“दहेजक दोषी”

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किरण लता झा।                     

बारहवीं के परिणाम निकल गेल छल, दिव्या के साईकिल के घंटी स़ बुझा गेल छल, घर में घुसते चेहरा पर आत्मिक प्रसन्नता सबटा बता रहल छल | खुशी के मारे दिव्या कहली, हम आगू पढ़ब , हमरा पढाई में सरकार भी मदद करत , हम प्रथम श्रेणी स़ पास केलऊ ह़ | माता- पिता सहमति द़ देला, दिव्या कालेज में दाखिला ल़ लेली और आगु के पढाई कऱ लगली | ताही बीच में पीसी ओत़ एकटा बिवाह में सपरिवार गेली, ओत़ पीसी के दियादिन के बहिन से हो सपरिवार उडीसा स़ आयल छलि | दिव्या हुनका अपना सीए बेटा लेल पसंद आईब गेली, और ओ विवाह लेल अपना मत में दिव्या के क़ लेली, जे हम अहां के पुतोह बनाब़ चाहई छी, अहां के हम पढायब , अहां जत़ तक पढ़ चाहब | दिव्या के माता- विवाह लेल तैयार नई छला, परिवार में विवाह के ल़ क़ बहुत विरोध कयल गेल, मुदा लड़का पक्ष स़ बिना दहेज के मात्र विवाह राईत के खर्च पर विवाह क़ लेब पर एते दबाव देल गेल, एते पईघ, पईघ बात कहल गेल कि हुनको सबहक मन डोल गेलईन, कि बेटी के नीक घर, वर के प्रस्ताव इ कहि क़ देल जा रहल अईछ जे पढाई के जिम्मेदारी हम लेब, त़ ओहो सब राजी भ़ गेला | दिव्या के विवाह भ़ गेलईलन
विवाह में बरियाति सब बहुत तमाशा केला जेना कि, बुफे में न ई खायब,गर्मी अई कूलर के वयवस्था करू, तते नं झगड़ा पसार देलथ जे, जयमाला नई भ़ सकल और झट, पट में विवाह क़ क दिव्या के बिदा कऱ पड़लईन , खैर दिव्या सासुर त़ गेली, बहुत समपन्न परिवार छल, मुदा सास कहली जे हम सब बेड़-टी पिया ई छी आई स़ इ अहां के जिम्मेदारी भ़ गेल, हमर सबहक देखरेख केनाई | आब बेचारी कि करती सासुर के जिम्मेदारी देखथ कि अपन पढाई, याकि वैवाहिक जीवन बचाबथ, छोट उम्र में संबंध क जाल में फंस गेली, बेर, बेर हुनका ई समाद नईहर देब़ लेल कहल जाइन जे, पूरा गृहस्थी के सामान मांगू माय -बाप स़ नईत़
माय-बाप स़ भेट त़ दूर फोन पर बात नई कऱ देब| एहि बीच दिव्या के एकटा बच्चा से हो भ़ गेल ईन, आई हालत ऐहन छई जे माय-बाप- बेटी एक दोसरा स़ भेट कि? देख़ लेल तरस गेल छथ, बेटी बताह बईन कुहक रहल छई, त़ माय-बाप अंदरे – अंदर कुहकई छथ | समाज के लाज स़ कियो किछ नई कह रहल छथिन | दिव्या के आत्मविश्वास खत्म भ़ चुकल छईन | बस बांचल छई त़ सिर्फ खून के संबंध |

एहि सत्य कथा स़ बस हमर एतबे प्रशन अई जे
दोषी कौन ??
समाज के लाज स़ बेटी किया नई आगू फैसला ल़ सकई छथ ?
माय – बाप किया अपन घर क़ दरवाजा बंद क़ लेई छथ ?
समाज के किया चुप भ़ जाय पड़ई छई ?
एकर निदान कि ?
हम सब कत़ छी ?
किरण लता झा 🖋