कि गंगा मे स्नान कय केँ सचमुच पापक नाश भऽ जाइत छैक

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

१५ दिसम्बर २०२१ । मैथिली जिन्दाबाद!!

शिवमय संसार आ एक रोचक कथा
 
अपन मिथिला संस्कार मे शिव-पार्वतीक महिमा-गरिमा सँ भला के नहि परिचित होयब, डेग-डेग पर हुनक मन्दिर ई स्थापित करैत अछि जे हमरा लोकनि समस्त मैथिल पहिचानधारी आखिर भोला-भवानीक कतेक पैघ भक्ति करैत छी। आजुक कलिकाल मे, वर्तमान भटकल सन्तति मे भक्ति-भावना आ देव-पितर कर्म मे समर्पणक अभाव रहितो देवाधिदेव महादेव आ हुनक शक्तिस्रोत अर्धांगिनी पार्वती प्रति स्नेहभाव कतहु कम भेल नहि देखाइछ। आइ भोरे सँ हमर चिन्तन मे स्वयं देवाधिदेव महादेव विभिन्न रूप मे छथि। शुरू भेल अछि एक अतिप्रिय ‘पराती’ सँ – उठू हे गौरा, भऽ गेल भाँगक बेरा!!
 
उठू हे गौरा!! भऽ गेल भाँगक बेरा!!
 
नहि हम उठब ईश्वर महादेव
गणपति छथि मोरा कोरा!!!
 
उठू हे गौरा!! भऽ गेल भाँगक बेरा!!
 
नहि अछि तोरो शिव माय रे बहिनियां
किनका के देबनि कोरा!!!
 
उठू हे गौरा!! भऽ गेल भाँगक बेरा!!
 
कहाँ अछि कियो शिव पर हे पड़ोसी
किनका के देबनि कोरा!!
उठू हे गौरा!! भऽ गेल भाँगक बेरा!!
 
पराती के भाव बुझियौ। शिवजी केँ वैरागी, भिखारी, बताह, नंगटा, जोगी आ कि-कहाँदैन नाम देल जाइत छन्हि मिथिला मे। ओ छप्पन भोग आ तरुआ-बघरुआ आदिक भोग नहि लगबैत छथि। हुनका त भाँग-धथूर आदि मे मस्त मानल जाइत अछि। कइएक कवि लोकनि कतेको सदी सँ शिव-पार्वतीक बीच नोंक-झोंक केर अनेकों वर्णन करैत आबि रहल छथि। हम यदाकदा विस्मित होइत छी जे आखिर एना केना सम्भव भेलैक! तखन फेर स्वाध्याय मे अनेकों स्थान पर यैह अभरैत अछि जे गूढ़-सँ-गूढ़तम् ज्ञान मनुष्य केँ शिव-पार्वतीक संवाद मात्र सँ भेटल अछि। मिथिला अर्थात् हिमालय सँ गंगा धरिक पवित्र भूमि, हिमालय राजा आ मैना महारानीक पुत्री पार्वती सेहो एहि मिथिलाक छथि। कैलाशवासी शिव केँ पाहुन आ पार्वती केँ बेटी मानिकय मिथिलावासी अनेकों भाव मे सजल नयन आ भिजल मन सँ गायन करैत रहैत छथि। बहुतो रास पवित्र कथा-माहात्म्य सब अछि जे शिव-पार्वती सँ जुड़ल अछि। एकर सद्यः प्रमाण आइ धरि मिथिलाक्षेत्रक डेग-डेग पर स्थापित शिव मठ आ मन्दिर रूप मे विदित अछि।
समूचा भारतवर्ष मे शिव-पार्वती प्रति श्रद्धा निश्चित अन्य देवी-देवता सँ ऊपर निश्चिते टा होयत, एना हम अनुमान लगबैत छी। हम मिथिलावासी कनेक नजदीक सँ त द्वादश ज्योतिर्लिंग आ अनेकों प्रसिद्ध शिव विचरण स्थल केर अम्बार पूरे विश्व मे सर्वव्याप्त देखि सभक आस्था ओतबे उच्च अछि सेहो कहय मे कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत। वेद आ पुराण संग अनेकों शास्त्र आदि मे शिव-पार्वती केँ सर्वभूताधिवासं – कण-कण मे विराजमान कहिकय गान कयल गेल अछि। मिथिलाक लोकगीत आ लोकजीवन मे हिनका सभक उपस्थिति तैयो हमरा विशिष्ट बुझाइत अछि।
 
आइ एकटा नीक प्रेरणास्पद कथा अपने सब लग राखय चाहब –
 
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥
 
श्रद्धा आ विश्वास केर स्वरूप श्री पार्वतीजी आ श्री शंकरजी केर हम वंदना करैत छी, जिनका बिना सिद्धजन अपन अन्तःकरण मे स्थित ईश्वर केँ नहि देखि सकैत छथि।
 
कि गंगा मे डुबकी लगेला सँ सच्चे पापक नाश होइत छैक?
 
एक बेर पार्वतीजी शिवजी सँ लोकहितक एकटा बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न पुछलखिन्ह। पुराणवर्णित अनेकों शिव-पार्वती संवाद यथार्थतः लोकहित केर निमित्त पुछल गेल प्रश्नहि केर उत्तर शिवजीक श्रीमुख सँ कहल गेल अछि। आजुक प्रश्न भेलनि – गंगा मे स्नान कयला सँ कि सच्चे पाप धुआ जाइत छैक?
 
गंगा मे स्नान करब यथार्थतः पापनाशक कहल गेल अछि, परञ्च नित्य गंगास्नान कयनिहार केँ सेहो पाप मे रत देखल जाइछ। एक बेर शिवजी आ पार्वतीजी हरिद्वार भ्रमण कय रहल छलाह। पार्वतीजी देखलीह जे गंगा मे हजारों लोक डुबकी लगाकय ‘हर हर’ बजैत जा रहल अछि, मुदा तैयो ओ सब कतेको लोक पाप-परायण आ दुःखी बुझा रहल अछि। एहि दयनीय अवस्था आ गंगा स्नान पूरा करनिहार श्रद्धालू सभक दीनता केँ देखि पार्वतीजी शिवजी सँ उपरोक्त प्रश्न कयलथि, ‘गंगा मे स्नान कयलाक बादो एकरा लोकनिक एहेन अवस्था (पापपरायणता आ दुःखी होयब) कियैक छैक? कि गंगा मे स्नान कयलाक बाद सच्चे पाप धुआ जाइत छैक या फेर गंगा मे आब ओ सामर्थ्य नहि रहलनि?’
 
पार्वतीजीक एहि स्वाभाविक प्रश्न आ ओहि भक्त-श्रद्धालू सभक अवस्था देखि शिवजी जवाब देलखिन, “गंगा मे त वैह सामर्थ्य छन्हि। वास्तव मे ई सब स्नान करबे नहि केलक। तेँ एकरा सभक ई अवस्था छैक।”
 
पार्वतीजी आश्चर्य करैत कहलखिन – “स्नान केना नहि कयलक? एकरा सभक त स्नानक उपरान्त शरीरो भिजले छैक। फेर स्नान नहि कयलक ई विस्मयकारी बात अपने केना कहि रहल छी?”
 
शिवजी विहुंसैत कहलखिन – “ई सब मात्र जल मे डुबकी मारिकय आबि रहल अछि। बाकी रहस्य काल्हि बतायब।”
 
दोसर दिन खूब जोर सँ पानि (बरखा) पड़ि रहल छल। एकटा चौड़ा रस्ताक बीच एक गहींर खधारि जेकाँ स्थान मे चारू दिशक थाल सहितक पानि बहि-बहि आबि रहल छल, मानू कोनो मोइन्ह फूटि गेल हो। शिवजी वृद्ध लोकक वेश बनाकय ओहि खधारि मे एना खसि पड़लाह मानू ओ रस्ता पार करैत ओहि मे फँसि गेल होइथ। एम्हर पार्वतीजी केँ ओ समझा-बुझाकय एक सुन्दर स्त्रीक वेश मे ओहि ठाम सड़कक किनार मे ठाढ़ कय गंगा-स्नान कय केँ लौटि रहल भक्त-श्रद्धालू सँ अपन पति केँ बचेबाक अनुनय-विनय करय वास्ते कहलनि। ओ कलखिन जे ‘हे पार्वती! अहाँक विनय केँ एहि कथित भक्त-श्रद्धालू मे सँ बहुत त ओहिना अनसूना कय देत, कहत जे गंगा-स्नान केलाक बाद एहि थाल-पानि मे के पैसत…. आ जँ कियो पैसय लागय त कहबैक जे हमर पति आजीवन निष्पाप रहल छथि, से कियो निष्पापी मात्र हिनकर देह मे हाथ लगा सकैत छी, नहि त स्वयं जरिकय भस्म भऽ जायब। एतेक कहिते के निष्पापी होयत से परीक्षा स्वतः भऽ जायत।’
 
पार्वतीजी सुन्दर स्त्रीक वेश मे आ ओम्हर शिवजी एक असहाय वृद्धक रूप मे ओहि खद्धा मे खसल सहारा लेल पुकार लगा रहला अछि। गंगा स्नान सँ लौटि रहल हजारों भक्त-श्रद्धालू मे सँ लगभग ९०% लोक ओहिना अनसूना कय दैछ मानू गंगा स्नान उपरान्त थाल-पानि मे पैसब ओकर सरोकारे नहि, कोनो असहाय मानव प्रति दयाक कोनो भावना नहि। कतेक लोक त एहेन घोर पापी जे पार्वतीजीक सुन्दरता पर मोहित पार्वतीजी केँ उल्टे कहनि जे कि एहि बुढ़बा घरवला लेल परेशान छी… भसियाय दियौक एकरा! तथापि किछु दयालु टाइप के लोक जे ओहि वृद्ध केँ निकालय चाहैत अछि आ कि पार्वतीजी सुना दैत छथिन जे हौ बाबू जे कियो निष्पाप होइ वैह टा हमर घरवला केँ छूबाक चेष्टा करब, कनियो टा पाप कएने होयब आ हुनका छूअब त अपने भस्म भ’ जायब…. आब ओहो सब दुविधा मे पड़ि जाय जे कहीं न कहीं हमरा सँ कोनो न कोनो पाप त भेबे कयल होयत, कियैक ई रिस्क ली तखन।
 
बीच-बीच मे शिवजी पार्वतीजी सँ कनखियाइत मोन पाड़ि देल करथिन जे देखू, दिन बितैत कय गोट गंगा स्नान करयवला निष्पापी भेटल एखन धरि। ता धरि एकटा युवा गंगा मे डुबकी मारिकय लोटा मे जल भरने शिवजी केँ पूजा करबाक लेल जा रहल छलय। स्त्रीरूपी पार्वतीक आ ओहि बुढ़बारूपी शिवजीक आवाज सुनि ओ हुनका बचबय लेल दौड़ि पड़ल, ता पार्वती ओकरा रोकैत कहलखिन जे देखब बाउ, जँ निष्पापी होइ तखनहि हमर घरवला केँ हाथ लगायब… नहि त स्वयं जरिकय भस्म भऽ जायब, हमर घरवला आजीवन निष्पापी रहला अछि। युवा बिना ठमकने आगू बढैत खाली एतबी बाजल जे देखय नहि छी जे हम एखनहि गंगा मे स्नान कय केँ निष्पाप भऽ कय निकलिकय एलहुँ अछि…. आब बाबा केँ पूजा करय जा रहल छलहुँ ता बीच मे एना किनको फँसल देखि अपना केँ रोकि नहि सकलहुँ… अहाँ निश्चिन्त रहू, हमरा किछु नहि होयत आ हम अहाँक पतिक रक्षा सेहो कय सकब।
 
बस, दिन भरि मे वैह एक युवा जखन ओहि वृद्ध केँ खद्धा सँ निकालि अनलक तखन शिव आ पार्वती ओकर निश्छलता आ निष्पाप होयबाक यथार्थ केँ बुझि ओकरा दर्शन-आशीर्वाद सँ ताड़ि देलनि।
 
आब हमर-अहाँक पारी अछि। हम-अहाँ ई बुझी जे हमर पाप आ निष्पापक हिसाब कि अछि। गंगा स्नान या भक्ति-भावनाक पाछू हमर दृढ़-विश्वास कि अछि। ॐ तत्सत्!! हरिर्हरिः!!
 
हरिः हरः!!