विचार
– श्याम सुन्दर यादव ‘पथिक’
प्रदेश नम्वर २ मे कामकाजी भाषाक रुपमे मैथिली स्थापित होयवाक शुभ शंकेत देखल गेल अछि । मल्लकालीन समयमे राजकाजक भाषाक रुपमे रहल ई भाषा शाह वंशीय शासनकालमे अत्यधिक दमनचक्रमे परल । नेपालक दोसर सभसँ बेसी समुदायद्वारा बाजल जायवाला मैथिली भाषा वर्तमानक संघीय संरचनामे प्रदेश नम्वर २ मे कोनो आयातित भाषा नहि अप्पन मातृभाषा निःसन्देह कामकाजी भाषाक रुपमे स्थापित होयवाक शुभ शंकेत प्रदेश सांसद लोकनिक सपथग्रहण समारोहमे देखल गेल ।
विगतमे मातृका प्रसाद यादव सहितके नेता एवम् पूर्व मन्त्री एवम् सांसद सभद्वारा देखाओल गेल मैथिलीप्रतिक समर्पण अविस्मरणीय अछिये । एतबे नहि अधिकांश स्थानीय तहमे निर्वाचित पदाधिकारी सभ सेहो उत्साहजनक रुपमे मैथिलीमे सपथ लैत कामकाजक भाषा बनेवाक प्रण ल चुकल छथि ।
मिथिला आ मैथिलीक अप्पन गरिमामय प्राचीन इतिहास अछि । अप्पन लिपी, समृद्ध भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति, असभ्यता त अछिये । एकरा किओ मेटाय नहि सकैत अछि । दिनके केओ राइत कहिके केओ अप्पन मोनके बुझा सकैत अछि ।
मैथिलीमे बोली सभमे किछु भिन्नता अवश्य अछि । एहि क्षेत्रक ब्राम्हण, कायस्थ इत्यादि जातिक लोकसभद्वारा बाजल जायबाला मैथिली आ डोम, मुसहर, मेहतर इत्यादी समुदायद्वारा बाजल जायवाला मैथिलीक बोलीमे समान्य अन्तर अछि । मुदा मैथिली, संस्कृति, सभ्यताक जीवन्तता हिनके सभमे पाओल जाइत अछि ।
सुखद समयक बाट जोहि रहल मैथिली भाषापर वर्तमानमे फेर सऽ दमनचक्र शुरु भ चुकल अछि । एहिसँ पहिनका पोष्टमे सेहो हम लिखने रही जे मैथिली भाषा पर एखनो आम जनमानसके पहुँच नहि भऽ रहल अछि । एकर मूल कारण किछु मैथिली अभियानी आ संस्थामे देखल गेल हमरे आ हमहिटावाला प्रवृति अछि । हँ एहिमे सुधार आवश्यक छैक ।
जे बजैत छी, जे लिखैत छी, निर्धक्क बजैत रहु…लिखैत रहु…। कोनो शुद्ध अशुद्धके बात नहि छै । नव युवा सर्जक लोकनिसँ आग्रह मानकताक पाछु दौडैत रहब त बहुत पाछु रहि जायब । जे जतए छी काज मैथिलीमे होयवाक चाही ।
सन्दर्भ राजविराजक मैथिली साहित्य परिषदकः परिषदक पूर्व अध्यक्ष विष्णु कुमार मण्डल भाइजी ‘सार्बनिक समारोहमे कहैत आएल अछि जे बजैत छी सएह मैथिली । एहि नाराक सङ्ग राजविराजमे २०६८ सालमे तत्कालिन प्रधानमन्त्री डा. बाबुराम भट्टराईक प्रमुख आतिथ्यमे राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन सम्पन्न भेल छल । जाहिमे सभ जातिक परम्परागत झाँकी निकालल गेल छल ।
एखन मैथिलीमे भावनात्मक एकताक आवश्यकता अछि । आगु दिनमे अवसर, सहभागी आ प्रोत्साहन एक दोसरके भेनाइ आवश्यक अछि । कोनो समुदायक लोक कियाक नहि होय, काज करएवाला प्रोत्साहन आवश्यक अछि, निरुत्साहित नहि ।
वर्तमानमे कोनो अमूक जाति सङ्गे जोडिकए भावनात्मक एकताकेँ भड्केवाक प्रयास भ रहल अछि । कोनो भी बहानामे अनावश्यक कुतर्ककेर पाछु नहि गेल जाय । एक दोसरकेर सम्पर्कमे रही सजग रही शतर्क रही से आग्रह । एखनो बहुतरास प्रहारसँ सामना करबाक अछि । जय माँ जानकी । जय माँ मैथिली ।।