दियाबाती आ लक्ष्मी पूजा पद्धति

संस्कृतिः दियाबाती आ महालक्ष्मी पूजा पद्धति

महालक्ष्मी पूजाक संछिप्त विधि सहित

laxmi-pujaदीपावली पाबैन यानि कार्तिक कृष्ण अमावस्याक दिन – भगवती श्रीमहालक्ष्मी आ भगवान् गणेशक नवीन प्रतिमाक प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन कैल जाएछ।

पूजा लेल कोनो चौकी अथवा कपडाक पवित्र आसनपर गणेशजीक दाहिनाभागमे माता महालक्ष्मीकेँ स्थापित कैल जेबाक चाही। पूजाक दिन घरकेँ स्वच्छ करैत पूजन-स्थलकेँ सेहो पवित्र करबाक चाही, स्वयं सेहो पवित्र होइत श्रद्धा-भक्तिपूर्वक संध्याकालमे हिनकर पूजा करबाक चाही।

पूजाक सामग्री: यथाशक्ति फूल, अक्षत, नैवेद्य, आदि। विशेष: वस्त्र मे प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पियर रंगक रेशमी वस्त्र। पुष्पमे कमल व गुलाब प्रिय। फलमे श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़ प्रिय। सुगंधमे केवड़ा, गुलाब, चंदन केर इत्रक प्रयोग। अनाजमे चावल तथा मिठाईमे घरमे बनल शुद्धतापूर्ण केसरकेर मिठाई या हलवा, खीरक नैवेद्य उपयुक्त। प्रकाश लेल गायक घी, मूंगफली वा तिलक तेल। अन्य सामग्रीमे कुशियार, कमल गोटा, गोटा हरैद, बेलपात, पंचामृत, गंगाजल, ऊनक आसन, रत्न आभूषण, गायक गोबर, सिंदूर, भोजपत्र।

मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजीक नजिके कोनो पवित्र पात्रमे केसरयुक्त चन्दनसँ अष्टदल कमल बनबैत ओहिपर द्रव्य-लक्ष्मी (मुद्रा-रुपया)केँ सेहो स्थापित करैत एक संगे दुनूक पूजा करबाक चाही।

सबसँ पहिने पूर्वाभिमुख वा उत्तराभिमुख भऽ आचमन, पवित्री-धारण, मार्जन-प्राणायाम कय अपना ऊपर आ पूजा सामग्रीपर निम्न मंत्र पढैत जल छिडकू:

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥

पुन: स्वस्तिपाठ करैत हाथमे जल-अक्षतादि लैत पूजनक संकल्प करी:

ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:। ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे ….. क्षेत्रे …. नगरे …. ग्रामे …… नाम-संवत्सरे मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावस्यायां तिथौ … (रवि) वासरे अमुक तोत्रोत्पन्न: अमुक नाम शर्मा (वर्मा, गुप्त:, दास:) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिकपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

मन्त्र पढलाक बाद गणेशजीक सोझाँ हाथक अक्षतादिकेँ छोडी।

प्रतिमा-प्राण-प्रतिष्ठा: बाम हाथमे अक्षत लैत दाहिना हाथसँ गणेशजीक प्रतिमापर निम्न मंत्र पढैत छोडैत चली:

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँ् (ग्वं) समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ।

ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥

तदोपरान्त भगवान् गणेशक षोडशोपचार पूजन: (१. दुग्धस्नान, २. दधिस्नान, ३. घृतस्नान, ४. मधुस्नान, ५. शर्करास्नान, ६. पञ्चामृतस्नान, ७. गन्धोदकस्नान, ८. शुद्धोदकस्नान, ९. वस्त्र, १०. उपवस्त्र, ११. यज्ञोपवीत, १२. चन्दन, १३. अक्षत, १४. पुष्पमाला, १५. दूर्वा, १६. सिन्दूर, १७. सुगन्धिद्रव्य, १८. धूप, १९. दीप, २०. नैवेद्य, २१. ऋतुफल, २२. करोद्वर्तन, २३. ताम्बूल, २४. दक्षिणा, २५. आरती, २६. पुष्पाञ्जलि, २७. प्रदक्षिणा, २८. विशेषार्घ्य, २९. प्रार्थना आ ३०. नमस्कार।)

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय सर्वेश्वराय शुबदाय सुरेश्वराय।विद्याधराय विकटाय च वामनाय भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते॥नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:। नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नम:॥विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे। भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक॥त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति। भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति॥विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति। तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव॥त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया॥सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:॥

ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

तदनन्तर नवग्रह

नवग्रह स्थापना ईशानकोणमे चाइर खडी पायासँ आ चाइर पडी पायासँ चौकोर मण्डलरूपमे, नौ कोष्ठक सहित बनाबी। बीच कोष्ठकमे सूर्य, अग्निकोणमे चन्द्र, दक्षिणमे मङ्गल, ईशानकोणमे बुध, उत्तरमे बृहस्पति, पूर्वमे शुक्र, पश्चिममे शनि,

नैऋत्यकोणमे राहु आ वायव्यकोणमे केतुक स्थापना करी। सबहक आवाहन करी आ यथोपचारसँ सब ग्रहक पूजा करी। एक प्रार्थना जे पूर्ण ग्रह सबहक विशेषताकेँ मनन करबाक लेल पूर्ण अछि से धरि हम राखि रहल छी:

ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नम:।

प्रार्थना:

ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।

गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु॥

सूर्य: शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गल: सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्र: सुखं शं शनि:।

राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतु: कुलस्योन्नतिंनित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहा:॥

कलश-पूजन: जमीन वा कोनो पीढी ऊपर पीठार-सिनूर सँ अहिपन करैत – अष्टदलकमल बनबैत –

भूमिक स्पर्श – ॐ भुरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ‍ँ्ह पृथिवीं मा हि‍ँ्सी:॥

सप्तधान्य (जौ, धान, तिल, कँगनी, मूँग, चना, साँवा) – मूलत: गेहूँ, चावल आ जौ सँ –

धान्यप्रक्षेप – ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो व: सविता हिरण्यपाणि: प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि॥

ताहि धान ऊपर कलश-स्थापन – ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:।पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा न: सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयि:॥

कलशमे जल – ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद॥ (जल छोडू कलशमे)

कलशमे चन्दन, सर्वौषधि (मुरा, जटामाँसी, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, दारुहल्दी, सठी, चम्पक, मुस्ता), दूब, पञ्चपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, आम, पाकड), पवित्री, सप्तमृत्तिका (घुडसाल, हाथीसाल, बाँबी, नदिक संगम-स्थल, राजाक द्वार आ गोशाला – एहि सात ठामक माटि), कलशमे सुपारी, पञ्चरत्न (सोना, हीरा, मोती, पद्मराग आ नीलम), द्रव्य, वस्त्र आ पूर्णपात्र (चाउरसँ भरल पूर्णापात्र सरवा आदि), ताहिपर सँ लाल कपडामे लपेटल मुदा मुँह देखाइत नारियल राखी। (यथासाध्य – जे जुडय से राखी।)

आवाहन वरुण देवताकेँ करैत यथोपचारसँ पूजा करी। कलशमे समस्त देवी-देवताक आवाहन करैत प्राण-प्रतिष्ठा करैत पूजा करी। पूजाक विधि गणेशजी समान सबहक पूजामे चलत।

प्रार्थना आ नमस्कार –

देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ।उत्पन्नो

ऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम्॥

त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवा: सर्वे त्वयि स्थिता:।

त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिता:॥

शिव: स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापति:।

आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: सपैतृका:॥

त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यत: कामफलप्रदा:।

त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव।

सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा॥

नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय।

सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते॥

ॐ अपां पतये वरुणाय नम:। ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

महालक्ष्मी पूजन:

ध्यान:

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षीगम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया। या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितै: स्नापिता हेमकुम्भै:सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता॥ ॐ हिरण्यवार्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (ध्यान लेल फूल अर्पित करी।)

आवाहन:

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम्। सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम्॥ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (आवाहन लेल फूल अर्पित करी।)

आसन:

तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्। अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आसनं समर्पयामि। (आसन लेल कमलक फूल अर्पित करी।)

पाद्य:

गङ्गादितीर्थसम्भुतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम्। पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते॥ ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पादयो: पाद्यं समर्पयामि। (चन्दन, फूल आदि सहित जल अर्पण करी।)

अर्घ्य:

अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम्। अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥ ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पद्मनीमीं शरणं प्र पद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि। (अष्टगन्धमिश्रित जल देवीकेँ हाथमे अर्पित करी।)

आचमन:

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्ण्वादिभि: स्तुता। ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम्॥ ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्व:। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमन लेल जल चढाबी।)

स्नान:

मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितै:। स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभि:॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं समर्पयामि। स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (स्नानलेल जल फेर आचमन लेल जल अर्पण करी।)

दुग्ध-स्नान:

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्। पावनं यज्ञहेतुश्च पय: स्नानार्थमर्पितम्॥ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा:। पयस्वती: प्रदिश: सन्तु मह्यम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पय:स्नानं समर्पयामि। पय:स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानण समर्पयामि। (गायकेर काँच दूधसँ स्नान कराय पुन: शुद्ध जल सँ स्ना कराबी।)

दधिस्नान:

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्। दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिन: सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू‍ँ्षि तारिषत्। ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दधिस्नानं समर्पयामि। दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (दहीसँ स्नान, फेर शुद्ध जलसँ स्नान कराबी।)

घृतस्नान:

नवनीत समुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्। घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ घृतं घृतपावान: पिबत वसां वसापावान: पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिश: प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्य: स्वाहा॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। घृतस्नानं समर्पयामि। घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (घी सँ स्नान आ फेर शुद्ध जलसँ स्नान कराबी।)

मधुस्नान:

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु। तेज:पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति मधुमत्पार्थिव‍‍ँ्रज:। मधु द्यौरस्तु न: पिता॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ२ अस्तु सूर्य:। माध्वीर्गावो भवन्तु न:॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। मधुस्नानं समर्पयामि। मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (मधुसँ स्नान आ फेर शुद्ध जलसँ स्नान कराबी।)

शर्करास्नान:

इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका। मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ अपा‌‍ँ्रसमुद्वयस‍‍ँ् सूर्ये सन्त‍‍ँ् समाहितम्। अपा‍ँ्रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्यत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्ते पुन: शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (शर्करासँ आ फेर शुद्ध जल सँ स्नान कराबी।)

पञ्चामृतस्नान:

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्। पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीमपि यन्ति सस्रोतस:। सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानण समर्पयामि। (पञ्चामृत स्नानसँ आ फेर शुद्ध जलसँ स्नान कराबी।)

गन्धोदकस्नान:

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम्। चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नं:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि। (गन्धमिश्रित जलसँ स्नान कराबी।)

शुद्धोदकस्नान:

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्। तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (गङ्गाजल अथवा शुद्ध जलसँ स्नान कराबी।)

आचमन: 

ॐ महालक्ष्म्यै नम: (आचमनक जल अर्पण करी।)

वस्त्र:

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्। दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥ ॐ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (वस्त्र अर्पण करी, फेर आचमन लेल जल दी।)

उपवस्त्र:

कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नै: समन्वितम्। गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (कञ्चुकी आदि उत्तरीय उस्त्र चढाबी, आचमनलेल जल दी।)

मधुपर्क:

कांस्ये कांस्यने पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुत:। मधुपर्को मयानीत: पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। मधुपर्कं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (काँस्यपात्रमे स्थित मधुपर्क समर्पित करी, आचमन लेल जल दी।)

आभूषण:

रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च। सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो:॥ ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि। (आभूषण समर्पित करी।)

गन्ध:

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। गन्धं समर्पयामि। (अनामिका आंगुरसँ केसरमिश्रित चन्दन अर्पित करी।)

रक्तचन्दन:

रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्। मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। रक्तचन्दनं समर्पयामि। (अनामिकासँ रक्तचन्दन चढाबी।)

सिन्दूर:

सिन्दूरं रक्तवर्णां च सिन्दूरतिलकप्रिये। भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमिय: पतयन्ति यह्वा:।घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभि: पिन्वमान:॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि। (देवीजीकेँ सिन्दूर चढाबी।)

कुङ्कुम:

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम्। अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। कुङ्कुमं समर्पयामि। (कुङ्कुम अर्पित करी।)

पुष्पसार (इतर):

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च। मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। सुगन्धितैलं पुष्पसारं च समर्पयामि। (सुगन्धित तेल एवं इतर चढाबी।)

अक्षत:

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ता: सुशोभिता:। मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतान् समर्पयामि। (कुङ्कुमयुक्त अक्षत अर्पित करी।)

पुष्प एवं पुष्पमाला:

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि। पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रयतां यश:॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि। (देवीजीकेँ पु्ष्प ओ पुष्पमालासँ अलङ्कृत करी, यथासम्भव लाल कमलक फूलसँ।)

दूर्वा:

विष्णवादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम्। क्षीरसारसम्भूते दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा॥ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि। (दूर्वाङ्कुर अर्पित करी।)

अङ्गपूजा: रोली, कुङ्कुममिश्रित अक्षत व पुष्पसँ निम्न एक-एक मन्त्रसँ अङ्गपूजा करी:

ॐ चपलायै नम:, पादौ पूजयामि। ॐ चञ्चलायै नम:, जानुनी पूजयामि। ॐ कमलायै नम:, कटिं पूजयामि। ॐ कात्यायन्यै नम:, नाभिं पूजयामि। ॐ जगन्मात्रे नम:, जठरं पूजयामि। ॐ विश्ववल्लभायै नम:, वक्ष:स्थलं पूजयामि।ॐ कमलवासिन्यै नम:, हस्तौ पूजयामि। ॐ पद्माननायै नम:, मुखं पूजयामि। ॐ कमलपत्राक्ष्यै नम:, नेत्रत्रयं पूजयामि। ॐ श्रियै नम:, शिर: पूजयामि। ॐ महालक्ष्म्यै नम:, सर्वाङ्गं पूजयामि।

अष्टसिद्धि-पूजनआठो दिशामे तहिना कुङ्कुमयुक्त अक्षत-पुष्पसँ:

ॐ अणिम्ने नम: (पूर्वे) ॐ महिम्ने नम: (अग्निकोणे) ॐ गरिम्णे नम: (दक्षिणे) ॐ लघिम्ने नम: (नैऋत्ये) ॐ प्राप्त्यै नम: (पश्चिमे) ॐ प्राकाम्यै नम: (वायव्ये) ॐ ईशितायै नम: (उत्तरे) ॐ वशितायै नम: (ऐशान्याम्)

अष्टलक्ष्मी-पूजनः

ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम: ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम: ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम: ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम: ॐ कामलक्ष्म्यै नम: ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम: ॐ भोगलक्ष्म्यै नम: ॐ योगलक्ष्म्यै नम:

धूप:

वनस्पतिरसोद्भुतो गन्धाढ्य: सुमनोहर:। आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपऽयं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम: धूपमाघ्रापयामि। (धूप आघ्रापित करी।)

दीप:

कार्पासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्। तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ आप: सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दीपं दर्शयामि। (दीप देखबैत हाथ धोइ ली।)

नेवेद्य:

नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्। षड्रसैरन्वितं दव्यं लक्ष्मि देवि नमोस्तु ते॥ ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्। चनद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह। ॐ महालक्ष्म्यै नम:। नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं  मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।(देवीजीकेँ नैवेद्य निवेदित करी आ जल हाथ पखारबाक लेल अर्पण करी।)

करोद्वर्तन:

ॐ महालक्ष्म्यै नम: (कहैत चन्दन  हाथमे उपलेपित करी।)

आचमन:

शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्। आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:, आचमनीयं जलं समर्पयामि। (नैवेद्य निवेदन करबाक बाक आचमन लेल जल दी।)

ऋतुफल:

फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्। तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णा: सन्तु मनोरथा:॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (ऋतुफल अर्पित करी, फेर आचमन लेल जल दी।)

ताम्बूल-पूगीफल:

पूगीफलं महद्‌दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्। एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ आर्द्रा य: करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि। (एला, लवंग, पूगीफलयुक्त ताम्बूल अर्पित करी।)

दक्षिणा:

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:। अनन्तपुण्यफलदमत: शान्तिं प्रयच्छ मे॥ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:, दक्षिणां समर्पयामि। (दक्षिणा चढाबी।)

नीराजन:

चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्। आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:, नीराजनं समर्पयामि। (आरती करी तथा जल छोडी।)

प्रदक्षिणा:

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:, प्रदक्षिणां समर्पयामि। (प्रदक्षिणा करी।)

प्रार्थान: हाथ जोडिकय:

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम्। परावरं पातु वरं सुमङ्गलं नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये॥ भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी। सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि! नमोस्तु ते॥ नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये। या गतिस्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि। (प्रार्थना करैत नमस्कार करी।)

अन्तमे, समर्पण:

कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम, न मम। (कहैत सब किछु भगवतीकेँ समर्पित करैत जल गिराबी।)

हरि: हर:!!