँ कतऽ के छियैय’ चूँकि मधुबनी में रहला सँ बहुत जगहक जानकारी हमरा भऽ गेल रहैय, तैं हुनकर उत्सुकता केँ शांत करय मे हम सक्षम भेलहुँ ।
‎…’महाराज गंज’ बरतन पर जोर दैत हम बजलियैन्ह । ‘आँइ यै! महाराज गंज मे कोन दिस? पुबरिया कि पछबरिया?’ । …’पछबरिया’ हमर जवाब छलैय । आगु तँ आउर कठिन सवाल छलैय । …’आँइ यै! मर्दबा की करै है क? कमाइयऽ’ हम ‘हँ’ मे मुड़ी झुला देलियैन्ह । ‘कतऽ? पिंजाब में?’ हुनकर सवाल छलैन्ह ‘नँय! राजस्थान में’ प्रत्युत्तर देलियैन्ह ।
…तखने छत पर सँ हमर दुनु बच्चा, भगिना सब उतरलाह । …आब हुनक जिग्यासा और बढ़ि गेलैन्ह । ‘ई सब बच्चा अहीं के छी, कोना क पालैत हेबय?’ । कखनो बच्चा सब दिस कखनो हमरा दिस तकैत कहलखिन्ह । …’मर्दबा छोड़ि देने है क’ मोन में कहलहुँ एखन तँ छोड़नहिं छथि । कहलियैन्ह ‘ हँ’ । अगिला सवाल रहैय । ‘आँइ यै! बच्चा सब ल क अहिठाम रहैत हेबय?’ । बिना मुँह खोलने कहलियैन्ह ‘हँ’।
 
‎…..हमर जवाब सँ आश्वस्त भ गेला पर ओ अपन दु:ख सुनबय लगलीह । ‘दीदी कतेक काज लैय है क, खनि कहतय पानि भर, खनि कहतय झाड़ू लगा, की कहु हाथ दुखा जाइत अछि’ । हुनकर दु:ख सुनि क हमरो मोन दु:खी भ गेल । …साथे ईहो खुशी रहय जे आइ अगर हम एतेक जबाब कोनो प्रतियोगिता परीक्षा में देने रैहतियैय त जरूर हम उत्तीर्ण भ गेल रहितहुँ ।
 
…. .मुँह फुला क तामसे घोर ओ छत पर गेलीह । हमरा त भेल जे दिवार मे अपन माथ फोड़ि ली, विधाता जखन मुँह बनबय छलहुँ त हमरा कियैक एहन बनेलौं ।
….ताबे छत पर सँ आवाज सुनाइ देलक ‘दीदी हम त दू दिनक छुट्टी ल क गेल रही, ताहि बीच मे दोसरी राखि लेलियय नैं?’ दीदी केर जबाब छलैन्ह ‘कहाँ गय छौंरी’ । …..’ऊ जे नीचा में बरतन मजै है क से?’ आब दीदी के तामस उठनाइ वाजिब छलैन्ह । ‘हइ छौंरी, देख तऽ सपरतीब एहि छौंड़िया केर, बजैत एको रती लाजो नहि भेलौ, ओ हमर भौजी छथिन्ह।’ आब त पिंकी दाइ केँ ऊपर सँ नीचाँ आबय मे एक-एक डेग मे बहुते भारी वजन बुझा रहल छलैन । कियैक त ओ हमरा सँ मोनक बहुत बात बता चुकल छलीह । कनखिया कऽ हमरा दिस तकलैथ, हमहूँ आँखि सँ हुनका निश्चिंत कऽ देलियैन्ह ।
 
….मोन में ई सोचैत दू टा पाइ कमाइ लय पिंकी कतेक मेहनत करैत छथि । जे अवस्था में हुनका शिक्षाक जरूरत छैन्ह, माँ-बाप घरक काज मे लगा कय जीवन बर्बाद कऽ रहल छथिन्ह।
लेखिका परिचयः
नामः श्रीमती तनुजा दत्ता
जन्मतिथिः १० – १० – १९६७
योग्यताः हिंदी विषय सँ स्नातक
ग्राम – नैहर – काको आ सासुर – जितवारपुर
तनुजाजी मैथिली जिन्दाबाद केँ अपन परिचय उपलब्ध करबैत कहैत छथि, “लेखिकाक रूप मे हमर एतबे परिचय अछि जे ई हमर शुरुआत अछि । एहिना फेसबुक में किछ-किछ लिखैत रहय छी । Tanuja’sDiary’ नाम सँ पेज बनेने छी । जाहि में अपन स्वतंत्र अभिव्यक्ति केर विभिन्न कथा-व्यथा सब लिखैत रहैत छी । मैथिली मे ई हमर पहिल रचना अछि । सराहना आ समर्थन भेटत त आगुओ मन मे बहुत किछ अछि जे लिखय चाहैत छी । अखबार मे सेहो हमर लेख सब प्रकाशित होइत रहैत अछि । बेसीकाल सामाजिक, राजनीतिक आ महिला सँ सम्बन्धित लेख सब हिन्दुस्तान आ जनसत्ता सब मे प्रकाशित होएत रहैत अछि ।