आध्यात्म
– प्रवीण नारायण चौधरी
द्वादश ज्योतिर्लिंगः मल्लिकार्जुन व महाकाल नामक ज्योतिर्लिंग केर आविर्भावक कथा तथा हुनक महिमा
(शिव-पुराण मे वर्णित)
सूतजी कहैत छथि – महर्षिगण! आब हम मल्लिकार्जुनक प्रादुर्भावक प्रसङ्ग सुनबैत छी, जे सुनिकय बुद्धिमान् पुरुष सब पाप सँ मुक्त भऽ जाइत अछि। जखन महाबली तारकाशत्रु शिवापुत्र कुमार कार्तिकेय समूचा पृथ्वीक परिक्रमा कय केँ फेर कैलास पर्वतपर एलाह आर गणेशक विवाह आदिक बात सुनिकय क्रौञ्च पर्वतपर चलि गेलाह, पार्वती आ शिवजीक ओतय जाकय अनुरोध कयलापर पर्यन्त नहि लौटलाह आ फेर ओतय सँ आरो बारह कोस दूर चलि गेलाह, तखन शिव आ पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारण कयकेँ ओतय प्रतिष्ठित भऽ गेलाह। ओ दुनू पुत्रस्नेहसँ आतुर भऽ पर्वक दिन अपन पुत्र कुमार केँ देखबाक लेल हुनका पास जायल करैत छथि। अमावस्याक दिन भगवान् स्वयं ओतय जाइत छथि आ पौर्णमासीक दिन पार्वतीजी निश्चय टा ओतय पदार्पण करैत छथि। ताहि दिन सँ लय केँ भगवान् शिवक मल्लिकार्जुन नामक एक लिंग तिनू लोक मे प्रसिद्ध भेल। (ओहि मे पार्वती आ शिव दुनूक ज्योति प्रतिष्ठित अछि। ‘मल्लिका’क अर्थ पार्वती थिक आर ‘अर्जुन’ शब्द शिव केर वाचक थिक।) एहि लिंगक जे दर्शन करैत अछि, ओ समस्त पाप सँ मुक्त भऽ जाइत अछि आर सम्पूर्ण अभीष्ट केँ प्राप्त कय लैत अछि। एहि मे संशय नहि छैक। एहि तरहें मल्लिकार्जुन नामक द्वितीय ज्योतिर्लिंगक वर्णन कयल गेल, जे दर्शनमात्र सँ लोकक लेल सब प्रकारक सुख देनिहार कहल गेल छथि।
ऋषि लोकनि कहलखिन – प्रभो! आब अहाँ विशेष कृपा कयकेँ तेसर ज्योतिर्लिंग केर वर्णन कयल जाउ।
सूतजी कहलखिन – ब्राह्मण लोकनि! हम धन्य छी, कृतकृत्य छी, जे अहाँ श्रीमान लोकनिक संग हमरा प्राप्त भेल। साधु पुरुषक संग निश्चय टा धन्य अछि। तैँ हम अपन सौभाग्य बुझिकय पापनाशिनी परम पावनी दिव्य कथाक वर्णन करैत छी। अहाँ लोकनि आदरपूर्वक सुनू। अवन्ति नाम सँ प्रसिद्ध एकटा रमणीय नगरी अछि, जे समस्त देहधारी सब केँ मोक्ष प्रदान करयवाली अछि। ओ भगवान् शिवकेँ बहुते प्रिय, परम पुण्यमयी आ लोकपावनी छन्हि। ओहि पुरी मे एकटा श्रेष्ठ ब्राह्मण रहैत छलाह, जे शुभकर्मपरायण, वेदादिक स्वाध्याय मे संलग्न तथा वैदिक कर्म आदिक अनुष्ठान मे सदा तत्पर रहयवला छलाह। ओ घर मे अग्निक स्थापना कयकेँ प्रतिदिन अग्निहोत्र करथि आर शिवक पूजा मे सदिखन तत्पर रहैत छलाह। ओ ब्राह्मण देवता प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकय ओकर पूजा कयल करथि। वेदप्रिय नामक ओ ब्राह्मण देवता सम्यक् ज्ञानार्जन मे लागल रहल करथि, ताहि लेल ओ सम्पूर्ण कर्म सभक फल पाबिकय सद्गति प्राप्त कय लेलनि, जे संतहि सबकेँ सुलभ होएत छैक। हुनक शिवपूजापरायण चारि तेजस्वी पुत्र छलखिन्ह, जे पिता-माता सँ सद्गुणमे कम नहि छलाह। हुनकर नाम – देवप्रिय, प्रियमेधा, सुकृत आर सुव्रत छलन्हि। हुनका लोकनिक सुखदायक गुण ओतय सदिखन बढय लागल। हुनकहि कारण अवन्ति नगर ब्रह्मतेज सँ परिपूर्ण भऽ गेल छल।
ओहि समय रत्नमाल पर्वतपर दूषण नामक एक धर्मद्वेषी असुर द्वारा ब्रह्माजी सँ वर पाबिकय वेद, धर्म तथा धर्मात्मा लोकनिपर आक्रमण कयल गेल। अन्तमे ओ सेना लय केँ अवन्ति (उज्जैन) केर ब्राह्मण लोकनिपर सेहो चढाई कय देलक। ओकरहि आज्ञा सँ चारि भयानक दैत्य चारि दिशा मे प्रलयाग्निक समान प्रकट भऽ गेल, मुदा ओ शिवविश्वासी ब्राह्मण-बन्धु ओकरा भयभीत नहि भेलाह। जखन नगरक ब्राह्मण बहुते घबरा गेलाह, तखन ओ हुनका लोकनि केँ आश्वासन दैत कहलन्हि – ‘अपने सब भक्तवत्सल भगवान् शंकर पर भरोसा राखी।’ से कहि शिवलिंग केर पूजन कयकेँ ओ भगवान् शिवक ध्यान करय लगलाह।
एतबा मे सेनासहित दूषण आबिकय ओहि ब्राह्मण सब केँ देखलक आ कहलक – ‘एकरा सबकेँ मारि दे, बान्हि दे।’ वेदप्रियक पुत्र ओ ब्राह्मण लोकनि ओहि समय ओहि दैत्यक कहल गेल ओहि बात केँ नहि सुनलन्हि; कियैक तँ ओ भगवान् शम्भुक ध्यान-मार्ग मे स्थित छलाह। ओहि दुष्टात्मा दैत्य जखनहि ओहि ब्राह्मण लोकनि केँ मारबाक इच्छा केलक, तखनहि हुनका द्वारा पूजित पार्थिव शिवलिंग केर स्थान पर बड़ा भारी आवाज संग एकटा खधारि प्रकट भऽ गेल। ओहि खधारि सँ तत्काल विकटरूपधारी भगवान् शिव प्रकट भऽ गेलाह, जे महाकाल नामसँ विख्यात भेलाह। ओ दुष्ट सभक विनाशक तथा सत्पुरुष लोकनिक आश्रयदाता बनलाह। ओ ओहि दैत्य सभसँ कहलन्हि – “अरे खल! हम तोरा-जेहेन दुष्टक लेल महाकाल प्रकट भेलहुँ अछि। तूँ एहि ब्राह्मण लोकनिक पास सँ दूर भागि जो।” एना कहिकय महाकाल शंकर द्वारा सेनासहित दूषण केँ अपन हुंकारमात्र सँ तत्काल भस्म कय देलनि। किछु सेना हुनका द्वारा मारल गेल आर किछु भागि गेल। परमात्मा शिव दूषण केर वध कय देलनि। जेना सूर्यकेँ देखिकय सम्पूर्ण अन्धकार नष्ट भऽ जाइत अछि, ओहि प्रकार सँ भगवान् शिव केँ देखिकय ओकर सब सेना अदृश्य भऽ गेल। देवता लोकनिक दुन्दुभी सब बाजय लागल आर आकाश सँ फूलक बरखा होमय लागल। ओहि ब्राह्मण लोकनि केँ आश्वासन दय सुप्रसन्न होएत स्वयं महाकाल महेश्वर हुनका सबसँ कहलन्हि – “अहाँ सब वर माँगू!” हुनक ताहि बात केँ सुनिते सब ब्राह्मण हाथ जोड़िकय भक्तिभाव सँ यथोचित प्रणाम कयकेँ नतमस्तक होएत बजलाह –
“महाकाल! महादेव!! दुष्ट सबकेँ दण्ड देनिहार प्रभो! शम्भो! अहाँ हमरा सबकेँ संसारसागर सँ मोक्ष प्रदान करू। शिव! अहाँ जनसाधारणक रक्षाक लेल सदिखन एतहि रहू। प्रभो! शम्भो!! अपनेक दर्शन करयवला मनुष्य सब केँ अहाँ सदिखन उद्धार करू।”
सूतजी कहैत छथि, “महर्षि लोकनि! हुनक एना कहलाक बाद हुनका लोकनि केँ सद्गति दय भगवान् शिव अपन भक्तक रक्षाक लेल ओहि परम सुन्दर खद्धा मे स्थित भऽ गेलाह। ओ ब्राह्मण लोकनि मोक्ष पाबि गेलाह आर ओतय चारू कातक एक-एक कोस भूमि लिंगरूपी भगवान् शिव केर स्थल बनि गेल। ओ शिव भूतलपर महाकालेश्वर केर नाम सँ विख्यात भेलाह। ब्राह्मण लोकनि! हुनकर दर्शन कयला सँ सपनहुँ मे कोनो दुःख नहि होइत अछि। जाहि-जाहि कामना केँ लयकेँ कियो ओहि लिंगक उपासना करैत अछि, ओकर ओ अपन मनोरथ प्राप्त भऽ जाइत छैक तथा परलोक मे मोक्ष सेहो भेट जाइत छैक।
(शिवपुराण अध्याय १५-१६)
क्रमशः…. बाकीक द्वादश ज्योतिर्लिंग केर कथा निरन्तरता मे प्रकाशित होयत।
हरिः हरः!!