विचार
– गजानन मिश्र, भा. प्र. से. (वर्तमानः पटना)
मंगरौनी (मधुबनी) मिथिला मे नव्य न्याय केर प्रवर्तक छलाह गंगेश उपाध्याय। हिनक ग्रन्थ न्याय-तत्वचिन्तामणिक आधार पर एतय नव्य न्याय केर आरम्भ भेल। पंजी अभिलेख सँ ई संकेत भेटैत अछि जे गंगेश मंगलवनी अर्थात मंगरौनी केर वासी छलाह। पंजी अभिलेख मे गंगेश हेतु दू टा उपाधि – ‘जगतगुरु’ और ‘परमगुरु’ केर उल्लेख कयल गेल अछि। हिनक पुत्र छलाह वर्धमान उपाध्याय जे सेहो भारी विद्वान्/नैयायिक छलाह। वर्धमान धर्माधिकारी सेहो छलाह तिरहुत राजा देवसिंह केर राज मे। राजा देवसिंह केर राजधानी जाहि लहेरियासराय सँ दक्षिण स्थित देकुली मे छल, ताहि ठाम जे वर्धमानेश्वर महादेव अछि, से उक्त वर्धमान द्वारा प्राणप्रतिष्ठित बताओल जाएत अछि।
१४-१५वीं सदी मे मंगरौनी गंगेश-वर्धमान केर कारण नव्य न्यायक प्रख्यात विद्या-केंद्रक रूप मे सम्पूर्ण भारत मे प्रसिद्ध भेल। गंगेशक तत्वचिन्तामणिक आधार बनाय १७-१८वीं सदी मे बंगाल केर नवद्वीप मे नव्य न्याय केर विद्या-केंद्र सार्वभौम रघुनाथ शिरोमणि आदि विकसित कयलनि।
एहिना १७-१८वीं सदी मे पुनः मंगरौनी केँ प्रख्यात कयलनि पंडितराज गोकुलनाथ उपाध्याय एवं हुनक वंश द्वारा। महामहोपाध्याय पीताम्बर उपाध्याय ‘विद्यानिधि’ केर पुत्र न्याय, मीमांसा, ज्योतिष, कर्मकांड केर उद्भट पंडित ‘तार्किक कुलगुरु’ गोकुलनाथ उपाध्याय, हुनक पुत्र ‘सर्वस्वदाता’ महामहोपाध्याय रघुनाथ, हुनक पौत्र महामहोपाध्याय भवानीदत्त केर वैदुष्यक कारण मंगरौनी बंगाल केर नवद्वीप और बनारस केर सामान ज्ञान-विज्ञानक प्रख्यात केंद्र छल। उक्त भवानीदत्त केर पुत्र छलाह शंकरदत्त जे १८५७ केर क्रांति-नायक वीर कुंवर सिंह केर गुरु छलाह।
गोकुल नाथ उपाध्याय केर एक भाय मदन उपाध्याय भारी तांत्रिक ओ सिद्ध पुरुष छलाह जनिका कारणे मंगरौनी तंत्र-विद्या केंद्र केर रूप मे सेहो प्रसिद्ध छल। निकटस्थ भौआरा केर तिरहुत-राजधानीक राजा राघवसिंह, प्रताप सिंह आदि द्वारा राजकीय संरक्षण हिनका लोकनि केँ प्राप्त छल – से अनुमान होएत अछि। यामलसारोद्धार केर एक अप्रकाशित संस्कृत अभिलेख जे पंडित भवनाथ झाक सौजन्य सँ प्रकाश मे आयल अछि और जे १५-१६वीं सदीक रचना प्रतीत होएत अछि, केर अनुसार कोकिलाक्षी भगवती अर्थात कोइलख ग्रामक पश्चिम कमला नदीक पुर्बी तट पर गहन वन मे मंगल- मठ अछि जतय ज्ञान-विज्ञानदायिनी चतुर्भुजा भगवती छथि और जे एक पैघ विद्या-केंद्र अछि। एहि मंगलवनी लग कमलाक पश्चिमी तट पर बृहत् मधुवन अछि।
उक्त भौगोलिक विवरण मंगलवनी यानि मंगरौनी तथा मधुवन यानि मधुबनी केर पहचान स्थापित करैत अछि। संगहि मंगरौनी केँ एक विद्या-केंद्र केर रूप मे उल्लेखित करैत अछि। हरिपुर-लोहा-जगतपुर बाटे बहैत कमला धार केर एक धारा पहिने मंगरौनीक दक्षिण और मधुबनीक उत्तर सँ होएत चकदह बाटे ककना वला कमला धार सँ बहैत छल। नक्शा मे ई आइ ‘छुतहरी धार’ केर रूप मे अंकित अछि। एहि धारक पूरब मंगरौनी तथा पश्चिम मधुबनी पडैत अछि। दरभंगा गजेटियर १९६४ मे उल्लेख अछि जे मंगरौनी मे २४ टा पोखरि छैक। एहन पैघ विद्या-केंद्र जे मंगरौनी छल, ताहि हेतु कोनो आश्चर्य नहि। पंजी-अभिलेख मे फंदह्वार सँ उपनामित मंगरौनी वस्तुतः मिथिलाक एक प्राचीन धरोहर थिक।