शिव-पार्वती संवाद – सुख आ दुःख केर भोग के मूल कारण की

स्वाध्याय लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

श्रद्धा आ विश्वास
 
काल्हि शिव-पार्वती संवादक एक कथा अपने सभक समक्ष रखने रही जाहि मे गंगा स्नान सँ निष्पाप बनबाक फल केकरा प्राप्त होइत छैक तेकर बड सुन्दर आख्यान (चर्चा) छल। ओहि मे देल गेल दृष्टान्त केर अनुसार जे लोक बिना श्रद्धा आ विश्वास केँ मात्र दंभ वास्ते गंगा स्नान करैत अछि ओकरा वास्तविक फल नहि भेटैत छैक। मुदा एकर मतलब ई नहि जे गंगा स्नान व्यर्थ चलि जाइत छैक। विश्वासक संग कयल गेल गंगा स्नान केर फल भेटिते टा छैक। आजुक स्वाध्याय सँ प्राप्त तुलसीदास जीक कहल ई अनमोल वचन पर मनन करूः
 
मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन।
अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन॥१२२ ख॥
 
प्रभु मच्छर केँ ब्रह्मा बना सकैत छथि और ब्रह्मा केँ मच्छरहु सँ बेसी तुच्छ बना सकैत छथि। एना विचारि कय चतुर पुरुष (प्रवीण) सब संदेह त्यागि केवल श्रीराम जी केँ भजैत छथि॥१२२ (ख)॥
 
श्लोकः
 
विनिश्चितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे।
हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते॥१२२ (ग)॥
 
हम अहाँ सँ नीक जेकाँ सुनिश्चित कयल गेल सिद्धान्त कहैत छी – हमर वचन अन्यथा (मिथ्या) नहि अछि, जे मनुष्य श्री हरि केर भजन करैत अछि ओ अत्यन्त दुस्तर संसार सागर केँ सहजहि पार कय जाइत अछि॥१२२ (ग)॥
 
आइ एकटा आर बहुत रोचक शिव-पार्वती संवाद अपने सभक वास्ते अनने छी। हम मनुष्य प्रजाति केँ सुख आ दुःख जे होइत अछि से स्वनिर्मित कर्म केर परिणाम होइछ। एहि बात केँ आजुक एहि संवाद सँ हम सब जनबाक कोशिश करी, आशा अछि जे एकर गहींर मर्म केँ हम सब अपन-अपन जीवन मे उतारबाक भरपूर प्रयास सेहो करब।
 
एक बेर माता पार्वती शिवजी सँ पृथ्वीलोक आ मनुष्यक जीवन पर आधारित बहुत गम्भीर चर्चा उठेलीह। पुछलखिन, प्रभु! अहाँक एकटा लीला बड़ा अचरज करययवला अछि, अहाँ दुःखी केँ आर बेसी दुःख दैत छियैक आ सुखी केँ आर बेसी सुख। महादेव विहुँसैत बजलाह – हे प्रिये! अहाँक प्रश्न बड मार्मिक अछि। एकर उत्तर देबाक लेल अपना दुनू गोटे केँ पृथ्वीलोक चलय पड़त। पार्वती सहर्ष तैयार भेलीह। दुनू गोटे पृथ्वीलोक केर एकटा गाम अयलथि। शिवजी माता पार्वती सँ कहलखिन जे चूँकि हम सब मनुष्यलोक मे आयल छी त एतय मनुष्य सब जेकाँ भोजन सेहो करय पड़त। अहाँ भोजन पकेबाक/बनेबाक तैयारी करू।
 
माता पार्वती मनुष्य सब जेकाँ भोजन तैयार करबाक लेल चूल्हा बनाबय चलि देलीह, आ महादेव भोजनक सामग्री इन्तजाम करय चलि देलाह। पार्वती चूल्हा बनेबाक लेल ईंटा ताकय बस्ती दिश गेलीह, एकटा जीर्ण-शीर्ण घर सँ ईंटा लय कय चूल्हा बना लेलीह। कनियेकाल मे भगवान् महादेव खालिये हाथ ओतय प्रकट भऽ गेलाह। पार्वती विस्मय सँ पुछि बैसलीह, “आहि रे बा! एना खालिये हाथ आबि गेलहुँ से भोजन कथी सँ बनाउ हम?” महादेव कहलखिन जे आब तेकर जरूरत नहि पड़त। अहाँ ई बताउ जे ई चूल्हा जे बनेलहुँ से ईंटा कतय सँ अनलियैक? पार्वती कहलखिन जे हैवा बस्ती दिश जाय एकटा जीर्ण-शीर्ण पड़ल घर सँ। महादेव हुनका विहुंसैत कहलखिन जे ‘जीर्ण-शीर्ण घर सँ कियैक? कोनो बढियाँ घर के ईंटा कियैक नहि अनलहुँ?”
 
माता पार्वती जवाब देलखिन जे हे बाबा! नीक घर सब तेनाकय सजाकय लोकक रेख-देख मे देखलहुँ जे ओतय सँ कोना अनितहुँ। जीर्ण-शीर्ण पड़ल घर मे ईंटा सेहो उखड़ले अवस्था मे देखि ओतहि सँ आनि लेलहुँ। मुदा अहाँ जे ई सब पुछि रहल छी से कियैक? महादेव कहलखिन, “हम एहि लेल अहाँ सँ ई प्रश्न पुछलहुँ जे अहाँक पुछल प्रश्नक जवाब एहि प्रश्नक उत्तर मे समाहित अछि।” पार्वती जी तैयो विस्मय करैत छथि। महादेव कहैत छथिन जे दुःख या सुख लोकक अपनहि कर्मक फल होइत छैक। जे दुःखी रहैछ ओ अपन कर्मगति केँ सुखी बनेबाक लेल प्रयत्न करय त निश्चित सुखी भऽ जायत। जेना जीर्ण-शीर्ण पड़ल घर केँ लोक ओहि अवस्था मे आर बिना रेख-देख केँ छोड़ि दैत अछि तहिना दुःखी मनुष्य अपन दुःख सँ पीड़ित भऽ यत्न करब छोड़ि खाली कपार पीटैत रहैत अछि, कहू एहि सँ ओकर दुःख केना दूर हेतैक! आर अहाँ जे कहलहुँ जे निकहा घर सब सजल आ सँवारल उचित रेख-देख मे अछि से सुखी लोक केर प्रतिनिधित्व कय रहल अछि। जे सुखी रहैछ ओ सदिखन अपन सुख केँ बरकरार रखबाक लेल यत्नशील रहल करैत अछि। तेँ ओकर सुख दिन-ब-दिन बढिते चलि जाइत छैक। आशा करैत छी जे अहाँक सवालक सही उत्तर भेटि गेल। पार्वती जी सहमति मे माथ डोलेली।
 
आब एहि संवाद सँ हम सब कि सिखलहुँ, कि बुझलहुँ आ हमर-अहाँक जीवन केँ कोन गति या यत्न संग आगू सजायब-सम्हारब से हमरे-अहाँक अपन सोच, मति आ कर्मठता पर निर्भर करत। जहाँ सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना, जहाँ कुमति तहाँ विपत्ति निदाना!! पाठक अपन प्रतिक्रिया दियए लेल नहि बिसरब खाली!! ॐ तत्सत्! हरिर्हरिः!!
 
हरिः हरः!!