मिथिला मे आब होबय लागल अछि फिल्मी विवाहक विध-व्यवहारः एक रोचक समीक्षा

विवाहक रस्म-रिबाज – मिथिला आ आन संस्कृति

 
विवाह मानव जीवनक एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आ सभ्य संस्कार होइत छैक। सृष्टि केँ निरन्तरता देबाक लेल सन्तान उत्पत्ति आ कुल-पीढी केँ निरन्तरता देबाक लेल नारी आ पुरुष केँ आपस मे वैवाहिक जीवन मे प्रवेश करबाक अनुशासन सर्वविदिते अछि।
 
मानवोचित हरेक संस्कार – चाहे विवाह, उपनयन, मुड़न, छठिहार, आदि विभिन्न संस्कार लेल अपन मिथिलाक पान्डित्य (कर्मकाण्ड) संग लौकिक विध-विधान केर विलक्षणता अत्यन्त विशिष्ट आ वेदानुसार कहल गेल छैक। महान मनीषिगण सब मिथिलाक परम्परा प्रति निर्णीत स्वर मे सूत्र देलनि – ‘लोकाचारः सः वेदः’।
 
परञ्च मिथिला संस्कार आइ लोपोन्मुख भऽ रहल अछि। कियैक? कियैक तँ एहि ठामक वर्तमान पीढी अपन पुरुखाजनक सुविज्ञ मार्ग केँ छोड़ि ‘हिन्दी फिल्म आ धारावाहिक निर्दिष्ट मार्ग’ तथा ‘पलायन लेल बाध्य प्रवासी मैथिलजन द्वारा शहरी आ बाहरी रिबाज परम्पराक अपनेबाक व देखेबाक प्रवृत्ति’ केर अफीमी आकर्षण (एक तरहें खतरनाक नशा) मे आकन्ठ डूबल देखाइत अछि।
 
विवाह आब यज्ञ कम आ दोसर केँ देखबय वला आडम्बरी नौटंकी बेसी भऽ गेल अछि। विवाह सँ समूचा जीवन प्रभावित आ प्रेरित होयत, आगाँक पीढी यानि सन्तान आ सन्तति आओत, ओकरो जीवन केर संस्कार आ समृद्धि आजुक एक विवाह सँ परिभाषित होयत – ततेक दूर धरि देखनाय छोड़ि आब हम मिथिलावासी बस अपन सख आ मौज टा देखय लागल छी।
 
शायद बुझल हो बहुतो लोक केँ – धोती पहिरबाक सेहो एकटा अनुशासन आ पान्डित्य छैक। धोतीक खूट खुजल आ हवा मे उड़ियाइत नहि छोड़ल जाइछ, जेना हम सुनलहुँ जेठ-श्रेष्ठ सँ। धोतीक चारि खूट बढियाँ ढेका मे खोंसल रहबाक चाही। ढेका मजबूत रहबाक चाही। दुती वस्त्र आ शरीर पर पहिरल जायवला हरेक परिधान केर शुद्धीकरण उपरान्त मात्र धारण कयल जेबाक चाही। शिरस्त्राण (पाग, पगड़ी, मउर, आदि) सिर पर निश्चित धारण कयल जेबाक चाही। दुइ प्राणी केँ एकाकार करबाक आरो वेष्ठन (गुहामाला, रक्षासूत्र, डरकस, पायल, बिछिया, औंठी, गलहार, टीका, कनबाली, नथनी, आदि) सँ शरीर केँ कसल जेबाक प्रक्रिया अछि।
 
लेकिन ई सबटा साहित्य वर्तमान अफीमी आकर्षण (फिल्मी शैली) मे लगभग बर्बाद भऽ गेल। हँ, गोटेक समुदाय यथा श्रोत्रिय ब्राह्मण मे विवाह देखाबा कम यज्ञ अधिक केर बाट पर चलि रहल हो त आब अपवाद रूप मे गानल जायत। अवस्था एतेक बेसी विकृत भेल अछि। कारण अपने सब कियो पाठक लोकनि स्वतः मन्थन कय सकैत छी, हमरा बेर-बेर दोहरेबाक जरुरत नहि बुझा रहल अछि।
 
किछु दिन पूर्वहि एकटा उदाहरण (मैथिल ब्राह्मणक विवाह मे हल्दी-मेंहदी) केर किछु चर्चा भेल छल। वर्तमान युग मे ‘आपरुचि भोजन, पररुचि श्रृंगार’ केर ठीक विपरीत आपरुचि श्रृंगार आ मनमौजी विध-विधान केर अवस्था देखि हम किनको ऊपर कोनो टिप्पणी करय सँ ओहिना बचय चाहैत छी जेना आइ हमर मिथिला समाज सारा विकृति केँ देखिकय मोने-मन प्रतिक्रिया दैत उल्टा लोकक मनमौजी मे संग दैत अछि, बुढबो-बुढिया सब छौंड़ा-छौंड़ी नाच करैत अछि, पंजाबी भांगड़ा आ गुजराती दांडिया पर गीत-संगीत आदिक आयोजन करैत अछि। के बाजत? कियैक बाजत? कोन नैतिकता पर बाजत? के केकर सुनैत छैक? जेकरा जे मोन होइत छैक से करैत छैक! ई यथार्थ थिकैक।
 
हम सोचलहुँ जे नवका पीढी द्वारा आख्तियार कयल गेल फिल्मी विवाह परम्परा मे सेहो किछु विज्ञान त हेब्बे करतैक। कम सँ कम अपन मोन मना ली – देखी जे कि सब छैक। आउ, एक बेर हमरा संगे अपने सब सेहो ई नवका विधान आ एकर आध्यात्मिक साहित्य-स्वरूप देखू।
 
१. हल्दी-उबटनः आइ-काल्हि विवाहक विध हल्दी-उबटन सँ आरम्भ कयल जाइत छैक। कारण हिन्दी फिल्म आ धारावाहिक सब जे बाहरी संस्कृति मे पहिल रस्म (रिबाज) दूल्हा-दूल्हिन केँ हरैद लगबय सँ शुरू करैत अछि। एहि लेल सोहागिन स्त्रिगण सब केँ बजायल जाइत अछि। बहुतो लोक सोचैत छथि जे हल्दी सँ बनल उबटनक लेपन सँ चेहरा मे निखार अबैत छैक, मुदा एकर पाछाँ गुणीजन कहैत छथि जे विवाह जेहेन उत्सव मे बहुतो लोक अबैत अछि आ कय तरहक वायरस (विषाणु) या रोगादि सँ संक्रमित लोक सेहो एबाक संभावना रहैत छैक, तेँ ई हल्दी लगेला सँ वर-कन्याक रोग निरोधी क्षमता बढबाक आ खतरनाक संक्रमण सँ बचेबाक काज सेहो करैत छैक। ई भेल हल्दी!
 
२. मेहंदीः हल्दी लगेलाक बाद मेहंदी लगबैत छथिन सोहागिन स्त्रिगण लोकनि। मेहंदी लगेबाक सम्बन्ध मे गुणीजन कहला कि मेहंदीक रंग जतेक नीक सँ चढल ओतबे नीक आ सुमधुर विवाहित जीवन होयबाक भावना छैक। आर, विवाह सम्बन्ध बनबाक समय मे अन्दर-अन्दर टेन्सन सब सेहो कतेको प्रकारक पूर्व जीवन आ नव जीवन बीच दिमाग मे अबैत रहैत छैक, से जखन मेहंदी के रंग देखैत छैक त शान्ति भेटैत छैक। पता नहि! अनुभवी व्यक्ति नीक सँ कहि सकता, हमरा सब त बस अकानिये टा सकैत छी, सहिये मे होइत हेतैक!
 
३. भात देनायः मामागाम सँ जे भार आ सगुनक सामान सब अबैत छैक तेकरा कहल जाइत छैक भात देनाय। गुणीजन कहला कि सब सँ पहिने कृष्ण जी सुदामा जीक बेटीक विवाह मे मामा बनिकय ‘भात’ देने छलखिन्ह। एकर आध्यात्म जे मामागाम सँ माय आबिकय जहिना तोरा सभक जन्म दय जीवनयापन करैत एतेक बड़का बनेलखुन, तहिना आगू तोंहू सब अपन गृहस्थी मे सन्तान सभ केँ अनिहें – ओकरा सब केँ फलित-फूलित करिहें। ई साहित्य हम अपने मोने जोड़ि देल, कारण गुणीजन कहला जे सब बातक कारण हमरे सँ खोजब से हमरो न बुझल रहबाक चाही! हम विहुंसैत कहलियनि जे डोन्ट वरी, हमहीं जोड़ि दैत छी। ओना ई भात देबाक विध एखन धरि अपने सब कतहु मैथिल सब मे सुनलहुँ हँ या नहि? मामागाम सँ त किछु महत्वपूर्ण विधक सामान त अबिते हेतैक? कि कोना?
 
४. दूल्हाक सवारी घोड़ीः दूल्हा केँ घोड़ी पर बैसाकय दुआरि लगायल जाइत छैक। मिथिलाक किछु लोक सब गाड़ी मे सँ दूल्हाक सार के कोरा मे उठबाकय सजल जनमासा मे दूल्हाक स्थान धरि लय जाइत छन्हि। पता नहि! किछु हेतैक तेहने सन बात। दूल्हिन सँ पहिने सारे सब दूल्हा केँ चेकचाक करय लेल एना छू-छा करैत हेथिन। ओना फिल्मी विवाह विधि मे घोड़ी पर एहि लेल बैसेबाक बात गुणीजन कहलथि जे सब जानवर मे घोड़ी बेसी चंचल आ कामुक भेल करैत छैक, से दूल्हा एहि पर बैसता त ई दू काज नहि करता। हमरा मोन मे सवाल उठल जे दूल्हा घोड़ी जेकाँ उचकपनी करयवला अवस्था मे त नहिये टा रहैत छथि, कारण आब ओ असगर नहि दू प्राणी एक बनता से भारवहनक भय मे गुम्म रहल करैत छथि। अपनो मिथिलाक लोक शहर या रिसौर्ट मे ब्याह करैत हेता त घोड़ी ओ इवेन्टवला सँ मंगिते हेताह जाहि सँ चंचलता आ कामुकता पर संवरण रहनि। पाठक सब नीक सँ कहि सकैत छी। एकर आध्यात्म ईहो भऽ सकैत छैक जे कनियाँ जँ घोड़ी जेकाँ बेसी चंचल आ कामुक हेथिन त पीठ पर बैसिकय सवारी कसय मे दूल्हा सक्षम होइथ ताहि लेल विवाह बेर मे घोड़ीक पीठ पर हिनका बैसायल जाइत छन्हि? खैर जे जेना…! ई विध फिल्मी विवाह मे अछि।
 
५. गणेश पूजाः विवाहक विध शुरू करबाक लेल गणेश भगवानक पूजा कन्याक माता-पिता द्वारा कयल जाइछ। मिथिला मे मातृका पूजा – १६ टा देवी, ३ पीढी केर पितर पैतृक आ मातृक मे पुरुष आ नारी अलग-अलग…. कतेको ग्रह आदिक पूजा-शान्ति करबाक विधान अछि। गौरी-गणेश-अम्बिका त प्रथम पूज्य छथिये।
 
६. जयमालः तेकर बाद होइत अछि वर आ कन्या द्वारा एक-दोसर केँ माला पहिरेबाक विध – यानि ‘जयमाल’। एकरा मिथिला मे एखन जोर-शोर सँ स्वयंवर कहल जा रहलैक अछि। अर्थ कनी अटपटा सन छैक, मुदा जे कहल जाइत छैक से कहलहुँ हम। कियो-कियो लाजे कनी सखी-बहिनपा सभक संग परिछनक विध संग जोड़िकय स्वयंवर थोड़ेक कात-करोट मे करैत छथि, से गाम-घर मे। मुदा शहर मे शूटिंग ढंग सँ आ सभक सोझाँ मे होइ, विवाहक फिल्म सुपर डुपर हिट बनैक ताहि लेल खुला सभा (जनमासा) मे बरियाती-सरियाती सभक सोझाँ डिजाइन-डिजाइन के सेट लगाकय करैत छथि… किनको हाइड्रोलिक गियर वला सजल प्लेटफार्म पर बैसाकय कनी ऊँच उठाकय आ फेर सटाकय… बीच मे कनिकबो गड़बड़ा गेल त फेर कैमरामैन के इशारा पर रिटेक करबाकय शूटिंग बेसी आ एक-दोसर प्रति समर्पण-अर्पण कम, धरि स्वयंवर बड रोचक विध आ काफी तेजी सँ लोकप्रियता हासिल कय रहल अछि। जे जतेक पायवला लोक से ततेक बढिमका स्वयंवर स्टेज बनबाबैत छथि। नाम नहि लेब, मुदा हमर परिचित लोक सब मे हुनकर बेटीक एहेन स्टेज त हमर बेटीक एहेन स्टेज वला होड़बाजी सेहो देखलहुँ। एकर आध्यात्म ई छैक जे समुद्र मंथन सँ जखन लक्ष्मीजी बहरेलीह आ ओ भगवान् विष्णु केँ वरण कयलीह त हुनका लोकनि एक-दोसर केँ माला पहिराकय, लक्ष्मीजी द्वारा विष्णु भगवान् केँ वरमाला पहिरा स्वयं केँ हुनका प्रति समर्पित कयल गेल छल आ विष्णु भगवान् द्वारा हुनको माला पहिराकय अंकमाल करैत धर्मपत्नी बनायल गेल छल। साहित्य नीक छैक। तखन ओ रिटेक… कट, कैमरा, शूट… ई फिल्मी शैली मे केहेन समर्पण आ अर्पण भेलैक से हम एखन धरि निर्णय नहि कय सकलहुँ अछि।
 
७. सात फेराः आब जे विध होइत अछि फिल्मी विवाह मे से थिक ‘सात फेरा’। सर्वाधिक महत्वपूर्ण विध यैह थिक। एहि मे दूल्हा आ दूल्हिनक वस्त्र केँ एक-दोसर संग बान्हि (जुड़बन्धन) कय आपस मे एक कयल जेबाक प्रथमतः आध्यात्म निहित अछि। तदोपरान्त एक भेलहुँ आ आब एक-दोसर प्रति कोन-कोन मुख्य कर्तव्य पूरा करब से अग्निकुन्डक चारू दिश घुमैत शपथ लिय। मिथिलाक विवाह मे कनियाँक पैर पकड़ि सात गोट घर (अरिपन सँ बनायल घर) मे रखैत ई विध कयल जाइत छैक, अग्निकुन्डक फेरा सेहो शायद ३ बेर ‘दाय लाबा छिड़ियाउ, बाउ बिछि बिछि खाउ’ कहिकय कयल जाइत छैक…। पता नहि! नीक सँ बुझिकय फेर कहियो लिखब। त सात फेरा मे पहिने ३ बेर कनियाँ आगू आ फेर ४ बेर वर आगू रहैत एक-दोसर केँ ७-७ गो वचन दैत गृहस्थी प्रति निष्ठा जतबैत छैक। एहि ७ गो वचन केँ जे पूरा करैत अछि ओ जरूर गृहस्थी सफल करैत अछि।
 
८. सिन्दूर दानः वर द्वारा कन्याक सीथ मे सिन्दूर देबाक विध त मिथिलो मे अछि, तखन फिल्मी ब्याह मे ई बड़ा संछेप आ बेसी तितम्भा कएने चट मंगनी पट ब्याह वाली हाल मे होइछ। आध्यात्मिक महत्व ई छैक जे ब्रह्मरंध्र केर स्थान पर सिन्दूर लगेला सँ मस्तिष्क नियन्त्रित आ पति प्रति समर्पित रहैत छैक। माथा मे कोनो उपद्रवी बात पति वाहेक नहि अबैत छैक। संगहि सिन्दूर लागल रहला सँ सामाजिक मान्यता जे फलाँ स्त्री फलाँ पुरुषक विवाहिता थिकैक सेहो होइत छैक। मिथिला मे त पहिने भुसना, फेर ४ दिनक कठोर व्रत (अनोना) आ तखन चतुर्थी वला पकिया विवाह के पकिया सिनूर! बुझि रहल छी न? केकरा पास एतेक समय छैक आइ? नोट कमेनाय कम नहि पड़ि जेतैक? से बात!
 
९. जुत्ता नुकाइ आ तकायः आर आब होइत छैक असल मजा वला विध फिल्म मे, जखन विवाह मंडप पर दूल्हा चढैत छैक त स्वाभाविके अपन पैरक जूत्ता मड़बा सँ नीचाँ खोलैत छैक, तेकरा दूल्हाक सारि सब नुकाकय राखि दैत छैक। फेर सब विध भऽ गेलाक बाद आफियत पेबाक आ आपस मे सम्बन्ध हँसी आ मसखरी सँ प्रगाढ़ करबाक लेल दूल्हाजी सँ जूत्ता ताकय लेल कहल जाइत छन्हि। जूत्ता त सारिये सब वापस करथिन, ताहि लेल किछु नेग (चढावा) सारि सब केँ देबय पड़ैत छन्हि, खूब फेका-फेकी चलल, आर अन्त मे जूत्ता वापस करैत नवका दूल्हाजी अपन सासुर मे रमैत छथि। मिथिला मे सेहो ढाकन-चोरी व किछु एहि तरहक विध-व्यवहार एक्के दिन नहि बल्कि चारि-चारि दिन होइत छैक, मौहक, सौहक… कि कहाँदैन… धू, आब एतेक केकरा समय छैक। नोट कमेतैक आ कि ई विध सब करतैक! से बात!!
 
ई सबटा विध-विधान आइ मिथिला मे लोकप्रिय भऽ रहल अछि, लोक एहि सब विध केँ स्वतंत्रता आ स्वच्छन्दता सँ गाम मे नहि कय सकैत अछि, तेँ कनी हंटिकय कोनो शहर मे, कोनो रिसौर्ट मे, विवाह स्थल मे, बैन्किट सभागार मे… ताहि ठाम जाय केँ करैत अछि। भगवती कुलदेवी आ नवग्रह आ कि गौरी-गणेश-अम्बिका आदिक पूजा सेहो भाव सँ एकटा फूल अर्पित कय केँ भऽ गेल त भऽ गेल। मूल बात जे विवाह के वीडियो मे आ फोटोग्राफी सब मे पोज देनाय आ खूब जमिकय फोटोग्राफी केनाय बेसी जरूरी छैक, ई जतेक नीक होयत, विवाह बुझू ततेक बढियाँ भेल। भले विवाह टिकय कम्मे दिन… ताहि लेल नो प्राब्लम… लेकिन जहिया भेल तहिया जमिकय हेबाक चाही। केयर डैम! नहि टिकल त फेर दोसर हेतैक, आर बेसी मजा अओतैक। ई थिक हमरा सभक बदलैत मिथिला, हँसैत मिथिला, बढैत मिथिला!! दिल्ली मे मिथिला, चेन्नई मे मिथिला, बंगलुरू आ लंडन मे मिथिला। ॐ तत्सत्!
 

हरिः हरः!!