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मैथिल यायावर

साहित्यिक सागरक एकटा छोटसन गोताखोर जे अपन गंतव्यक खोजि मे निरंतर प्रयासरत अछि।

मात्र भगवत्कृपासं सभक कल्याण संभव

मैथिल यायावर, मधेपुरा/१२ अक्टुबर २०२३//मैथिली जिंदाबाद परमात्मा,जीव आ माया,यैह तीन टा तत्व एहि संसार मे विद्यमान अछि। तीनू अनादि आ सनातन छै। भगवान चेतन स्वरूप छथि आ हुनकहि कृपासं हमसब एहि संसारक सबटा आन आन तत्वक अनुभूति करैत छी। भगवान समस्त चर वा अचर के नियंता छथि।ओ सब किछु बनलाक बादो जस के तस बनल मात्र भगवत्कृपासं सभक कल्याण संभव

आगम तंत्रक आगमन : एक दृष्टि,एक दृष्टिकोण

मैथिल यायावर, मधेपुरा / १० अक्टूबर २०२३// मैथिली जिंदाबाद   तन्त्र के, वेदकाल केर बादक रचना मानल जाइत छैक। जकर विकास प्रथम सहस्राब्दी केर मध्य के आसपास भेल रहय। साहित्यिक रूप मे , जेना कि  पुराणके प्राचीन ग्रन्थ, मध्ययुगक दार्शनिक – धार्मिक रचना मानल जाइत छैक । ओहिना तन्त्रो मे,  प्राचीन – आख्यान, कथानक आदिक आगम तंत्रक आगमन : एक दृष्टि,एक दृष्टिकोण

मैथिलीक पहिल गल्पकार : डॉ मनमोहन झा

मैथिल यायावर, मधेपुरा/८ अक्टूबर २०२३/मैथिली जिंदाबाद साहित्य जीवनक यथार्थ चित्र थिक आ व्यक्तित्वक चरित्र थिक। जीवनक दोसर अर्थ होइत अछि प्रगति।आ प्रगतिक अर्थ होइत अछि आगू बढब। तखन फेर साहित्य गतिहीन कोनाके भ सकैत अछि। प्रगति, परिवर्तन, विकास — इएह थिक साहित्यक क्रम आ जीबित साहित्यक लक्षण। एखन एहि वर्तमान समय मे संस्कृत भाषा आ मैथिलीक पहिल गल्पकार : डॉ मनमोहन झा

मार्कण्डेय पुराण : एक दृष्टि, एक दृष्टिकोण

मैथिल यायावर , सहरसा,७ अक्टूबर २०२३/मैथिली जिंदाबाद   यद्वयं मद्वयंचैव व्रत्रयं वचतुष्टययम् । आलिभ्याग्नि कुस्कानि पुराणानि विदुर्बुधा: ।।   अर्थात,अहि श्लोकक भावसं अठारह टा पुराण अछि। ओना त उपपुराणादि विभेदें अनेक भेद कहल जाइत अछि।परंच अठारह टा पुराण जगत मे बेस प्रतिष्ठित भेल अछि। एतय हम मार्कण्डेय पुराणक संदर्भ मे चर्चा क रहल छी। असल मार्कण्डेय पुराण : एक दृष्टि, एक दृष्टिकोण

मैथिली पत्रकारिता आ “भारती मंडन”

मैथिल यायावर, सहरसा,७ अक्टूबर २०२३/मैथिली जिंदाबाद।   १९०५ ईस्वी मे “हितसाधन” मैथिली मासिक से आरंभ भेल मैथिली पत्रकारिताक यात्रा बहुत रास पड़ाव पर ठमकैत चलैत फेर आगू बढैत,आजुक समय मे “भारती मंडन” धरि पहुंच चुकल अछि। तखन मिथिला मैथिली नाम से हल्ला मचौनिहार सबटा समृद्ध मैथिलसब अपन गौरवगाथा मे तेना ने लिप्त भेल छल की मैथिली पत्रकारिता आ “भारती मंडन”

साहित्य मे आलोचनाक अभाव

विचार मैथिल यायावर, सहरसा । ५ अक्टूबर २०२३, मैथिली जिन्दाबाद!! परंपरागत रूपमे वाद-विवाद आ संवादक संवाहक रहल अछि भारतीय भाषा आ साहित्य। चाहे कोनो भाषा आ साहित्य होए, सबठाम स्वस्थ आ सार्थक बहस होएत आबि रहल अछि। आ एहि स्वस्थ बहसेक नाम थिक – आलोचना ! कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता, रिपोर्ताज आदि साहित्यक विधा जेकां साहित्य मे आलोचनाक अभाव