“भरियाकेँ संदर्भमे किछु रोचक गप्प”

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— विवेकी झा।                           

भार आ भरिया

मिथिला मे पहिने एक गाम सँ दोसर गाम धरि कोनो समान आदि पहुँचेबाक लेल एकर प्रयोग होइत छल।

ई एकतरहक आबागमनक साधन सेहो छल । एकरा भरिया कहल जाइत छैक। आब प्रायः ई प्रचलन समाप्त भ’ गेल अछि।एहि संबंध मे एकटा लोकगीत:कोन नगर सँ एलें रे भरिया जेबें कोन गाम रे ठुमकि ठुमकि क’ ल’ जाइछें तूँ ककरा लय सनेस रे ।

अपन मिथ्लानचल में विवाहक पश्यात हर प्रयोजन में सनेस दै के प्रथा छलै आ छै, पहिलुक समय में समान ल- आबा जाहि के साधनक आभाव छलै तै लोग भरिया के उपयोग करैत छल, आदमी अपन कन्धा पर बासक फट्टा में दुनु ओर चंगेरा बांधि समान ल जायत छल ।

भार आ भरिया जखन जै गाम सँ नव कपड़ा धोती-कुर्ताक संग गम्कौआ तेल लगा चमचमैत चैन पर सूर्यक रोसनी में घुघरु के आबाज दैत जखन दौरैत जायत आ ओ जै गाम सँ गुजरैत छल ओतुका लोगक जिज्ञासा आ ओई महक सुगंध ओकरा सँ जरुर पुइछ बैसै छलै जे ” कतअ सँ एलह – कतअ जायत छह ”

भरिया कहल जाई त एक तरहक संदेश बाहक सेहो छल । बेटी के बिबाहक पस्चात तीन तरहक संदेश बाहक बहुत महत्वपूर्ण छल।
कहारिया जैमे बैस ओइ समय पुतौह आबैत छली,
भरिया जे भार ल हर प्रयोजन में आबैत छल,
तेसर खबासनि जे नव कन्याक संग आबैत छल ।

ई तिनु आहाँक सान सौकत देखबै के माध्यम छल, लोग एकर स्वागत जमाय आ समधिन जका करै छल कारन जे इयाह स्वागत ओ भैर रस्ता बखाण करैत जायत छलै। जिनका कनमा भैर अनाज नै रैहतन सेहो अपन बखारिक बखाण कैह सुनाबैथ , आ ओ जेतअ तक देखाई दैत अइछ ओ हमरे खेत अइछ जरुर कैह दैत छलखिन । अहि तरह सँ हुनक सम्पत्ति के बखाण अई गाम सँ ओई गाम तक पहूंचा दैत छलै ।
नव विवाह लेल सेहो महत्वपूर्ण छल कोन गाम में निक वर आ कन्या केहन परिवार आ केना की विवाह करअ चाहैत छत से हिनका सब सँ पता लगबैत छल ।

पर आब समयक आ लोगक आभव कहल जाय या संसाधनक बृद्धि ई हमर समाज सँ लुप्त भ गेल । हम अपन जीवन में मात्र एक बेर देखने छी आ हमर बेटी त सिर्फ नामें टा सुनत आ सेहो बिना जिज्ञासा सँ भरल ।