मनुस्मृति मे नारी प्रति प्रकट उद्गार
– लेखकः संजीव नेवार – अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी

मनुस्मृति मे कयल गेल प्रक्षेपण केँ हम पहिल लेख मे देखिये चुकल छी, संगहि हम सब ईहो जनलहुँ जे एहि नकली श्लोक सभक आसानी सँ पहिचान करैत अलग कयल जा सकैत अछि । प्रक्षेपणरहित मूल मनुस्मृति, महर्षि मनु केर अत्यंत उत्कृष्ट कृति अछि । वेदक बाद मनुस्मृति टा स्त्री केँ सर्वोच्च सम्मान और अधिकार दैत अछि । आजुक अत्याधुनिक स्त्रीवादी सेहो एहि उच्चता धरि पहुँचय मे नाकाम रहला अछि ।
मनुस्मृति ३.५६ – जाहि समाज या परिवार मे स्त्रिगणक आदर – सम्मान होइत अछि, ओतय देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़ – समृद्धि निवास करैत अछि । आर, जतय हिनकर आदर – सम्मान नहि होएछ, ओतय अनादर करनिहारक सबटा काज निष्फल भऽ जाइत छैक, भले ओ कतबो श्रेष्ठ कर्मक कय लियअ, ओकरा बहुतहि दुःखक सामना करहे टा पड़ैत छैक ।
ई श्लोक केवल स्त्रीजाति केर प्रशंसा करबाक लेल टा नहि अछि बल्कि ई कठोर सच्चाई थिक जेकरा महिला लोकनिक अवमानना करनिहार केँ ध्यान मे रखबाक चाही आर जे मातृशक्तिक आदर करैत अछि ओकरा लेल त ई शब्द अमृत केर समान अछि । प्रकृति केर ई नियम पूरे सृष्टि मे हरेक समाज, हरेक परिवार, देश तथा पूरे मनुष्य जाति पर लागू होइत अछि ।
हमरा लोकनि एहि लेल परतंत्र भेलहुँ जे हम सब महर्षि मनु केर एहि परामर्श केँ सदी-सदीकाल धरि अवमानना केलहुँ । आक्रमणक बादहु हम सब नहि सुधरलहुँ आर परिस्थिति बद सँ बदतर होइत चल गेल । १९म शताब्दीक अंत मे राजा राम मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्या सागर और स्वामी दयानंद सरस्वती केर प्रयत्न सँ स्थिति मे सुधार भेल आर हमरा लोकनि वेदक सन्देश केँ मानब स्वीकार केलहुँ ।
कतेको संकीर्ण मुस्लिम देश मे आइयो स्त्रिगण सब केँ पुरुष संग समझदारी मे आधाक बराबर मानैत अछि आर पुरुष सब केँ जे अधिकार प्राप्त अछि तेकर तुलना मे स्त्री केँ आधा पर टा अधिकार बुझल जाइत अछि । परिणामस्वरूप एहेन स्थान नर्क सँ सेहो बदतर बनि गेल अछि । यूरोप मे तँ सदी-सदी धरि बाइबिल केर अनुसार स्त्रिगणक अवमाननाक पूर्ण प्रारूप टा केर अनुसरण कयल गेल । ई प्रारूप अत्यंत संकीर्ण और शंकाशील छल ताहि हेतु यूरोप अत्यंत संकीर्ण और संदेह केँ पालयवाली जगह भेल । ई तऽ सुधारवादी युग केर देन टा मानल जायत जे स्थिति मे परिवर्तन आयल और बाइबिल केर गंभीरता सँ लेनाय लोक द्वारा बंद भेल । परिणामत: तेजी सँ विकास संभव भऽ सकल । मुदा आबहु स्त्री एकटा कामना पूर्ति और भोगक वस्तु थिक नहि कि आदर और मातृत्व शक्ति केर रूप मे देखल जाइत अछि और यैह कारण छैक जे पश्चिमी समाज बाकी सब भौतिक विकास केलाक बादो असुरक्षितता और आन्तरिक शांति केर अभाव सँ संघर्ष कय रहल अछि ।
आउ, मनुस्मृति केर किछु आरो श्लोकक अवलोकन करी और समाज केँ सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाबी –
परिवार मे स्त्रिगणक महत्त्व –
३.५५ – पिता, भाइ, पति या दियर केँ अपन कन्या, बहिन, स्त्री या भाउज केँ हमेशा यथायोग्य मधुर-भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि सँ प्रसन्न रखबाक चाही आर हुनका लोकनि केँ कोनो तरहक क्लेश नहि पहुंचय देबाक चाही ।
३.५७ – जाहि कुल मे स्त्रिगण अपन पति केर गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोष सँ पीड़ित रहैत छथि, ओ कुल शीघ्र नाश केँ प्राप्त भऽ जाइत अछि आर जाहि कुल मे स्त्रिगण पुरुष सभक उत्तम आचरण सँ प्रसन्न रहैत छथि, से कुल सर्वदा बढ़ैत रहैत अछि ।
३.५८ – अनादर केर कारण जे स्त्रिगण पीड़ित और दुःखी भऽ पति, माता-पिता, भाइ, दियर आदि केँ शाप दैत छथि वा हुनका लोकनिक निन्दा करैत रहैत छथि – ओ परिवार एना नष्ट भऽ जाइत छैक जेना पूरा परिवार केँ विष दय केँ मारय सँ, एक्के बेर मे सभक सब मरि जाइत अछि ।
३.५९ – ऐश्वर्य केर कामना करयवाला मनुष्य केँ हमेशा सत्कार और उत्सव केर समय मे स्त्रिगण केँ आभूषण, वस्त्र, और भोजन आदि सँ सम्मान करबाक चाही ।
३.६२ – जे पुरुष, अपन पत्नी केँ प्रसन्न नहि रखैछ, ओकर पूरा परिवारे अप्रसन्न और शोकग्रस्त रहैत छैक । और जँ पत्नी प्रसन्न अछि तऽ सारा परिवार खुशहाल रहैत छैक ।
९.२६ – संतान केँ जन्म दय केँ घर केर भाग्योदय करनिहाइर स्त्रिगण सम्मान केर योग्य और घर केँ प्रकाशित करयवाली होइत छथि । शोभा, लक्ष्मी आर स्त्री मे कुनू अंतर नहि छैक । एतय महर्षि मनु हुनका लोकनि (स्त्रिगण) केँ घरक लक्ष्मी कहैत छथि ।
९.२८ – स्त्री सभ प्रकार केर सुख केँ देनिहाइर छथि । चाहे संतान हो, उत्तम परोपकारी कार्य हो या विवाह या फेर जेठजनक सेवा – ई सब सुख़ स्त्रिगण टा केर अधीन अछि । स्त्री कखनहुँ मां केर रूप मे, कखनहुँ पत्नी और कखनहुँ अध्यात्मिक कार्य केर सहयोगीक रूप मे जीवन केँ सुखद बनबैत अछि । एकर मतलब भेल जे स्त्री केर सहभागिता कोनो धार्मिक और अध्यात्मिक कार्य केर वास्ते अति आवश्यक अछि ।
९.९६ – पुरुष और स्त्री एक-दोसराक बिना अपूर्ण अछि, अत: साधारण सँ साधारण धर्मकार्यक अनुष्ठान तक पति-पत्नी दुनू केँ मिलिकय करबाक चाही ।
४.१८० – एक समझदार व्यक्ति केँ परिवार केर स्त्री सदस्य लोकनि – यथा माता, पुत्री और पत्नी आदि केर संग बहस या झगडा नहि करबाक चाही ।
९.४ – अपन कन्या केँ योग्य वर सँ विवाह नहि कराबयवला पिता, पत्नी केँ उचित आवश्यकता केँ पूरा नहि करयवला पति और विधवा माता केर देखभाल नहि करयवला पुत्र – निंदनीय होइत छथि ।
बहुविवाह पाप थिक –
९.१०१ – पति आर पत्नी दुनू आजीवन साथ रहथि, व्यभिचार सँ बचथि, संक्षेप मे यैह समस्त मानवक धर्म थिक ।
अत: धर्म केर एहि मूल तत्त्व केर अवहेलना कयकेँ जे समुदाय – बहुविवाह, अस्थायी विवाह और कामुकता केर लेल गुलामी इत्यादि केँ ज़ायज ठहराबयवला अछि – ओ अपने-आप पतन और विनाश केर दिशा मे जा रहल अछि ।
स्त्रिगणक स्वाधिकार –
९.११ – धन केँ संभारब आर ओकर व्यय केर जिम्मेदारी, घर और घर केर पदार्थक शुद्धि, धर्म और अध्यात्म केर अनुष्ठान आदि, भोजन पकेनाय और घर केँ पूरा सार-संभार मे स्त्री केँ पूर्ण स्वायतता भेटबाक चाही आर ई सबटा काज हुनकहि मार्गदर्शन मे होबक चाही ।
एहि श्लोक सँ ओ भ्रांति धारणा निर्मूल भऽ जाइत अछि जे स्त्रिगण समाज वैदिक कर्मकांड केर अधिकार नहुि रखैत छथि । एकर विपरीत हुनका लोकनि केँ एहि अनुष्ठान सबमे अग्रणी राखल गेल अछि आर जे लोक स्त्रिगणक एहि अधिकारक हनन करैत छथि – ओ वेद, मनुस्मृति और पूरे मानवता केर ख़िलाफ़ छथि ।
९.१२ – स्त्रिगण आत्म नियंत्रण टा सँ कोनो खराबी सँ बचि सकैत छथि, कियैक तँ विश्वसनीय पुरुष (पिता, पति, पुत्र आदि) द्वारा घर मे रोकल गेली अर्थात् निगरानी मे राखल गेली स्त्रिगण सेहो असुरक्षित छथि (बुराइ सँ नहि बचि सकैत छथि) । जे स्त्रिगण अपन रक्षा स्वयं अपनहि सामर्थ्य और आत्मबल सँ कय सकैत छथि, यथार्थतः वैह टा सुरक्षित रहैत छथि ।
जे लोक स्त्रिगणक सुरक्षाक नामपर हुनका लोकनि केँ घरहि मे रखनाय पसिन करैत छथि, हुनकर एहेन सोचनाय व्यर्थ अछि । एकर बदला स्त्रिगण केँ उचित प्रशिक्षण तथा सही मार्गदर्शन भेटक चाही जाहि सँ ओ अपन बचाव अपनहि कय सकथि आर गलत बाट पर नहि जाइथ। स्त्रिगण केँ चहारदिवारी मे बन्द रखनाय महर्षि मनु केर पूर्णतः विपरीत अछि ।
स्त्रिगणक सुरक्षा –
९.६ – एक दुर्बल पति केँ सेहो अपन पत्नीक रक्षा केर यत्न करबाक चाही ।
९.५ – स्त्रिगण चरित्रभ्रष्टता सँ बचथि कियैक तँ जँ स्त्रिगण आचरणहीन भऽ जेतीह तँ सम्पूर्ण समाजे विनष्ट भऽ जाइत छैक ।
५.१४९ – स्त्री हमेशा स्वयं केँ सुरक्षित राखथि । स्त्रीक हिफ़ाजत – पिता, पति और पुत्र केर दायित्व होएछ ।
एकर मतलब ई नहि जे मनु स्त्री केँ बंधन मे राखय चाहैत छथि । श्लोक ९.१२ मे स्त्रिगण केर स्वतंत्रताक लेल हुनकर विचार स्पष्ट छन्हि । ओ एतय स्त्रिगणक सामाजिक सुरक्षाक बात कय रहल छथि । कियैक तँ जे समाज, अपन स्त्रिगणक रक्षा विकृत मनोवृत्तिक लोक सँ नहि कय सकैछ, ओ अपनो सुरक्षित नहि रहैछ ।
ताहि लेल जखन पश्चिम और मध्य एशिया केर बर्बर आक्रमणकारी हमरा लोकनिक सभ्यता-समाजपर आक्रमण केलक तखन हमरा सभक शूरवीर द्वारा माय-बहिनक सम्मान केर लेल अपन प्राण तक न्यौछावर कय देलनि । महाराणा प्रताप केर शौर्य और आल्हा-उदल केर बलिदानक कथा आइयो हमरा सबकेँ गर्व सँ भैर दैत अछि ।
हमरा लोकनिक संस्कृति केर एहि महान इतिहासक बादो यदि हम सब आइ स्त्रिगण केँ या तऽ घर मे बन्द कय केँ रखैत छी या हुनका सब केँ भोग-विलासक वस्तु मानिकय हुनकर व्यापारीकरण कय रहल छी, जँ स्त्रिगणक सम्मानक रक्षा करबाक बदला हुनका लोकनिक विश्वास केँ अहिना आहत करैत रहब त हमरा सभक विनाश सुनिश्चित अछि ।
विवाह –
९.८९ – भले आजीवन कन्या पिताक घरहि मे बिना ब्याहले बैसल रहय मुदा गुणहीन, अयोग्य, दुष्ट पुरुष केर संग विवाह कहियो नहि करय ।
९.९० – ९१ – विवाह योग्य आयु भेलाक बाद कन्या अपन सदृश्य पति केँ स्वयं चुनाव कय सकैत अछि । यदि ओकर माता-पिता योग्य वर केर चुनाव मे असफल भऽ जाइत छथि त ओ अपन पति स्वयं चुनबाक अधिकारी होइत छथि ।
भारतवर्ष मे तऽ प्राचीनकाल मे स्वयंवर केर प्रथा रहबे कयल अछि । तैँ ई धारणा जे माता-पिता टा कन्या लेल वरक चुनाव करथि, मनुक विपरीत अछि । महर्षि मनु केर अनुसार वरकचुनाव मे माता-पिता केँ कन्याक सहायता करक चाही नहि कि अपन निर्णय ओकरा ऊपर थोपक चाही, जेना कि आइ-काल्हि चलन-चल्ती मे अछि ।
संपत्ति मे अधिकार-
९.१३० – पुत्रहि केर समान कन्या सेहो होइछ, ओहि पुत्रीक रहैत कियो दोसर ओकर संपत्तिक अधिकार कियो केना छीन सकैत अछि!
९.१३१ – माताक निजी संपत्ति पर केवल ओकर कन्या टा केर अधिकार छैक ।
मनुक अनुसार पिता केर संपत्ति मे तऽ कन्याक अधिकार पुत्रक बराबर छहिये मुदा माता केर संपत्ति पर एकमात्र कन्या टा केर अधिकार छैक । महर्षि मनु कन्याक लेल ई विशेष अधिकार एहि वास्ते दैत छथि जाहि सँ ओ केकरहु दया पर नहि रहय, ओ ओकरा स्वामिनी बनाबय चाहैत छथि, याचक नहि । कियैक तँ एक समृद्ध और खुशहाल समाज केर नींव स्त्रिगणक स्वाभिमान आर हुनक प्रसन्नता पर टिकल अछि ।
९.२१२ – २१३ – यदि कोनो व्यक्तिक सम्बन्धी या पत्नी नहि हो तँ ओकर संपत्ति केँ भाइ आ बहिन मे समान रूप सँ बांटि देबाक चाही । यदि बड़ भाइ, छोट भाइ – बहिन केँ ओकर उचित भाग नहि दैछ त ओ कानूनन दण्डनीय अछि ।
स्त्रिगणक सुरक्षा केँ आरो अधिक सुनिश्चित करैत, मनु स्त्रीक संपत्ति केँ अपन कब्जा मे लेनिहार, चाहे कियो ओकर अपनहि लोक कियैक नहि हो, ओकरा लेल कठोर दण्डक प्रावधान करैत छथि।
८.२८- २९ – अकेली स्त्री जेकर संतान नहि हो या जेकर परिवार मे कियो पुरुष नहि बचल हो या विधवा हो या जेकर पति विदेश मे रहैत हो या जे स्त्री बीमार हो तऽ एहेन स्त्रीक सुरक्षाक दायित्व शासन केर थिक | और यदि ओकर संपत्ति केँ ओकर सम्बन्धी या मित्र चोरी (अपहरण) करैछ तँ शासन ओकरा कठोर दण्ड दय केँ, ओकरा ओकर संपत्ति वापस दियाबय ।
दहेज़ केर निषेध –
३.५२ – जे वर केर पिता, भाइ, सगा-सम्बन्धी आदि लोभवश, कन्या या कन्या पक्ष सँ धन, संपत्ति, वाहन या वस्त्र लय केँ उपभोग करैत जियैत अछि ओ महा नीच लोक होइछ ।
एहि तरहें, मनुस्मृति विवाह मे कोनो तरहक लेन-देन केर पूर्णत: निषेध करैत अछि जाहि सँ केकरो मे लालचक भावना नहि रहय आर स्त्रीक धन कियो लेबाक हिम्मत नहि करय ।
एहि सँ आगूवला श्लोक तऽ कहैत अछि जे विवाह मेे कोनो वस्तु केर अल्पमात्रा पर्यन्त लेनदेन बेचब आ कीनब टा होइत छैक जे कि श्रेष्ठ विवाहक आदर्श केर विपरीत अछि । एतय तक कि मनुस्मृति तँ दहेज सहित ओहि विवाह केँ दानवी या आसुरी विवाह कहने अछि ।
स्त्रिगण केँ पीड़ित कयलापर अत्यंत कठोर दण्ड –
८.३२३- स्त्रिगणक अपहरण करनिहार केँ प्राण दण्ड देबाक चाही ।
९.२३२- स्त्रिगण, बच्चा और सदाचारी विद्वानक हत्या करयवला केँ अत्यंत कठोर दण्ड देबाक चाही ।
८.३५२- स्त्रिगण पर बलात्कार करयवाला, ओकरा उत्पीडित करयवाला या व्यभिचार मे प्रवृत्त करयवालाकेँ आतंकित करऽवला भयानक दण्ड दी जाहि सँ कियो दोसर एहि तरहक विचारे सँ काँपि उठय ।
एहि संदर्भ मे एक सत्रन्यायाधीश द्वारा बलात्कार केर अत्यधिक बढ़ैत मामिला केँ देखैत कहल गेल जे एहि तरहक घृणित अपराध वास्ते अपराधी केँ नामर्द बना देनाय टा सही सजा लगैत अछि ।
देखू – http://timesofindia.indiatimes.com/india/Castrate-child-rapists-Delhi-judge-suggests/articleshow/8130553.
और हम सब सेहो कानून मे एहने प्रावधानक समर्थक छी ।
८.२७५- माता, पत्नी या बेटी पर झूठक दोष लगाकय अपमान करयवला केँ दण्डित कयल जेबाक चाही ।
८.३८९- माता-पिता, पत्नी या संतान केँ जे बिना कोनो गंभीर कारणहि छोड़ि दियए, ओकरा दण्डित कयल जेबाक चाही ।
स्त्रिगण केँ प्राथमिकता –
स्त्रिगण केँ प्राथमिकता ( लेडिज फर्स्ट ) केर जनक महर्षि मनु मात्र छथि ।
२.१३८- स्त्री, रोगी, भारवाहक, अधिक आयुवला, विद्यार्थी, वर और राजा केँ पहिने रास्ता देबाक चाही ।
३.११४- नवविवाहिता, अल्पवयीन कन्या, रोगी और गर्भिणी स्त्रिगण केँ, आयल अतिथि सब सँ पहिने भोजन करेबाक चाही ।
आउ, महर्षि मनु केर एहि सुन्दर उपदेश केँ अपनाकय समाज,राष्ट्र तथा सम्पूर्ण विश्व केँ सुख़-शांति और समृद्धि केर दिशा मे बढाबी ।
संदर्भ – डा.सुरेन्द्र कुमार, पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय और स्वामी दयानंद केर कार्य ।