अनुभूति
– प्रवीण नारायण चौधरी
बाबाधाम केर प्रसाद

कियो निर्बल कियो अति बलशाली
कियो निरामिष त कियो फलाहारी
कियो जाय जल पीबि बाबा के दुअरिया
लाल रंग कामर छै लाल रंग कहरिया
बड़ नीक लागै छै बाबा के डगरिया
लाल रंग कामर छै लाल रंग कहरिया….
यात्राक नियम, अनुशासन, शारीरिक व्यायाम, ध्यान केन्द्रित रखबाक उपाय आदि अनेक महत्वपूर्ण बात एहि कामर यात्रा मे ध्यान राखय पड़ैत छैक। सदिखन मन केँ अपन स्वामी आत्मा संग परमात्मा मे लीन राखबाक अधिकतम प्रयास केनाय एहि यात्राक सर्वोच्च उपलब्धि हम मानैत छी, लेकिन एक्के नहि अनेकों महत्वपूर्ण साधनाक एहि बाट मे हम मनुष्यरूपी जीव लेल बहुतो तरहक उपलब्धि सब भऽ सकैत छैक ताहि सँ हम अपना केँ फराक नहि राखि सकैत छी। सामान्य तौर पर ई देखल गेलैक अछि जे परमात्माक अंश जीवात्मा आर फेर जीवात्माक संग-संग चलि रहल १७ सनातन-सदावर्त मित्र अर्थात् मन, बुद्धि, ५ ज्ञानेन्द्रिय, ५ कर्मेन्द्रिय तथा ५ प्राण – सब केँ एकठाम समेटिकय एक्कहि टा काज मे लगा देला सँ मनुष्य अत्यन्त लाभान्वित होएत अछि, आधिदैविक, आधिभौतिक, आध्यात्मिक – तीनू कमाइ भरपूर होएत छैक।
आर कमाइ करबाक लेल हाथ पर हाथ धेने बैसल रहला सऽ या फेर संकल्पित जल सहितक कामर बोझितो ध्यान अन्यत्र व्यस्त केला सऽ कोनो पैघ लाभ होयत से हम नहि मानैत छी। लाभ चाही त सदिखन अनुशासित भऽ अपन (आत्मारूपी अस्तित्व) केँ सम्पूर्ण भौतिक आ आध्यात्मिक शरीर आ संगी-साथी सहित जैह किछु काल मुदा परमात्माक सर्वोच्च अस्तित्व मे समर्पित कय दियौक। जी! हमर यात्रा सेहो बेसीकाल नाम-जप, भजन, सत्संग आ चर्चा मे बितैत रहैत अछि, लेकिन एकटा भय सदिखन सतबैत अछि जे ‘कोना पार लागत?’ ई प्रश्न हमर माथ केँ कीड़ा जेकाँ कुतैर-कुतैरकय खाएत रहैत अछि। मोन बेसीकाल डेराइत रहैत अछि एक अन्जान भय सँ, एतेक दूर रस्ता छैक – केकरो फोका भेलैक, केकरो ठेहुन पकैड़ लेलकैक, केकरो डाँर्ह धय लेलकैक, केकरो नस खींचा गेलैक… हमर अपनो हाल सब तरहें बेहाल अछि… शरीर जर्जर कमजोर नाव जेकाँ अछि आ एहेन अगम-अथाह जल भरल नदी (बाबाक बाट) मे गंगाजल भरल कामर लेने पार उतरबाक लेल उताहुल छी। एतय किछु भाव अपन शब्द मे राखय सँ पहिने पुनः प्रेमीजीक ई पाँति पर गौर करू…
तन अति दुर्बल मन अति दुर्बल
कोना के पहुँचब यौ…
बाबा लऽ गंगाजल भरलहुँ
पार उतारू यौ…
भैरव झट दय आबू यौ…
भैरव संग मिथिलावासीक एकटा करार भेल छल। कथा मे अबैत छैक जे एक समय भैरव बाबा बैद्यनाथ सँ आज्ञा लय उत्तर दिशा मे स्थित मिथिलादेश भ्रमण करय लेल एलाह। ओतय मिथिलावासीक आतिथ्य मे एतेक डूबि गेलाह जे वापसीक समय-सीमा बिसरा गेलनि। राति बाबा सपना मे कहलखिन जे भैरव, मिथिला मे गेलापर बहुतो संग अहिना भेलैक। राजा रामचन्द्र सेहो सासूर मे एहिना रोकल जाएत रहलाह। विदाह होयबाक दिन ताकल जाएछ आ अन्तो-अन्त मे ज्योतिषीय गणना पर्यन्त सखी-बहिनपाक भावपूर्ण स्नेहक आगाँ शिथिल पड़ि जाएछ। तैँ तोरो मिथिला भ्रमण मे ई आतिथ्य वापस घुरबाक समय सीमा बिसरा देलकह। खैर! आब जखन देरी भेलह अछि त एकटा काज करह जे मिथिलावासी केँ ई कहह ओ झारिखंडक एहि कठिन डगर धरि गंगाजल भरल कामर सहित आबय आ कामनालिंग बैद्यनाथक पूजा-पाठ करय, एहि सँ ओकरा सभक कृषि, पशुपालन, रोजी-रोटी, बाल-बच्चा, परिवार आ समुदाय संग सम्पूर्ण क्षेत्रक कल्याण केर चिन्ता हमर होयत। भैरव चौंकिकय उठलाह आ भोरे-भोर मिथिलाक लोक सँ आदरपूर्वक ई वृत्तान्त सुनौलनि।
मिथिलाक लोक कतेक जोशगर होएत छैक से हमरा कहय नहि पड़त। एखनहु जे कियो ई लेख पढि रहल होयब तिनकर मोन मे बाबा प्रति श्रद्धाक भाव उमैड़ रहल होयत। कतेको सज्जन त ई पढलाक बाद तुरन्त मोन बना लेब जे हमरो बाबाधाम जेबाक चाही। बस! तहिना भैरव द्वारा सपनाक वृत्तान्त सुनैत देरी बहुते लोक कराम-कराम करय लागल जे चलू त चलू। ताहि समय सब सँ मजबूत आ हिम्मती लोक छलाह ‘कामरथी ब्राह्मण’। ओ अगुवाई कयलनि। पाछू-पाछू लाखों लोक कामर सहित बाबा केँ गंगाजल सौंपय लागल। सर्वप्रथम भैरव अपने रस्ता देखेलखिन। पृथ्वीलोक पर देवलोक सँ आयल पवित्र नदी ‘सुरसरि’ गंगाजी वर्तमान भागलपुर जिलाक सुल्तानगंज मे किछेक दूरी लेल जल-प्रवाहक सामान्यतः उत्तर सँ दक्षिणक दिशा केँ बदैलिकय उल्टा प्रवाह यानि दक्षिण सँ उत्तर केर दिशा मे बहय लगैत छथि। कहल जाएछ जे एहेन उल्टा प्रवाह सिर्फ आ सिर्फ दैवक विशेष इच्छा सँ बहुत कम जगह पर आ अत्यन्त विशेष प्रयोजन लेल मात्र होएत छैक, बस ताहि उत्तरवाहिनी गंगा सँ जल लय स्वयं भैरव द्वारा काटल हरियर बाँस मे डोमाक बुनल दू गोट लाले-लाले डाली बान्हि कामर मे राखि ‘बम-बम’ उच्चारण करैत आगाँ बढलाह।
आइ जखन एतेक रास राजकीय रख-रखावक बादो बाट दुरुह अवस्थामे पैदल चलनिहार केँ कष्ट दैछ, तखन ताहि युग मे पूर्णरूपेण जंगल केर पगडन्डी धेने केहेन विकट होयत ई स्वयं कल्पना कय सकैत छी। परञ्च, कामरथी ब्राह्मण जिनकर नामहि सँ ‘कमरथुआ’ कामरिया केँ कहल गेल अछि, हुनक अगुवाई मे मनुष्य लेल आवश्यक विभिन्न काज सब धीरे-धीरे होएत चलि गेल अछि जे प्रक्रिया एखन धरि जारी अछि। एखनहुँ एहि बाट मे कतहु पानिक पियाउ त कतहु शौचालय त कतहु विश्रामालय, वृक्षारोपण, छाहैरदार पड़ाव, सुविधायुक्त धर्मशाला संग-संग भोजन-पानी वास्ते शिविर आदि लगायब – एहेन धर्मयुक्त कृत्ति सब करबाक होड़ लागले अछि। आब ई बात पूर्णरूपेण सुरक्षित आ सुगम बनि गेल अछि। तखन पहिल-पहिल जे कमरथुआ लोकनि भैरवक नेतृत्व मे जल चढेलनि आ ई बाट निर्धारित कएलनि, से प्रणम्य छथि। आर, भैरव केँ आइयो लोक बाट देखेबाक आ पार लगेबाक लेल विभिन्न भजन आदि सँ सुमिरन करैत अछि।
एहि बाट मे गुरुदेव संग कनिकोकाल यात्राक समय भेटब हमरा वास्ते नव प्राण भेटब जेकाँ अछि। कारण मनुष्य ता धरि जीबितो मृत अछि जा धरि ओकरा मे ज्ञान नहि एलैक। हम अपना केँ एखनहुँ आंशिकरूप सँ ज्ञान भेटल जेहेन बुझि रहल छी। प्रारंभिक ज्ञान भेटल सेहो कहि सकैत छी। परञ्च सम्पूर्ण ज्ञान भेटबाक लेल एखनहुँ अधूरा छी। अतः गुरुदेव (अपना सँ श्रेष्ठ आ निश्चितरूप सँ ज्ञानीजन) केर संग जखन एहि कठिन मार्ग मे होएत अछि आर हुनका मुंह सँ किछु अमृत वचन सुनबाक अवसर भेटैत अछि त मोन गद्गद् आ बुद्धि हरियर भऽ जाएत अछि। एहि वर्ष सेहो एना संभव भेल। गुरुदेव कहलनिः
१. भक्ति मनुष्य तखनहि कय सकैत अछि जखन पहिने ओ स्नेह करब सीखत। स्नेह सदिखन अपना सँ छोट उमेर केर लोकपर कयल जाएत छैक। स्नेह करब सीख गेलाक बाद ओकरा प्रेम करब सीखय पड़ैत छैक। प्रेम सदिखन अपनहि उमेरक लोक सँ होएत छैक। प्रेम कयलाक बाद ओकरा मे श्रद्धा जे अपना सँ श्रेष्ठ लोक प्रति अनेकों कारण सँ होएत छैक, से सीखब जरूरी छैक। जखन हम सब स्नेह, प्रेम आ श्रद्धा मे निपुण भऽ जाएत छी तखन भक्तिक शक्ति हमरा सब मे प्रवेश पबैत अछि।
२. विश्वास बड पैघ चीज होएत छैक। स्नेह, प्रेम, श्रद्धा आ भक्ति भेलाक बाद लोक मे आस्था (विश्वास) केर निर्माण होएत छैक। यदि विश्वास नहि भेल त प्रथम चारि निरर्थक भऽ जाएत छैक। यानि, अहाँ जल लय केँ बाबा लग जा रहल छी आ मन मे विश्वास अछिये नहि…. त ई जल चढेनाय भले बोइन दियाओत (मेहनतक फल भेटिते टा छैक, प्रारब्ध नीक होइते टा छैक)… मुदा विश्वासक अभाव मे जतेक फलित होयबाक चाहैत छल ओ नहि भऽ सकल।
गुरुदेव एकटा खिस्सा सेहो कहलनि बाट मे। एक बेर पार्वतीजी आ बाबा मे गप होएत रहनि। पार्वतीजी बाबाकेँ लाखों-लाख कामरियाक फौज देखबैत कहलखिन, “स्वामी! अहाँक महिमाक जतेक बखान करू से कम होयत।” शिवजी पुछलखिन, “से कि बात प्रिये?” पार्वतीजी जबाब देलखिन, “देखू, केना लोक सभक हुजुम गंगा स्नान करैत अछि, अहाँ वास्ते जल भरैत अछि आर फेर बम-बम बजैत एतेक दूर धरिक रास्ता तय करैत एतय मन्दिर मे दर्शन लेल अबैत अछि।” शिवजी हँसैत जबाब देलखिन, “हँ, से त सहिये। मुदा एखनहुँ ई सब सही भक्ति नहि कय रहल अछि। एखनहुँ कतेको रास समस्या एकरा सब मे छहिये।” पार्वतीजी विस्मित होएत पुछलखिन, “तेहेन कोन बात स्वामी?” बाबा फेर हँसैत हुनका सँ किछु निवेदन कयलखिन आ भक्तिक जाँच आरम्भ करबाक एक उपाय बतेलखिन। पार्वतीजी आ शिवजी झट रूप परिवर्तन करैत ओहि गंगाक किनार मे उपस्थित भेलथि। शिवजी एकटा वृद्धक रूप मे गंगाक दलदलि पाँक मे फँसल छथि, पार्वतीजी वृद्धाक रूप मे छाती पीटकय हुनका बचेबाक लेल लोक सब सँ जोर-जोर सँ चिकैरकय निवेदन करैत छथिन, मुदा संगे-संग एकटा शर्त सेहो लगा दैत छथिन….
“हिनका कियो गोटा बचा लियौन… हमर पतिदेव दलदलि मे धँसल जा रहला अछि, निकलबाक कोनो बाट नहि देखि रहल छी, अपने आब शक नहि छन्हि जे निकलबाक प्रयास कय सकताह… सावधान! हिनका कियो एहेन लोक नहि छुअब जे अपन जीवन मे कहियो कोनो पाप केने होय, नहि त ऋषिक शापवश ओ ओत्तहि भस्म भऽ जायब आर हमर पति सेहो नहि बाँचताह।”
लोक सब हुनका बचेबाक लेल बढय मुदा जखनहि ई वचन सुनैक आ कि ठमैक जाय। केकरो हिम्मत नहि भेलैक जे हुनका ओहि पाँक मे सँ निकालय लेल हाथ लगाओत। सभक मोन मे अपन पूर्व कर्मक कृत्य सब मोन पड़ैक आ ओ डेरा जाएक जे कहीं जाने-अन्जाने पाप कएने होयब त एहि दलदलि मे फँसल लोक केँ बचेबाक लेल छुबिते भस्म भऽ जायब…. ओ एहि तरहें आगू बढलो पर फेर अपन डेग पाछाँ कय लैत छल।
अन्त मे एक गोट सीधा-सादा आदमी ओतय अबैत अछि, पार्वतीजीक बात सुनैत अछि आ सीधे गंगा मे कूदिकय बाहर निकलैत शिवजीरूपी वृद्ध केँ ओहि पाँक मे सँ बाहर निकालबाक लेल अपन तागति लगायब शुरू करैत अछि। एहि तरहें सफलतापूर्वक ओ वृद्ध केँ ओहि दलदलि सँ बाहर निकालि दैछ। लोक सब विस्मित। पार्वतीजी पहिने त खूब रास धन्यवाद देलखिन, फेर लोक सभक मोनक दुविधा दूर करबाक लेल ओकरा सँ पुछलखिन, “बाउ, अहाँ अपन जीवन मे कोनो पाप नहि केने रही तैँ हिनका निकालबाक लेल अहाँ हिम्मत केलहुँ।” ओ व्यक्ति बहुत विनम्रता सँ कहलकैन, “माय, हम कि पाप केलहुँ नहि केलहुँ ततेक ज्ञान हमरा मे नहि अछि। अहाँक बात सुनिकय सब केँ दुविधा मे देखि एक बेर हमरो डर भेल। मुदा फेर मोन पड़ल भगवान् महादेवक विधान। ओ कहने छथि जे गंगा मे स्नान केलाक बाद सब पाप साफ भऽ जाएत छैक। तैँ, हम झट पहिने गंगा मे स्नान कयलहुँ आ तेकर बाद हिनका हाथ लगेलहुँ।” पार्वतीजी आ शिवजी काफी प्रसन्न भेलाह लेकिन आब शिवजीक कहल गप पार्वतीजी केँ मोन पड़लनि जे सब मे विश्वासक कमी छलैक, ताहि हेतु सब हिम्मत नहि कय सकल। ईश्वर प्रति स्नेह, प्रेम, श्रद्धा, भक्ति आ विश्वास बनि गेलाक बाद अहाँक चिन्ता सिर्फ ईश्वर केर चिन्ता होएत छन्हि। निःशंक अपन शरणागति परमात्मा प्रति बनौने रहू, यैह थिक बाबाधामक मार्ग, जलार्पण, शिव-भक्ति आ मनुष्य तनक सदुपयोग।
धाम पर पहुँचलाक बाद हमर पंडा बाबा सेहो ओतबे आध्यात्मिक आ भगवान् शिक केर शरणागत साधक भेटलाह। संयोग नीक, हुनको सँ गप भेल। गपहि-गप मे कहलनि, “हौ किशोर! ३ टा स्थिति पर ध्यान राखह। हम-तूँ आत्मा, परमात्माक अंश, वर्तमान जीवन हुनकहि मायानगरी मे भेल अछि। यानि, परमात्मा, आत्मा आ माया – एहि तीनूक बीच मे समन्वय बनाकय अपन कर्म-कर्तब्य पूरा करैत बढैत चलह।” बहुत मर्मस्पर्शी बात कहलनि। सदा-सनातन हम यानि हमर आत्मा, हमर पिता परमात्मा, परमेश्वर, भगवान्, शिव – आर हमर जन्म-मृत्यु यानि जीवन चक्र ई सब मायाक वश मे रहैछ। माया आर कियो नहि, हमरे परमपिता परमेश्वरक ईन्जीनियरिंग मे पड़ैत अछि, ताहि सँ जे छैक, जेना छैक, सब स्वीकार्य आ अपन मार्ग सही रहय ताहि लेल सदैव ईश्वरक शरणागत टा छी।
अस्तु! बाबाधामक प्रसाद समय-समय पर बँटैत रहब। मानवरूप मे मानवोपयोगी बात-व्यवस्था मे लागल रहू, मस्त रहू, मस्त बढू, मस्ते मस्ते नाम भजू! संभवतः स्वर्ग सेहो पृथ्विये पर छैक! फेर चर्चा करब…!
कहल सुनल सब क्षमा करू यौ बैद्यनाथ
मेटि दियौ सब अपराध,
आ रे! सब दिन रहलौं यौ बाबा अहीं केर चरण धय
आब राखियौ चरणियां के लाज!!
हरिः हरः!!