मिथिला के भोर जरूर हेतय

दर्शन-विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

अपनहि हाथ मे सब बात होइछ दिन बितैत जा रहल अछि। दिन-दिन जिम्मेदारी बढ़ैत जेबाक फील (अनुभूति) सेहो भ’ रहल अछि। उच्च रक्तचाप के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याक अतिरिक्त चिन्ता आ तनाव केर कतिपय स्थिति नहियो चाहैत बेर-बेर आबि जाइछ सोझाँ। एहेन सब स्थिति मे अपना मात्र केँ सन्तुलित आ नियंत्रित करबाक अलावे आन कोनो मेडिसिन (औषधि, उपाय) नहि देखाइछ। ई त भेल अपन बात।

जाहि समाज मे जन्म भेल ताहि ठाम सेहो कइएक रोग आ संक्रमण देखि आश्वस्त हेबाक बदला घबराहट बढि जाइत अछि, घोर भौतिकतावादी युग केर आगमन भेलाक कारण सँ विदेहक भूमि, भाषा, भेष, भूषण, भरोसा काफी कमजोर अवस्था केँ प्राप्त होइत देखि रहल छी। एहेन वितृष्णाक अवस्था मे राति नीन्द टूटि जाइछ त बस भगवन्नाम सुमिरन के सूत्र पर आराम भेटि गेल करैछ। मात्र प्यास लगबाक समस्या मे स्वयं केँ फँसाबी तेहेन अपरोजक त बिल्कुल नहि छी, होश कय केँ उठैत छी, ठाढ़ भ’ पानि दिश दौड़िकय जरैत कंठ आ सुखाइत मुंह केँ शान्त करबाक यत्न करैत छी।

कहबाक तात्पर्य जे सिर्फ निराशा आ नैराश्यता मे स्वयं जँ हिम्मत नहि करब त वैह बात होयत जे प्राणान्तक प्रतीक्षा मे असहाय-अथबल मृत्युशय्या मे पड़ल रहू, नर्कक भोग भोगैत रहू, अपनो परिचर्या नहि करयवला दुर्बल काया केँ चिता पर चढैत स्वयं दर्शन करैत रहू।

खुजल आँखि, हकमैत छाती, नचैत माथा, थरथराइत कर्मेन्द्रिय यानि हाथ-पैर-मुंह-देह-माथ सबटा थरथर-थरथर कँपैत रहत आ अहाँ दीन-दुःखी-बीमार जेकाँ सबटा झेलैत रहू। एहेन नहि हो ताहि लेल सजग रहनाय बड जरूरी छैक। नहि त भोगहे टा पड़त।

जाहि पवित्र भूमि ‘मिथिला’ मे जन्म लेलहुँ तेकर अवस्था मे ऊपरका सारा लक्षण उच्च रक्तचाप, तनाव, अवसाद, अनिन्द्रा, वृद्ध कारुण्य अवस्था, ई सारा विद्यमान अछि। क्षणे-क्षणे प्यास लगैत रहबाक अत्यन्त विचित्र दुःख सेहो प्रत्यक्षे देखाइत अछि। लेकिन रातिक अन्हरियाक पह फटैत देखि रहल छी। पूब दिश सँ सूर्यक लालिमाक झलकी देखा रहल अछि। लागि रहल अछि जे मिथिला शरीर मे नव प्राणक संचरण भऽ रहल छैक। उठिकय घैला सँ जल पीबाक लेल बीमार मिथिला सेहो तत्पर भऽ रहल अछि। एना लागि रहल अछि मानू एक घोंट जल अपने सँ पीबि लेत त जीवन वापस आबि जेतैक।

धियापुता सब त बानूर भऽ गेल छैक… कराहैत बुढ़बा केँ जल तक देनिहार कियो नहि छैक… लेकिन एकटा जत्था छैक जे दूर सँ भोरहरिया मे बुढ़बे दिश आबि रहलैक अछि, से कनेक धम्मक सुनाय दय रहल अछि। #जनगणाना मे अपन मातृभाषाक सम्मान लेल हल्ला करिते आबि रहल अछि, #मिथिलाराज्य लेल डीजे पर गीत लगौने गबिते-नचिते आबि रहल अछि। जन-जन केँ जगबिते आबि रहल अछि। हेतय भोर, जरूर हेतय। कतहु रुकि टा नहि जाय… एतबे टा बात छैक। चरैवेति-चरैवेति!! हरिः हरः!!