नेपाल देश सँ मधेश केँ स्वतंत्र कयनिहार अभियानी द्वारा भाषाक नाम पर समाजक विखंडन

मैथिली भाषाभाषी केँ विखंडित करबाक षड्यन्त्र कियैक डा. सी. के. राउत?
 
विगत किछु दिन सँ स्वतंत्र मधेश गठबंधनक विवादित नेता द्वारा निरंतर मैथिली भाषा ऊपर अनावश्यक टीका-टिप्पणी आ मैथिलीभाषी बीच दरार पैदा करबाक लेल कतेको तरहक भ्रमपूर्ण समाचार सोशल मीडिया सँ प्रसार कयल जा रहल अछि। समग्र मे ओ अपन कार्यनीति मे बदलाव अनबाक इशारा कय रहला अछि। आब स्वतंत्र मधेशक सरोकार सँ बेसी महत्वपूर्ण वर्तमान संघीय संरचना मे तीव्र गति सँ निष्पादित भऽ रहल विभिन्न प्रक्रिया मे ओ प्रवेश करबाक लेल एकटा दोगी (बाट) तकलैन अछि। प्रदेश २ मे हुनकर रुचि जागलनि अछि। एतय मैथिली भाषाक वर्चस्व स्थापित होएत देखि हुनकर किछु एजेन्डा प्रभावित होएत बुझेलनि। मुदा समग्र मे संविधानक प्रावधान सँ अपरिचित ओ मैथिली भाषाक एकाधिकार स्थापित होमय जा रहल से दुर्भावना सँ ग्रसित भऽ गेल छथि। संगहि, केन्द्रीय सत्ता द्वारा प्रदेश प्रमुख केर नियुक्ति मे ७ मध्य २ मधेशी समुदायक लोक आर ताहू मे दुनू बाभन ओ काएथ होयबाक स्थिति सँ हुनका मे विचलन एलनि ई स्पष्ट भेल।
 
एहि सब सन्दर्भ मे आइ जनकपुरक रेडियो पर अजय अनुरागी जी द्वारा हमरा सँ साक्षात्कारक एकटा प्रस्ताव आयल अछि। रेडियो पर चर्चा मे कतेक बात आयत, कतेक नहि आयत… तैँ हम अपन एहि आलेख मार्फत किछु विन्दु पर अपन विचार स्पष्ट कय दी।
 
नेपाल हमर कार्यक्षेत्र थिक। एतय हम भाषा आ संस्कृति मे अपन मिथिला तकैत रहैत छी। बाकी, राजनीतिक बदलाव सँ प्रभावित होयबाक कारण जे कने-मने सरोकार रहैत अछि, नहि त बस एकटा रोजगारी आ अपन भाषा-संस्कृति प्रति समर्पित अभियान हमर कर्म-कर्तब्य मानैत छी। सुसंयोग जे एहि पार आ ओहि पार – दुनू बगलक एक सँ बढिकय एक स्रष्टा लोकनि सँ परिचय एहि भाषा-संस्कृतिक अभियान मे स्थापित भेल, आर जानकीक विशेष कृपा मानि आगू सेहो अपन प्रतिबद्धता ओहि तरहें राखब। एकटा पोथी कविता संग्रह ‘प्राण हमर मिथिला’ विगत साल जनकपुर साहित्य ओ कला सम्मेलन मे तत्कालीन गृहमंत्री विमलेन्द्र निधिक हाथ सँ विमोचन भेल छल। आगाँ सेहो लेखन यात्रा निरन्तरता मे अछि, आइ न काल्हि फेर नव बात सब सोझाँ पोथीक मार्फत सेहो रखबे करब। एखन मैथिली जिन्दाबाद नामक वेबसाइट सँ समाचार सम्प्रेषण करैत अपन मिथिला समाजक लोक केँ जोड़ैत आबि रहल छी।
 
डा. सी. के. राउत केर परिचय हमर किछु परिचित सर्जक समाज – यथा पशुपतिनाथ मधेशी, प्रवीण कर्ण, सुजित ठाकुर, भरत साह आदि सँ भेटल रहय जाहि समय ओ नेपाल आबि एनआरएमए केर स्थापना लेल प्रस्ताव देने छलखिन। दिल्ली मे प्रस्तावित सम्मेलनक खाका पर सेहो चर्चा भेल छल मिथिला चौक ऊपर पशुपतिजी संग। तहिना भरत साह व सुजित ठाकुर विराटनगर केर आयोजन मे सेहो भाग लैत विचार संप्रेषणक कार्य कएने छलाह। बाद मे रेसिस्ट टीका-टिप्पणी शुरू भेलापर मधेशी सिविल सोसाइटी सँ हम मुक्त भेल रही, आर तहियाक बाद कोनो खास विचार आदान-प्रदान नहि भेल छल आपस मे। परञ्च डा. सी. के. जीक बारे बहुत रास चर्चा हुनकर राजनीतिक हथकंडा आदि पर होएत रहल अछि।
 
खैर, मधेश अलग देश आ जय स्वराज कहिकय नेपालक संप्रभुता केँ चुनौती दैत मधेश आ मधेशीक उत्पीडण लेल लड़निहार डा. सी. के. राउत केर घर-वापसी मानि सकैत छी। आब ओ संघीयताक वर्तमान स्वरूप मे अपन माथ आ कंप्युटेशन लिंग्वस्टिक होयबाक यथार्थ परिचिति केँ आगू बढा रहला अछि। ताहि लेल धन्यवाद। देरी सँ मुदा दुरुस्त निर्णय छन्हि।
 
समग्र मधेश एक प्रदेश केर मांग पर अड़ल मधेशवादी राजनेता आ संविधान सभा केँ प्राप्त जनादेश मे माओवादी एवं मधेशवादीक अग्रता मे गठित सरकार, तेकर प्रथम ९ मास, पुनः सत्ता परिवर्तन उपरान्त हारल नेता लोकनि द्वारा प्रधानमंत्रीक पद पर पहुँचब आ मधेशक कथित सशस्त्र क्रान्तिकारी समूहक नेता आ कार्यकर्ताक नामपर कतेको निर्दोषक हत्या – ताहि समयक मानव अधिकार ओ हक-हित पर नजरि रखनिहार विभिन्न संस्थाक प्रतिवेदन मे व्यक्त चिन्ता सँ मधेश आ मधेशवादी केँ भेटल उपलब्धि केँ जबर्दस्ती दमन करबाक कतेको रास रहस्य सँ पर्दा उठब बाकी अछि। तेहने एक रहस्यमयी चेहराक प्रवेश मधेशक भावुक जनमानस बीच भेल जिनकर नाम छल डा. सी. के. राउत। ई स्वयं मे एकटा विषय छथि जाहिपर मधेशक सुविज्ञ आ विद्यावान् सपुत सबकेँ शोध करबाक चाही जे कोना रहस्यमयी तरीका सँ डा. बाबूराम भट्टराईक बजाओल गेल वार्ता समिति मे हिनका आमंत्रण भेटल आ कोना नाटकीय अन्दाज मे ई ‘राईट टु सेसिड’ केर बात केलनि जाहि सँ अन्य दलक आरोप जे मधेश आन्दोलन देश केँ टुकड़ा करबाक षड्यन्त्र थिक, आदि बात केँ अन्तर्राष्ट्रीय समुदायक सोझाँ मे बल भेटल। प्रश्न त तहिये स उठल जखन नेपालक पूर्व प्रधानमंत्री डा. बाबुराम भट्टराईक सभापतित्व मे गठित संविधान सभाक वार्ता समिति मे हिनका लिखित पत्र दैत अपन विचार राखय वास्ते आमंत्रित कयलनि….. ‘???’ प्रश्ववाचक चिह्न डा. राउत पर ओहि समय सँ अछि। लेकिन अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताक लेल राज्य हिनका विरुद्ध गेलाक बादो सब कियो एक स्वर मे हिनकर बचाव केलक।
 
आइ जे ई मैथिलीभाषी मैथिल केँ सामन्ती कहिकय दुष्प्रचार कय रहला अछि ईहो अपना आप मे एकटा रहस्यमयी प्रसंग जेकाँ देखा रहल अछि। जहिया सँ प्रदेश २ केर कामकाजक भाषा मैथिली हेबाक बात किछु मैथिल अधिकारकर्मी लोकनि द्वारा उठायल गेल, ई बात बहुतो केँ विचलित कय देने अछि। जहिया सँ प्रदेश २ केर नामकरण ‘मिथिला प्रदेश’ केर समाचार प्रकाश मे आयल, डा. राउत आर हिनकर समर्थक मे एकटा घोर चिन्ता व्याप्त भेल देखा रहल अछि। हिनका अलावे आरो जे सब राजनीतिक विभिन्न धारा मे छथि हुनको सबकेँ ई चिन्ता भऽ रहल छन्हि जे एक त समग्र मधेशक मांग आइ कतहु भऽ स्थापित नहि भऽ सकल, दोसर – जे एकटा ८ जिलाक प्रदेश पहिचानमूलक प्रदेशक रूप मे देबाक बात संविधान सभा २ द्वारा प्रदत्त संविधान सँ भेबो कयल ओतय फेर ई ‘मैथिली आ मिथिला’ केर सवाल उठेनिहार लोक अपन मुंह खोललनि त एकरा कोना बदनाम आ कलंकित कय केँ चुप करा देल जाय। बस, यैह मूल रणनीति सँ डा. राउत काफी विचलित भऽ हड़बड़-हड़बड़ मे गूगल शोध करैत मैथिली भाषा केँ उच्च जातिक भाषा मानि बैसलाह। उच्च जातिक लोक सामन्ती भेल, छुआछुत केर प्रसार केलक, समाजक निम्न तवका केँ अछूत मानि ओकरा बहुतो अधिकार सँ वंचित रखलक, तैँ आइ ओकर पूरे समुदाय ‘सामन्ती’ थिक, ओकर बाजल जायवला भाषा मैथिली सामन्तीक भाषा थिक आर प्रदेश २ मे ई सब गैर-वाजिब आवाज उठाकय कहीं मैथिली भाषा केँ कामकाजक भाषा बना नहि दियए, कहीं प्रदेशक नाम ‘मिथिला प्रदेश’ नहि बना दियए, अतः ओ हैश-टैग लगाकय ‘मध्य मधेश’ नाम एवं ‘मधेशी भाषा’ कामकाजक भाषाक नया अभियान चलौने छथि। सौभाग्यवश अपन सैकड़ों फेसबुक समर्थक युवा सबसँ सेहो एहि तरहक तर्क आ हैश-टैग मूवमेन्ट केँ वायरल बनाकय अपन दृष्टिकोण अनुरूप प्रदेश २ केर अवधारणा केँ संघीय नेपाल मे स्थापित करय लेल चाहि रहला अछि। एहि मे नीक आ बेजाय – उचित आ अनुचित, एहि सब लेल हम सब विभिन्न माध्यम सँ बात कय रहल छी।
 
एहि क्रम मे हुनकर मुख्य आरोप जाहि सँ ई भाषा विवाद आरम्भ भेल अछि ताहि पर सेहो मनन करी हमरा लोकनिः
 
१. प्रदेश प्रमुख केर नियुक्ति मे एकटा झाजी आ दोसर लालाजी – ई दुनू नियुक्ति सँ हुनकर अन्तर्मन केँ कचोट भेलनि हुनकहि पोस्ट सँ स्पष्ट अछि। ओ ओत्तहि सँ अपन मन मे गुर-चाउर फाँकब आरम्भ कयलनि। राजपा आ संसफो केँ चाही कि मधेशक मसीहा आ एकटा स्वराज धरिक आवाज उठेनिहार डा. राउत सँ सेहो सत्ताक बाँट-फाँट मे मशवरा लियए। ओ शान्त भऽ जेता। ओना, हम सब जे बुझैत छियैक ई राजनीतिक दलक नीति से यैह छैक जे प्रत्यक्ष मतदान सँ कोनो उच्च जातिक कैडर केँ समेटब बहुत बेसी जरुरी आ संभावना दुनू नहि छैक, ताहि सँ जे कोनो मनोनयन आधारित पद छैक से हुनका सब केँ देल जाय। आर ताहि लेल राजनीतिक दल अपन आन्तरिक व्यवस्थापन आ सत्ता व पदक गरिमा केँ कोना बाँट-फाँट करैत अछि से ओकर अपन निजी निर्णय थिकैक। तथापि, डा. राउत केर भावना सँ हमहुँ सहमत छी जे समावेशिकताक युग मे केकरो वंचित नहि राखल जाय। एखन प्रदेश सरकार आ बहुतो रास काज आगाँ करब बाकिये छैक डा. साहेब। रिलैक्स! अहाँ अपन मनक भावना राखल, उचित अछि। ताहि लेल चयनित व्यक्तित्वक जाति-समुदाय केँ गरियेनाय आरम्भ केलहुँ त ई बदजात बात भेल। अहाँ स्वयं जाहि शिक्षक आ समाज सँ निकलल, पलल, बढल छी ताहि मे कोनो एकल जाति आ समुदायक हिस्सेदारी कथमपि नहि छैक। न काल्हि रहैक आ न आगुए एहेन कहियो संभव हेतैक। सभक आवश्यकता छैक। कृपया जातिक नाम पर विद्वेष भावना पसारय सँ बची हमरा लोकनि। थारु, मुस्लिम, व विभिन्न अन्य समुदाय राजनीतिक संगठन मे अपन हिस्सेदारी तय कय चुकल छैक। सत्ता-समीकरण मे हिस्सेदारी सबकेँ योगदान अनुरूप भेटिते टा छैक। एहि बेर एक केँ, दोसर बेर दोसर केँ….!
 
२. आर, उपरोक्त पदक बँटवारा सँ मानसिक विचलन डा. राउत केँ क्रमशः भाषाक चर्चा प्रदेश सभाक सदस्य लोकनि द्वारा शपथ ग्रहण सँ उठलाक बाद प्रदेश २ मे ४७ प्रदेश सांसद मैथिली मे जे सर्वाधिक छल, तदोपरान्त २५ भोजपुरी आ २४ नेपालीक बाद ११ गोटा हिन्दी मे सेहो शपथ ग्रहण कएलनि। शपथ ग्रहण प्रसंग अपनहि आप मे एकटा चर्चित प्रकरण रहल जनकपुर मे। संचालक सिडीओ दिलीप कुमार चापागाईं सर व प्रदेश प्रमुख महामहिम कायस्थजी सहित १०७ सदस्य लोकनि विडंबनापूर्ण स्थिति-परिस्थितिकेँ सामना कय रहल छलाह। जिलाधिकारी द्वारा ई कहलाक बाद जे मौखिक मे अपन मातृभाषा मे लय सकैत छी, लिखित लेकिन नेपाली मे हेबाक कारण एहि पर हस्ताक्षर कय देल जाउ, ताहू लेल सदस्य लोकनि तैयार नहि भेलाह। ओ सब संघीयताक मर्म, बदलाव लेल कयल गेल लंबा संघर्ष आ शहादतिक चर्चा करैत अपन मांग पर अड़ल रहलाज जे हुनक मौलिकता केँ रक्षा कयल जाय। आर, अन्ततः सदस्य लोकनिक जीत भेलनि। वर्तमान संविधान मे कयल गेल प्रावधान मुताबिक उचित समीक्षा करैत प्रदेश २ केर सांसद लोकनि अपन मातृभाषा मे शपथ-ग्रहण कएलनि, किनको पर कोनो दबाव कहाँ छल। लेकिन डा. राउत एहि प्रकरण सँ सेहो विचलित होएत ‘हिन्दी एजेन्डा’ केर मुखालफत करब शुरू कयलनि। हुनका उम्मीद छलन्हि जे बहुतो लोक केँ एहि पर मिर्ची लागि जायत, लेकिन से संभव नहि होएत देखि ओ धरियाखोल कुश्ती अपनहि मे करबाक हिसाबे मानसिक संतुलन गमबैत ‘मैथिली’ ऊपर अनेको कूतर्क संग हमला करब आरम्भ कय देलनि। हिन्दीक विरोध सँ पूर्व निजत्वक रक्षा लेल लोक अपन मातृभाषाक बात करैत अछि। मातृभाषा वैह जे मायक दूध पिबैत पोसाएत समय सँ प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा आ सर-समाज सँ लोक सिखैत बढैत अछि। शपथग्रहण समारोहक विडंबनापूर्ण अवस्थामे सबकेँ स्वतंत्रता देल गेल छलन्हि। वयोवृद्ध सदस्य लगनलाल चौधरी नेपाली मे पढलाह। थारू भाषा मे ओहो पढबाक लेल कहि सकैत छलखिन। परञ्च भाषाक लेखन आ पठन-पाठन केकर कतेक अछि ई किनको सँ नुकायल कहाँ अछि। एहेन अवस्था मे नेपाली राष्ट्रीय भाषा मे ओ पढलनि त एकर स्वागत हेबाके चाही। किछु सदस्य-सदस्या हिन्दी मे पढलनि, कहाँ कियो डंटा लय केँ हुनका मारय-पीटय लेल गेल आ कि सामाजिक संजालहि मे ओहेन लोकपर मातृद्रोही होयबाक कियो आरोप लगेलक? तखन, डा. राउत जाहि-जाहि नेतृत्वकर्ताक चर्चा करैत नेपाल मे हिन्दी भाषाक ओकालतिक बात कएलनि, हुनकर सफलता-असफलताक कथा सेहो ओ जनैत छथि, हम सब कि टिप्पणी करू।
 
३. डा. राउत २२ जनवरी केँ अपराह्नकाल अबैत-अबैत मैथिली पर एक संकीर्ण तथ्यक आधारपर कूतर्कक अंबार ठाढ कय देलनि। हुनका हिसाबे दरभंगा महाराजक नेतृत्व मे गठित मैथिल महासभा सिर्फ ब्राह्मण आ कायस्थ केँ मैथिल होयबाक मान्यता देलक, तेकर सन्दर्भ ओ एलाइट एण्ड डिवलपमेन्ट केर चेप्टर एलाइट-मास कन्ट्राडिक्शन केर पृष्ठ संख्या २०० सँ देने छथि। एतेक हड़बड़ायल छलाह वा छथि ताहि महासभाक नजरि मे ‘मैथिली भाषा जनसामान्य’ केर भाषा होयबाक कारण अपना केँ समाजक उच्च आ पृथक् समुदायक रूप मे चिन्हेबाक लेल सिर्फ ‘हिन्दी’ भाषा केँ मान्यता प्रदान कएने छल सेहो बात एहि किताबक पृष्ठ संख्या २०१ मे लिखल छैक। हलाँकि एकर आ कि ताहि समयक भारतक स्वाधीनता मे हिन्दी भाषाक महत्व कोन तरहें राष्ट्रीयताक प्रचार लेल कयल गेलैक, कोना भारतीय काँग्रेसक स्थापनाकालहि सँ दरभंगा महाराजक महत्वपूर्ण भूमिका मे मिथिलाक्षेत्र पर्यन्त केँ हिन्दीपट्टी मे शामिल करबाक काज कयल गेलैक, कोना हिन्दी मात्र केँ राजकाजक भाषाक रूप मे प्रचारित प्रसारित कयल गेलैक, एहि सब बात सँ ओ पूर्ण अनभिज्ञ रहैत अपन पूर्वाग्रही निर्णय ई कय लेलनि जे जखन उपरोक्त दरभंगाक महासभाक नजरि मे ब्राह्मण ओ कायस्थक अतिरिक्त दोसर कियो मैथिल नहि त फेर ओकर भाषा मैथिली नहि। आर, एहि तरहें ठोकि देलाह फोटोशौप सँ बनायल एक फोटो जे मैथिली नेपालक सिर्फ ३% लोकक भाषा थिक। एहि सँ पहिने २०११ केर जनगणना मे प्रकाशित तथ्यांक पर हुनका कोनो आपत्ति नहि रहनि वा नहि छन्हि, धरि वर्तमान समय संघीय नेपालक प्रदेश २ केर अवधारणा मे हुनकर मनमाफिक ‘मधेशी भाषा’ जे हुनकहि योग्यता-भ्रमक भ्रमित कोइख सँ जन्म लेलक अछि, जेकरा पास भाषाक कोरम पूरा करय लेल मात्र आ मात्र डा. सी. के. राउत केर कथित कैम्ब्रिज सँ रिसर्च आ कम्प्युटेशनल लिंग्विस्टिक्स होयबाक गोटेक गूगल सन्दर्भ सब उपलब्ध अछि तिनका द्वारा कहल गेल अछि त बाकी लोक केँ मानि लेबाक चाही आ प्रदेशक कामकाजक भाषाक रूप मे घोषणा कय देबाक चाही। तर्क केर वजन कतेक अछि से स्वयं हम सब सोचि सकैत छी। स्वयं जाहि पोथी सभक सन्दर्भ डा. राउत रखलनि अछि तेकर समग्र परिप्रेक्ष्य देखला सँ स्पष्ट होयत जे कोन तरहें महासभा मे किछु सीमित तथाकथित विद्वान् अपना केँ विशिष्ट श्रेणीमे बनाकय रखबाक लेल राजा कामेश्वर सिंहक सुझाव तक केँ नकारलनि, आर फेर बाद मे कोना युवा शिक्षित मैथिल समाज द्वारा मैथिली भाषा प्रति उदारताक प्रसार कयल गेल, केना विद्यापति समान महाकवि लोकनिक चेहरा सोझाँ राखि मैथिली भाषा-साहित्यक अनुपम छटा केँ निखारल गेल आर केना १९४०-५० अबैत-अबैत मैथिली भाषाक विकसित स्वरूप आ मिथिला राज्यक अवधारण भारतक संसद धरि पहुँचल। ई समस्त बात डा. राउत केँ खुलिकय लिखबाक चाही। एना एक पन्नाक किछु पंक्ति सँ अपन कूतर्क करब अनुचित आ क्षोभ करय योग्य अछि।
 
४. मनुवादी सामन्त कहिकय ओ हुनका हिसाबे बुझल जायवला ‘मैथिल’ केर शिक्षा-दीक्षा-संस्कार-सामर्थ्य-हैसियत आदि केँ किनार लगा एना लिखि रहला अछि जेना हुनकर जमीन हड़पि लेलकनि, या हुनकर अथवा अन्य कोनो वर्गक हिस्साक भोग कियो गड़ैक गेल…. एहि तरहक छीछालेदर स्थापित मिथिला सामाजिक संरचना जेकरा अकाट्य योगदान आइ अदौकाल सँ समाज मे विद्यमान अछि, डा. राउत जेहेन अध्ययनशील आ शोधकर्ता केँ एकदम नहि करबाक चाही। मानव जीवन किताबक पन्ना मे उल्लेखित छैक से एक बात भेल, व्यवहारिक दुनिया मे ई सभक सोझाँ खुला आँखि सँ देखय योग्य अवस्था मे छैक। डा. राउत स्वयं प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा अपन गाम महादेवा मे लेलनि, के सब छलन्हि हुनकर गुरु? शिक्षा-दीक्षा सँ लैत समाज केँ आगू लय जेबा मे कोन वर्गक हाथ रहल अछि? आगुओ के बढायत एहि समाज केँ? आइयो बहुत तवका जे अशिक्षित, अनपढ, पिछड़ल वर्ग मे पड़ल अछि – ओ केना आगू बढत ताहि पर चिन्तन समाज केँ अपने मे ‘सामन्ती आ शोषित’ हल्ला कय केँ जँ भऽ जाय त कुकुरो सँ उच्च स्वर मे काल्हि सँ गामहि-गाम हल्ला करब आरम्भ करथि। शिक्षा तंत्र केँ मजबूत करबाक जे वर्ग काज केलक, जेकर जीन मे शिक्षा आ संस्कार रहलैक अछि, जे अदौकाल सँ विद्याधन केँ सर्वधनं प्रधानं कहलक अछि, ओ चाहे कोनो जाति आ कोनो धर्मक हो, ओ समाज मे आन वर्ग सँ बहुत बेसी आगू रहल अछि। डा. राउत केर समर्थन मे कि ब्राह्मण आ कायस्थ नहि? ओ केकरा सामन्ती आ मनुवादी कहि रहला अछि? कोन ठाम पर छुआछुत आदि देखि रहला अछि? कि २१म शताब्दी मे ओ सामन्ती युग देखैत छथि? कि हुनकर नजरि मे न्याय यैह जे अहाँ उच्च जातिक लोक केँ एना सरेआम ‘सामन्ती’ आ ‘मनुवादी’ कहिकय गरियायब? आब त कर्मकाण्डहु केर युग स्वयं ब्राह्मण जातिक लोक मे नहि बाँचल, कतय छथि मनु आ हुनक सिद्धान्त? के पालन करैत अछि? तखन क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थक खातिर एना अपनहि समाजक प्रबुद्ध, विवेकी आ विकसित वर्ग केँ गारि पढि अहाँ ‘स्वराज’ केर झूठ आ कुटिल सपना केकरा लेल बाँटि रहल छी? मिथिलाक्षर मैथिली भाषाक विशिष्टताक परिचायक अछि। हमरा लोकनिक इतिहास अनेकों साक्ष्य एहि लिपि मे एखन धरि विभिन्न पुरातात्विक खोज सँ प्राप्त भेल अछि। कतेको रास पाण्डुलिपि एहि नेपालक राष्ट्रीय अभिलेखागार मे सुरक्षित रहबाक दृष्टान्त सोझाँ मे अछि। परञ्च बिना कोनो राजकीय संरक्षण, नहिये भारत मे, नहिये नेपाल मे, ई आइ कुपोषणक शिकार बनिकय लोपोन्मुख अछि। बंगलाक अनेकानेक विद्वान् ई स्वीकार करय मे असोकर्ज मानबे नहि केलाह जे मिथिलालिपि सँ हुनकर लिपिक विकास भेल, आर अहाँ अपनहि घर मे जन्म लेल वीरपुरुष घरहि मे आगि लगेबाक लेल उतारू छी। लानत अछि एहेन सोचपर! अहाँ जाहि वर्ग केँ बाप-दादा-परदादा द्वारा लिपि प्रयोगक बात करैत छी, ताहि वर्ग मे आइयो धरि शिक्षाक अवस्था आ ओकरा पूर्ण साक्षर बनेबाक वास्ते प्रवचन आ उपदेश दितहुँ, काज करितहुँ त निश्चित जनकल्याण होएत। एक जगह त मनुवादी-सामन्ती कहि अहाँ शिक्षाक अधिकार तक आरक्षित कय लेबाक आरोप मढैत छियैक, आ तुरन्ते अपनहि बात मे विरोधाभास उत्पन्न करैत ओकरा बाप-दादा-परदादा द्वारा लिपिक प्रयोग केर बात करैत छियैक। ओहि वर्ग मे आइ धरि अंगूठा छाप लगेबाक तक के उचित लूरि नहि भेलैक, तेकर लाभ उठाकय अहाँ कोठरी सँ बाहर मतदान करेबाक अभियान चलबैत छी आ कूतर्क मैथिली प्रति दुर्गंधित वातावरण बनाकय करैत छी, ई सब अक्षम्य अपराध भेल। एक विद्वान् लेल कथमपि उचित नहि!
 
५. मधेशी आ मैथिल दुइ अलग पहिचान केँ अपन कूतर्क सँ प्रमाणित करबाक कुचेष्टा डा. सी. के. राउत केर अपनहि छवि केँ धुमिल केलक अछि। मधेश आ मधेशीक पहिचान जाहि तरहें एहि देशक शासक वर्ग द्वारा अवहेलनाक स्वर सँ संघर्षोपरान्त चिर-स्थापित होएत अधिकार लेल संघर्ष आ शहादतिक कतेको पैघ मिसाल ठाढ केलक अछि, तेकरा डा. राउत अपन महात्वाकांक्षा आ अदूरदर्शिता सँ बहुतो बेर छहोंछित कयलनि अछि। हिनका अपन कुकृत्य सँ मधेशक समग्रता केँ देश तोड़बाक षड्यन्त्र जेहेन आरोप सँ स्पष्टीकरण देबाक चाही। कोनो देश मे अधिकारक लड़ाई रातारात पूरा नहि भेलैक अछि। नेपाल मे त २४० वर्षक निरंकुश एकल भाषा एकल भेष केर नीति अन्तर्गत विभेदपूर्ण शासनक विरुद्ध संघर्ष छैक। एतय एथनिक आइडेन्टिटी केर युद्ध करेबाक कतेको क्षुद्र मानसिकता आ खेलावेला सेहो भेलैक। लेकिन धन्यवाद नेपालक जनता केँ – जे ई बुझैत छैक जे अदौकाल सँ पहाड़ी-मधेशी आ विभिन्न जनजाति-आदिवासी आदि सङ्गोर बनाकय बाँचल, विकास केलक। आब नव संविधान मे नव संघीयताक सझिया फुलबारी मे विकास दिस उन्मुख होयबाक बेर एलैक। स्वराज आ कि-कहाँदैन हवा फुस्स भेलाक बाद प्रदेशक राजनीति मे रुचि लेता से नीक बात, धरि अपनहि मे कुटिलतापूर्ण कुतर्क सँ झगड़ा लगौता ई मान्य नहि होयत। मधेशक समग्रता मधेशीक एकता मे जिबैत रहत। लेकिन प्रदेशक संरचना, नामकरण, भाषा नीति – वर्तमान संघीय संविधान मे प्रावधान अनुरूप होयत। जरुरत मे भाषा नीति केँ आरो सुदृढ करैत विभिन्न अन्य भाषा केँ आरो वलिष्ठ बनेबाक काज करबाक लेल संशोधनक बात सेहो अछि। प्रदेश २ मे मैथिलीक हैसियत केँ संविधानक प्रावधान मजबूती दैत छैक। हम-अहाँ के? संघीयताक माने कि? संविधानक शासन! आब गेल ओ जमाना जे अहाँ एक कहबय, हम दोसर! संविधान स्वयं अनुच्छेद ७ मे कहने छैक जे प्रदेश सभा द्वारा दुइ-तिहाई बहुमत सँ एक वा एक सँ अधिक कामकाजक भाषा नेपाली बाहेक आनो राखि सकैत छी। नेपाली त एकटा कामकाजक भाषा संविधान तय कइये देलक, आब प्रदेशक संरचना आ जनता अनुरूप – ओतुका जनगणना आ तथ्यांक मे दरभंगाक महासभाक घिसिपिटी सन्दर्भ घोंसियाकय डा. राउत द्वारा त तय नहि कयल जायत जे प्रदेशक कामकाजक भाषा कि हो! हालहि संपन्न एक महत्वपूर्ण सम्मेलन राजविराज मे मैथिली सहित भोजपुरी व अन्य हैसियतवाला भाषा केँ प्रदेश २ मे कामकाजक भाषा बनेबाक मांग कयल गेल छल जे राष्ट्रीय पत्र-पत्रिका मे सब प्रमुखता सँ छपने रहय। अहाँ केँ मेरचाइ नहि लागक चाही, लगबो करत त मरहम पट्टी अपनहि करय पड़त।
 
६. मैथिली भाषा सम्बन्धित जानकारी सेहो डा. राउत अपन मनगढंत बुझाइ सँ फेसबुक मार्फत पोस्ट कएने छलाह। एहिमे जानकी संग हनुमानजी द्वारा मानुषिक भाषा जे सियाजीक नीक सँ बुझल होएन तेहेन सन्दर्भ बाल्मीकि रामायण केर स्पष्ट चर्चा जे संस्कृतक अलावे मानुषिक भाषाक प्रयोग मादे नहि कएलनि। स्पष्ट छैक जे मानुषिक भाषा आ देव भाषा क्रमशः अवहट्ट (संस्कृत-प्राकृत मिश्रित जेकर अपभ्रंशरूप अनेको होएत आइ मैथिली आर ताहू मे अनेकों उपभाषाक रूपमे जीवन्त अछि) आ संस्कृत मानल जाएछ। अतः ई कुतर्क कियैक जे सीताक भाषा मैथिली नहि रहनि? तथ्यहीन बात सँ अपन समझ बनेलहुँ ताहि लेल स्वतंत्र छी, जातिवादिताक बात प्रसार करय लेल एकरा सभक सहारा लेलहुँ त १० बेर सोचू। इतिहास अपराधी केँ बहुतो तरहक दंड दैत छैक।
 
जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन – जाहि आयरिश विद्वानक बात कएने छी, आधुनिक मैथिलीक जन्मदाता मे सँ एक कहाएत छथि ओ। गूगल करैत कतहु सँ एक लाइन लिखि लेलहुँ जे ‘बिहारी भाषा’ अन्तर्गत ओ वर्गीकृत कयलनि, त ई बात कियैक बिसरैत छी जे जाहि समय डा. ग्रियर्सन सिविल सर्विस परीक्षा पास कय केँ वर्तमान मधुबनीक एसडीओ बनिकय एलाह ओतय कविश्वर चन्दा झा केर सान्निध्य – आरो कतेको रास मैथिल विद्वानक सान्निध्य प्राप्त कय कइएक महत्वपूर्ण कार्य कयलनि। कोलब्रुक दोसर विद्वान् छलाह जे १८०१ ई. में मैथिली पर काज कएने छलाह। डा. राम अवतार यादव द्वारा ए रेफरेन्स ग्रामर अफ मैथिली एहि समस्त तथ्य सबकेँ समेटिकय एक बेहतरीन शोध प्रकाशित कएने छथि। डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव, प्रा. डा. सुनील कुमार झा, डा. राजेन्द्र विमल आदि सेहो महत्वपूर्ण शोधकार्य सब कएने छथि मैथिली लेल। विलियम आर्चर सेहो तेहने एक प्रसिद्ध ब्रिटिश सरकारक कारिन्दा छलाह जे एहि महत्वपूर्ण सभ्यताक खोज मे देवाल पर बनायल भित्ति-चित्र केँ ‘मधुबनी पेन्टिंग’ कहि अपन पत्नीक संग एल्बम मे सजाकय विश्व परिवेश मे मिथिला चित्रकला केँ प्रसिद्धि देलनि। अहाँ सही-सही अध्ययन करब तखनहि न पूरा जनतब भेटत। एना अधजल गगरी छलकत जायवला हाल सिर्फ जातीय पूर्वाग्रहक कारण राखब त समय अहींक कलंक देत।
 
विद्यापति पर सच मे किछु दिन भ्रमक अवस्था रहल। बंगाली विद्वान् एहि महाकवि केँ अपन भाषाक कवि मानैत रहल छलाह। परञ्च कालान्तर मे ईहो दुविधाक समाधान भेल। स्वयं रविन्द्रनाथ टैगोर समान नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि ई स्वीकार कयलनि आ स्वयं सेहो हुनकर शैली मे भानुमति उपनाम सँ रचना करबाक बात स्वीकार कयलनि। ओ स्पष्ट कयने छथि जे विद्यापति मौलिक बंगाली नहि, आर हुनकर रचना शैली पूर्णरूपेण मैथिली थिक। बंगाली लिपिक जननी पर्यन्त मैथिलीक मिथिलाक्षर केँ मानल गेल अछि। अध्ययन विस्तार करब त पता चलत जे मणिपुर केर मैति भाषाक जननी सेहो मैथिली थिक। गूगल पर सब भेटैत छैक। अहाँ जतेक वर्ष रिसर्च केलहुँ ततेक आरो करब तैयो मैथिलीक खोज पूरा नहि कय सकब डा. राउत। हमर सुझाव ई अछि जे अपन विद्वताक सही दिशा मे उपयोग करैत अहाँ जहिना किछु कार्य तिरहुता (मिथिलाक्षरक) युनिकोडीकरण मे कएने छी (श्रुति कथा अनुरूप) तहिना आरो महत्वपूर्ण कार्य अपन मातृभाषा मैथिली लेल करू। अहाँक पिता, पितामह, प्रपितामह सब मैथिल छलाह। अहाँ निश्चिन्त रहू। अपन कुल-खानदान मे एक प्रखर सपुत बनिकय आयल छी, एकरा आगाँ आरो विभिन्न क्षेत्र मे महत्वपूर्ण कार्य कय केँ सिद्ध करू।
 
ईहो सच छैक जे आइ मैथिली भाषा राज्य सँ कुपोषणक शिकार रहलाक कारण शिक्षाक माध्यम नहि बनि सकल। नहिये पाठ्यक्रमक ढंग सँ विकास कय सकल अछि। अहाँ जाहि वर्ग केँ सामन्ती-मनुवादी कहैत छी ताहि वर्गक धियापुता नेपाली या अंग्रेजी भाषा मे पढबाक लेल आरे-आरे बच्चा जेकाँ बाध्य अछि। ओ सामन्तीवर्गक लोक स्वयं गरीबी आ संघर्ष सँ लड़ि रहल अछि। तखन शिक्षा ग्रहण करबाक ओकर प्रवृत्ति आइयो आन वर्ग सँ निश्चित बेसी छैक, ई जँ सामन्तक गुण होएक त हमरा हिसाबे सब केँ सामन्ती बनायब जरुरी छैक। मैथिली माध्यम भेला सँ सामान्यहु वर्गक बच्चा सब लेल पढब-बुझब ओहिना सहज हेतैक जेना मातृभाषाक माध्यम सँ पढब-बुझब सहज होएत छैक। मातृभाषाक माध्यम सँ लगभग सब विकसित देश शिक्षा पद्धतिक अनुकरण कएने अछि। ई सब उच्च महत्वक तथ्य सब जुनि छुपाउ लोकमानस सँ। अपने पढि लेलहुँ, मुदा आरो लोक अहीं जेकाँ उच्च महत्वक छात्रवृत्ति प्राप्त करैत कोना पढत ताहि दिशा मे माथ लगाउ महोदय।
 
सामन्तक नाजायज गर्भ कहिकय बहुल्य जनमानसक भावना केँ भड़केबाक अपनेक पुरान आदति सँ हम नीक जेकाँ परिचित छी। पहिनहु अहाँ मैथिलीक कूप्रचार कएने रही, अधिकारकर्मीक हाथ मे मरिया (हथौड़ा) थम्हा ई कहने रहियैक जे बाज मैथिली नहि त मुंह सीबि देबौक। अटेन्सनसिकर केर मनोदशा अहाँ मे कतेक आत्मप्रचारक समान अछि से बुझियेकय बुझनिहार लोक बहुत पहिनहि अहाँक फंडामेन्टल सेल्फ-प्रोक्लेमिंग उद्धारकर्ता सँ दूरी बना चुकल अछि। तखन त नेपाल देश एखनहुँ गरीब आ बेरोजगार युवकक बहुत पैघ हुजुम छैक, अहाँ अपन समर्थक झुपलिसबाजी कय केँ बनेने छी। हम ईहो नहि कहब जे अहाँ मे अपन विचार प्रक्रिया नहि अछि, बल्कि ई परिचालित अछि…. ई अहाँ स्वयं जानू आ अपन योगदानक आत्मसमीक्षा कय केँ। आग्रह जे समाज केँ जोड़निहार मात्र एहि संसार मे अपन नाम आ कर्मक सार्थकता अमर कय सकल। फोटो मे हम सब गाँधी आ नेल्सन मंडेला केँ आदर्श देखबैत छी, मुदा कहियो हुनका लोकनिक भाषा मे एहि तरहक एक संग रहि रहल समाजक विभिन्न समुदाय केँ भाषाक नाम पर आ जातिक नाम पर दू अलग-अलग होयबाक दृष्टान्त जँ भेटय त जरुर कहब।
 
७. मुरली चौक जनकपुरक नाम मुरली एहि लेल पड़ल जे एतय कहिओ कृष्णजीक प्रतिमा रहय… आब ई बात त अहाँक विद्वता केँ यथार्थतः हास्यास्पद बना देलक राउतजी। कतहु देखलियैक हिन्दू समाज मे जे देवी-देवताक प्रतिमा चौकपर लगायल गेलैक? ओना जनतब भेटय जे विद्यापतिक प्रतिमा लगेबाक लेल जनकपुरक सर्ववर्गीय समाज एकटा वृहत् समिति माननीय वृषेषचन्द्र लालजीक नेतृत्व मे कयलक। एक बेर हुनकहि सँ बात कय लेल जाउ। एना आर सब इतिहास केँ तोड़ैत-मरोड़ैत योग्यताभ्रम मे मूर्त इतिहास केँ सेहो अमूर्त जेकाँ अपनहि ढंग सँ तोड़-मरोड़ केलहुँ। एहि सँ ज्ञात होएत अछि जे यथार्थतः अहाँ केहेन मानसिकता सँ मैथिली भाषा आ मैथिलीभाषी केँ आपस मे तोड़बाक षड्यन्त्र कय रहल छी।
 
अस्तु! अपने कतबो लथार फेकब, ओकर चोट अपनहि टा केँ सहय पड़त।
 
हरिः हरः!!