विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
लोभ सब पापक मूल कारण
(लोकहित मे जारी)
एक गोट धनलोभी दोसर सम्पन्न लोक सँ बहुत डाह करय, डाहक अर्थ स्पष्ट रहैक जे सम्पन्न व्यक्तिक सम्पन्नता ओहि धनलोभी केँ बहुत खटकैत छलैक। ई बात सम्पन्न लोक बुझैक आर ओहि धनलोभी केँ बुझबैक – ओ कहैक, “देखू! धनक लोभ सँ कथमपि धन प्राप्त नहि होएत छैक। एहि वास्ते अहाँ अपन सत्कर्म करैत मानव सेवा – माधव सेवा मे लागल रहू, स्वतः धनक प्राप्ति होएत रहत।”
लोभी लोक केँ देखायल गेल सत्मार्ग ओकरा कम देखाएत छैक, मुदा खतरनाक ईर्ष्या, मत्सर आ डाहरूपी जंगली बाट ओकरा बेसी सहज बुझाएत छैक। अतः ओ सम्पन्न व्यक्ति केँ बड़ा कुटिल मुस्कीक संग विचित्र जबाब दैत अपना आप केँ मोन मनाबय जे ओ व्यक्ति केँ देल गीदरभभकी सँ ओ बहुत त्रसित भेल आर मौका-कुमौका ओकरा सरेआम बेइज्जत करय मे यैह हथियार ठीक रहैत अछि।
सम्पन्न लोक निश्चिते सम्भ्रान्त होएत अछि। लोभी लोकक तुच्छता केकरो सँ छूपल नहि रहैत छैक। तथापि निर्लज्जता आ मूढताक कारण ओ अपनहि नीच बुद्धि सँ तर-ऊपर होएत रहबाक आदति मे फँसल रहैत अछि। आर, एहि तरहें ओछता-नीचता मे आकंठ डूबल ओ लोभी मनुष्य कहियो अपन प्रगतिक मनोकामना-अभिलाषा पूरा नहि कय पबैत अछि।
गरीबी एक अभिशाप थिक, मुदा धनक लोभ मे फँसब ताहू सँ पैघ अभिशाप थिक। मानव जीवन मे यदि लोभ केर प्रवेश भेल त बुझू जे ओकर अन्त समीप अछि। कहलो गेल छैक संस्कृत मेः
लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते ।
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम्॥हितोपदेश, मित्रलाभ, २७॥
वर्तमान समाज मे अनैतिक मार्ग सँ धन अर्जन करबाक एकटा होड़ लागल देखा रहल अछि। संभवतः लोकक एहि प्रवृत्तिक कारण आइ-काल्हि ठक-विद्या सँ बहुत रास प्रलोभन दय लोकक मूल धन केँ कनिकबे समय मे दोब्बर-तेब्बर करबाक झाँसा दैत कतेको रास कंपनी सब लोकक पूँजी हरण करैछ। एहि सब सँ बचब आवश्यक अछि। लोभ मे फँसब त नोकसानी सँ कियो नहि बचा सकत।
हरिः हरः!!