(पार्श्व ध्वनि – तर्ज: तन-डोले-मन-डोले पर चलि रहलैक अछि)
गीतक बोल:
तू हमर मुह पोछ, हम तोहर मुह पोछ
बस पोछिते काटब दिन हो!
मैथिल चलल बेसुरपुरिया….
सब दिन आदति रहल चोरपनिके
सोच नञि बदलल मैथिल गणके
अपन मूल सब बिसरिके बैसल
अनकर देक्सी जे फेरल सनके
हम अहाँकेँ पूछी, अहाँ हमरा पूछी,
भैर जिनगी खेलब यैह खेल यौ,
मैथिल चलल बेसुरपुरिया!!
डगर डगर बस प्रश्न भरल मन,
नहि बुझि सकल के थीक मैथिल!
दोसराके थारीक व्यंजन देखलक,
अपन जुगत लेल लिलोह मैथिल!!
चल-चल रे जवान, उठ-उठ रे जवान,
आब आरो न बैसे चुप रे,
मैथिल चलल बेसुरपुरिया!!
मस्त रही बस अपन अहं मे, देखी न आरोक देन
एहनो कहाँ छैय अपनो कीर्तिसँ, पूरा कोनो खेल-२
हम सुनरी ओ पिया सुनरी,
गामक लोक बनरा-बनरी..
खाली लागय न हमरा भूख यौ…
कोना कटत राति अन्हरिया…
तूँ हमर मुँहपूछ… मैथिल चलल बेसुरपुरिया!!
मैथिल जन जन कुदि पडल यऽ मिथिला राज संग्राम मे,
निके नीक हम देख रहल छी, मिथिला पथ मे भाई यौ,
एक-दुइ लुच्चा जँ छोडि देबय तऽ भेटतय सबटा राइट यौ
मैथिल चलल बेसुरपुरिया!!
जतय जनमली मातु जानकी सैह उठाबै प्रश्न यौ,
देख रहल छी अभियंता सब मना रहल छथि जश्न यौ,
के पूछय यऽ के सोचय यऽ सब मगन स्वयंकेर धाह यौ,
मैथिल चलल बेसुरपुरिया!!
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनल छी
रीति अपन छोड़ि कियै भागल छी
मातृभूमि ओ भाषाक दुर्गति
आनक रीति सँ चमकल छी
निज-भाषा सँ दूर सुमन
गेल भागल आँखिक नीन हो।
मैथिल चलल बेसुरपुरिया!!
सात आन्हर मैथिल केँ गामक मैनजन रूदल पासमान बजौने अछि। आइ ओहि पौराणिक कथा ‘सात आन्हर द्वारा हाथीक अलग-अलग पहिचान’ पर गुप्त रूप सँ गाम मे एकटा सभा राखल गेल अछि। लोक मे आपस मे गुनधुन चलि रहलैक अछि जे कथाक बात वास्तविक जीवन सँ अलग होइत छैक। मैनजनक कहब छैक जे एहेन संभव नहि छैक, कथा मे वास्तविकता टा रहैत छैक। एहि बातक निराकरण हेतु ई सभा बजायल गेलैक अछि। हाथीक ठाम पर कुकूर केँ राखि परीक्षण हेतैक।
मैदानक चारूकात लोकक भीड़ लागि गेल छैक। मैनजन आ ओकर समर्थक सब सेहो मचान पर बैसि गेल अछि। हुक्काक गुरगुरी आ गप-गुलछर्रा सब छूटि रहलैक अछि। मैदान सँ सटले बुढबनक एक गाछी मे पसीखाना सेहो छैक। ओकरा गामक बियर बार सेहो कहल जाइत छैक। गरै-चेंगा माछकेँ आगि पर पकाबयवाली बगल मे बैसल अछि। भीड़ मे जेबा सँ पूर्व लोक सब ओतय आबि एक-दु लवणी तारीक बोतलक हिसाबे कीनि आ माछवाली सँ किछु पकेलहा माछ कीनि चखना सहित बियर सेवन केलाक बाद माथ ठंढा राखय लेल रमदेवाक पान दोकान पर आबिकय ठंढा-ठंढा कूल तेलक एक टकही पाउच लैत सीधे अपन चूल सँ चुबय हिसाबे चोपकारि लैत अछि आ तेकर बाद मोछ पर हाथ फेरैत सब कियो मैदान पर पहुँचि जाइत अछि।
हय दे ललकारा पर ललकारा – माहौल ओहिना गरम छैक जेना मानू बड़का गामा पहलमान सब औतैक आ अखाड़ा पर कुस्ती खेलल जेतैक। वास्तव मे ई ओहि क्रीड़ा सँ कनिको कम उत्साह नहि बनौने छलैक लोक सब मे। सब उत्सुक जे देखा चाही जे पहिनुका जमाना मे हाथीकेँ छूबिकय सात गो अन्हरा सात तरहक बात केलकैक – आइ जे ई मैनजन खेल करा रहल अछि ताहि मे अन्हरा सबहक केहेन भूमिका होइत छैक। मैदानक चारूकात मानू बाजार लागि गेल छैक। मैनजनक सबसँ प्रिय गीतक कैसेट लागल छैक, ओ बेर-बेर बजायल जा रहलैक अछि आ एहि धुन पर यथार्थ मे सेहो सब मैथिल एक-दोसरक मुह पोछिकय तमशबीन बनल बैसल अछि।
ताबत घड़ीघंटा बाजय लगलैक। वार्निंग केर घंटी जेकाँ सबकेँ सावधान कैल गेलैक। मैनजनक सबसँ नजदीकी खलीफा मैथिल माइक पर जैमकय बाजनाय शुरु केलक। “आजुक एहि ‘विचित्र प्राणीक पहिचान दिवस’ पर एकत्रित ७ सूरदास सहित समस्त मुहपोछनिहार मैथिल केँ मैनजनक एहि मैदान मे हार्दिक स्वागत अछि। बस आब कनिकबा काल मे खेल शुरु होमय जा रहल अछि। एहि ७ सुरदास मे सँ जे कियो एहि विचित्र प्राणीक सही पहिचान कय लेत तिनका मैनजन रुदल पासमान केर तरफ सँ एक कट्ठा जमीनक संग बारह वर्ष धरि जतेक अनाज चाही से भेटत।”
खेलक नियम आ विचित्र प्राणीक नाम सुनिते चारू तरफ गल-गुल-गल-गुल होमय लगलैक। ततबा मे फेर ओ खलीफा मैथिल माइक पर जोर सँ बाजय लागल “हय! एकटा बात सब कियो कान खोलि कऽ सुनि लेल जाउ। कतबू मुहपोछुआ दुलार करयवला जमाना मैनजनक मिथिला मे रहय, मुदा खबरदार जे विचित्र प्राणीकेँ आँखि सँ देखनिहार केकरो मुह सँ एक शब्द निकलल जे ई कि थिकैक तऽ ओहि मनुख केँ सेहो वैह विचित्र प्राणीक रंग-रूप मे परिवर्तित कैल जयबाक रूदल पासमान मैनजनक हुक्म अछि। जिनका ई नियम पसिन हो ओ तऽ एहि ठाम एक-दोसरकेँ मुह पोछैत ई गीत सुनैत आनन्दक संग ई खेल केर मजा ली, अन्यथा समय सँ अपन घर-गाम आपस चलि जाउ।”
मुह पोछैतो लोक सबकेँ लाउडस्पीकर परका आवाज सीधा मनक भीतर जा कय बैसि गेलैक। सबकेँ पता छलैक रुदल पासमान डकैती छोड़ि बालमीकि ऋषि जेकाँ आब खाली मैनजनगिरी करैत अछि, मुदा तामश चढला पर फेर अपन रौद्र रूप सँ ओ लोक केँ दण्डित सेहो करैत अछि। रुदल पासमानेक बनायल नियम छैक जे मुह पोछैतो सही मुदा प्रेम सहित मिथिला मे रहबाक छैक। कियो एहि नियम केँ भंग नहि कय सकैत छल। एहि नियमक असैर सँ ओहि गाम-घरक क्षेत्र, कहि सकैत छी जे जतय तक रुदल पासमानक दहशैत लोक मे रहैक ओतय तक मुहपोछुआ दुलार सँ लोक तर-बतर छल आ परिणामस्वरूप जमीनी विवाद, आपसी झर-झंझैट, विवाद आदि सब ओतय किछुओ नहि होइत छलैक। आब घड़ीघण्टा फेर बाजल आ खलीफा मैथिल एनाउन्स केलक जे सातो सूरदास केँ मैदानक बीचो-बीच आनल जाय। क्रमश: सातो सूरदास मैदानक बीच दु-बगली नुआक बीच होइत ओतय एक तंबूक अन्दर सँ बाहर निकालि लोकक सोझाँ आनि देल गेल।
खेल शुरु होयत, ताहि सँ पूर्व मैनजन रूदल पासमान केँ खलीफा मैथिल बजौलक। “सरकारक मुहे एहि खेलक प्रयोजन पर दुइ शब्द सुनल जाय” कहि हुनका हाथ मे माइक देलक। रुदल पासमान बजलाह:
“समस्त ग्रामीणवासी! चारुकातक लोक! स्त्रिगण-पुरुखे आ गाछ-वृक्ष सबकेँ आइ एतेक आनन्दमग्न देखि हमहुँ गद्गद् छी। मुहपोछुआ दुलारक नियम सँ इलाका शान्तिमय अछि। हमहुँ डकैती करैत एकटा विशिष्ट परिवार मे मुहपोछुआ दुलारक नियम सिखने रही, मरबाको घड़ी ओहि परिवार मे एक-दोसर प्रति मुहपोछुआ दुलारक अवस्था सँ हम सोचलहुँ जे ई सब बेकार काज मे छी। बस सौंसे मुहपोछुआ दलारक प्रसार करैत हम ओहि डाकूक जीवन सँ तौबा कए लेलहुँ।
प्रिय सबगोटा!! जेनाकि अहुँ सब एकटा कथा सुनने हेबैक जे कोन तरहें एक्कहि हाथीकेँ सात गो अन्हरा… अहा क्षमा करब… आन्हरोक इज्जत होइत छैक, गलती भेल जे हम सीधे अन्हरा कहल… इज्जत सँ कहय लेल हिनका सबकेँ सूरदास कहल जाइछ… तऽ वैह… सूरदासजी लोकनि एक्कहि हाथीकेँ सात तरहें अलग-अलग पहचान केने छलाह। ताहि बातक परीक्षण लेल वर्तमान युगक आन्हर… अहा… सुरदासजी लोकनि कोना पहचान करैत छथि ताहि लेल एकटा विचित्र प्राणी हमरा सोझाँ आनल गेल अछि। एहि प्राणी केँ ई सातो चुनित सुरदासजी द्वारा छूबिकय बतायल जायत। जे सही-सही जबाब दऽ देता तिनका घोषणा कैल गेल इनाम देल जायत।”
चारूकात थोपड़ी बाजय लागल आ फेर सब कियो चुपचाप नियमानुसार एक-दोसरकेँ मुहपोछुआ दुलार करय लागल। पार्श्वध्वनि मे ‘तू हमर मुह पोछ…’ गीत बाजय लागल। आब पुन: रुदल पासमान माइक खलीफा मैथिल केँ हाथ मे दैत ई बाजि गेला जे पहिने लोक सबकेँ विश्वास कोना हेतैन जे ई सातो गोटा पक्का सूरदास थिकाह से परीक्षण शुरु करायल जाय।
खलीफा मैथिल माइक हाथ मे लैत सातो सूरदास केँ हाथ मे कोर्डलेस माइक देबाक घोषणा कय एक-एक गोटा सँ परिचय आ ओ सब कोना, कहिया सँ सूरदास बनलाह से बजाबय लागल। सूरदास सब अपन-अपन गाथा कहलनि, बड़ा मार्मिक गाथा छल। मुहपोछुआ दुलारक नियमानुसार एक गोटाक आवाज सुनि सब गोटा भावुक बनबाक नियम छलैक, कियो केकरो खिल्ली नहि उड़ा सकैत छल, जैह बाजल ताहि मे हँ आ चऽ-चऽ (जी आ तालूकेँ संयुक्ताभ्यास सँ विस्मयादिबोधक संबोधन) करबाक जरुरत छल। अत: प्रत्येक सूरदासक अभिव्यक्तिकेँ भरपूर सराहैत सब कियो खेल मे प्रयुक्त विचित्र प्राणीक इन्तजार करय लागल। पुन: खलीफा मैथिल ओहि विचित्र प्राणी जेकर मुँह टेप सँ बान्हि मात्र नाक साँस लेबा योग्य खोलिकय राखल गेल छलैक तेकरा हाजिर केलक आ एम्हर पब्लिककेँ चुपचाप खेल देखबाक आ नियम भंग कएला पर दण्डित होयबाक बात कहि रेफरीक रूप मे दुइ मैनजनक भतीजा जे बंगलुरु सँ आइटी ईन्जिनियरिंग केलाक बाद बेरोजगार गाम मे बैसल छल तेकरा कहलक। रुदल पासमान केँ कंप्युटर सँ बड़ प्रेम, सहजहि भातिज दुनू कंप्युटर ईन्जिनियर, ताहि हेतु जजमेन्ट लेल आ खेलक नियम ओकरहि सबहक सेटिंग सँ फिक्स कैल जेबाक निर्णय लेने छल।
सूरदास नं. ४: (कुकुरक पेट छूबिकय) – बकरी… बकरी – ई पक्का बकरी छी।
सूरदास नं. ५: (कुकुरक गर्दैन छूबिकय) – हँ-हँ सरकार, ई बकरिये छी। भले हम पहिलुकाक बाद कहलौं तैं अधे हिस्सा देब, मुदा ओ ठीके कहने छल, ई बकरिये छी। हमरा गर्दैन छुवायल। तोरा कथी छुआयल रहौक रौ?
सूरदास नं. ४: हमरा बुझने पेट छुआयल छल।
सूरदास नं. ६: थम्ह तूँ सब! हमर बेरो नहि आयल आ अधा-अधा हिस्सा लगबैत छँ? (कुकुरक पैछला टाँगक चौड़ावला भाग छूबैत) – सरकार ई बिलैर थीक।
सूरदास नं. ७: (कुकुरक नाँगैर छूबैत) – हाहाहाहा! ई कुकूर थीक। ई कुकूर थीक। हम तखन सऽ सबहक बात सुनि रहल छलहुँ। बुझि तऽ पहिने गेल रही लेकिन नाँगैर छुवायल तऽ निश्चित भऽ गेल। ई कुकूर छी। छी न?
चारूकात आब जोर-जोर सँ लोक सब थोपड़ी मारय लागल, सातम सूरदासक जबाब ठीक अछि, ई जीत गेल, ई जीत गेल। रूदल पासमान सेहो ठहाका मारि-मारि हँसय लागल। खलीफा मैथिल आ दुनू रेफरी सहित सौंसे मैनजन मचान हँसैत-हँसैत लोटपोट भऽ गेल छल। कोहुना सम्हरैत आ हँसैत खलीफा मैथिल माइक सम्हारि खेल संपन्न हेबाक घोषणा केलक, मुदा सातो सूरदास मे सँ कियो सही जबाब नहि दय सकल ई कहिकय सबकेँ आश्चर्य मे दऽ देलक। आब सही उत्तर कि छैक ताहि लेल ओ मैनजन केँ अपने माइक पर घोषणा करबाक लेल बजेलक, मैनजन रुदल पासमान बाजय लागल:
“बहुत नीक भेल। खेल नीक हेब्बे करैत छैक। डकैती करैत रही तऽ जंगलो मे खेल खेलाइत रही। एतेक तक जे बड़का-बड़का पार्टी ओहि ठाम डकैती करय लेल जाइत रही तऽ आर सब कियो लूटपाट करय आ हम धियापुता सबकेँ बाहर आनिकय खेल खेलाय। ओकरा सब सँ पूछी जे तोरा सबकेँ कोन खेल अबैत छौक। आ ओ सब कहय जे फलाँ-फलाँ खेल… तऽ खेलाय लागी। खेल मे बइमानी केने बिना हम लेकिन कोनो खेल नहि खेलाय।…”
लोक सबकेँ खूब जोर-जोर सँ हँसी लागि गेलैक। सब हँसय लागल। केकरो रहल नहि गेलैक। ओ बाजि देलकैक, “सरकार तैँ द्वारे सातम सूरदासोक जीत केँ हारि मे बदलि देलियैक?”
भाइ लोकैन! खिस्सा खतम, पैसा हजम!! आब अहाँ सब अपने निर्णय करू, कि सही, कि गलत। लेकिन मिथिला मे कियो केकरो सँ भिड़त से संभव नहि छैक। सही-गलतीक फैसला मैनजनक हाथ मे छन्हि। फोटो देखिकय अहीं सब निर्णय करू जे ई कोन जीव थिकैक। एक कट्ठा जमीन आ १२ वर्ष खेबा जोग अनाज देबाक बात छलैक। सबकेँ आदेश भेटलैक जे आब जाय-जाउ। ऐगला वर्ष फेर दोसर खेल देखय लेल आयब।