मातृभाषा मैथिली प्रति समर्पण आ सेवा केर १०० वर्ष पूर्ण

मातृभाषा लेल समर्पण केर १०० वर्ष

मैथिली भाषा-साहित्यक इतिहास मे मातृभाषाक रूप मे मैथिलीक संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धनक अभियान लगभग १९२० ई. मे शुरुआत भेल छल। विद्यापति केर ‘देसिल वयना सब जन मिट्ठा’ केर उद्घोष संग अपन भाषाक प्रति जनजागरण केर अभियान सेहो एहि आसपास १९२०-३० केर बीच मे मानल जाइत अछि। एहि तरहें मातृभाषा लेल समर्पण संग विभिन्न कार्यक्रम आ आधुनिक सृजनकर्म केर आयु करीब १०० वर्ष एहि २०२० मे पूर्ण भेल कहि सकैत छी।

 

१९२० ई. केर आसपास भारत मे ब्रिटिश हुकुमत सँ आजादी लेल भारतीय कांग्रेस केर महत्वपूर्ण अधिवेशन सेहो भेल छल। हिन्दी भाषा केँ राष्ट्रभाषाक रूप मे मानबाक आ मैथिली भाषाभाषी क्षेत्र केँ सेहो हिन्दी पट्टी मे समेटबाक कार्य विगत केर किछु दशक मे तात्कालीन राष्ट्रीय नेतृत्व सभक आह्वान पर ता धरि भऽ गेल छल। लेकिन मात्र किछेक जाग्रत विज्ञजन आ ताहि समय मे आधुनिक शिक्षा प्राप्त कय रहल युवा सभ अपन मातृभाषा लेल अगुवाई कयलनि आर हिन्दीक कारण अपन मैथिली केँ हिन्दीक बोली बनेबाक षड्यन्त्र केर पर्दाफाश कयलनि। निज मातृभाषाक अस्तित्व केर रक्षा लेल ओ लोकनि आह्वान कयलनि एहि बातक जिकिर भेटैत अछि।

 

डा. हेतुकर झा केर प्रसिद्ध लेख ‘EliteMass Contradiction in Mithila in Historical Perspective’, in. Sachidanand.(ed.), Elite and Development, New Delhi, 1980, pp. 187-205 तत्कालीन अवस्थाक बखूबी वर्णन कयल गेल अछि। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे मिथिलाक योगदान, हिन्दी केँ राष्ट्रभाषाक रूप मे सम्मान संग स्वीकार्यता प्रदान करबाक स्वाभाविक मानसिकता, परञ्च जखन हिन्दीक बोलीक रूप मे मैथिली समान प्राचीन साहित्य भंडार सँ परिपूर्ण भाषा केँ दमन करबाक बात भेल तखन ई विद्रोह आरम्भ भेल। ई कथन हालहि प्रकाशित शोधालेख सँ ज्ञात भेल अछि। Language, History, Nation, and the Imaginary of Maithili Identity – डा. मिथिलेश कुमार झा अपन शोध द्वारा एहि विन्दु केँ प्रकाश मे अनलनि अछि।

 

‘मैथिल’ पहिचान प्रति सजगताक बात सेहो एहि कालखंड सँ भेल कहि सकैत छी। मिथिला राज्य केर मांगक बात पहिल बेर १९४० मे भेल छल। पुनः भारतक स्वतंत्रताक तुरन्त बाद ई मांग सदन मे सेहो पहुँचल। राज्य पुनर्गठन आयोग केर मुखिया फजली अहमद सेहो अपन प्रतिवेदन मे मिथिला राज्य केर मांग केवल प्रबुद्धवर्गक लोक केर रहल उल्लेख कएने छथि। जखन कि ताहि आयोग सँ पूर्वहि डार आयोग द्वारा राज्य पुनर्गठन लेल मात्र भाषाक आधार पर कोनो राज्यक गठन नहि कय ‘जनभावना’ – लोकक इच्छा अनुसार गठन करबाक सुझाव नेहरू सरकार केँ देने छल।

 

विदित हो जे १९२० केर कांग्रेस अधिवेशन मे भाषाक आधार पर राज्य केर पुनर्गठन करबाक बात कयल गेल रहय। एतबा नहि, १९४५ मे सेहो कांग्रेस द्वारा जारी घोषणापत्र मे सेहो भाषाक आधारपर राज्यक पुनर्गठन करबाक बात कहल गेल छल। मुदा स्वतंत्रता पछाति एहि विन्दु पर आपस मे सहमति-विमतिक द्वंद्वक कारण डार आयोग आ तदोपरान्त फजली आयोग केर गठन करैत भारतीय गणतंत्र मे राज्य स्थापनाक इतिहास निरन्तरता मे भेटैत अछि।

 

मैथिली भाषा हिन्दीक बोली नहि थिक एहि लेल बहुत रास प्रयास करय पड़ल छैक। डा. अमरनाथ झा द्वारा डा. राजेन्द्र प्रसाद आ डा. सच्चिदानन्द सिन्हा समान प्रखर नीति-निर्माणकर्ता आ परामर्शदाता केर विचार प्रति असन्तोष जनबैत १९३५ ई. केर अधिवेशन मे ‘नोट अफ डिसेन्ट’ लिखल जेबाक चर्चा सेहो भेटैत अछि। डा. सुभद्र झा आ डा. जयकान्त मिश्र समान प्रखर भाषाविद् द्वारा भारतक कय गोट भाषा सम्मेलन मे पहुँचि मैथिली स्वतंत्र भाषा थिक ताहि पर विशद-विहंगम कार्यपत्र प्रस्तुत करबाक बात कियो नहि बिसरि सकैत छी। डा. सुनीति चटर्जी सँ लैत ब्रिटिश, स्कौटिश ओ अन्य भाषा वैज्ञानिक लोकनिक पूर्वाधार सेहो मैथिलीक पक्ष केँ मजबूती देलक। आर एहि तरहें मैथिली संघर्ष करैत-करैत राजनीतिक कतेको झेल-झंझटि केँ फँगैत कोहुना २००३-०४ मे आबि संविधानक आठम अनुसूची मे ‘स्वतंत्र भाषा’ केर रूप मे स्थापित भऽ गेल।

 

जे सब संघर्ष मे विद्यमान छलाह ओ सब अन्तहु धरि वाजपेयी जीक एकटा आन्तरिक चिन्ता जे ‘तब हिन्दी का क्या होगा?’ एकर उल्लेख करबाक दृष्टान्त सुनबैत छथि। माने जे हिन्दी केँ स्थापित करबाक लेल मैथिली केँ जानि-बुझिकय गाँथल जेबाक एकटा दृष्टिकोण २०म शताब्दीक प्रारम्भहि सँ हावी रहल आ एखन धरि कतेको प्रबुद्ध हिन्दी पक्षधर मैथिलीक स्वतंत्रता सँ हिन्दी कमजोर हेबाक चिन्ता रखैत रहैत छथि। सामाजिक संजाल मे सेहो कय गोट बहस बड़ी जोर-शोर सँ हिन्दी वर्सेज मैथिली कय बेर आयल देखल गेल अछि। लेकिन एक्के टा नीक संयोग कि अछि जे हरेक मैथिलीभाषी अपन योगदान सँ हिन्दी केँ सेहो पोषण देबाक युक्तिसंगत आ वांछित सृजनकर्म केर प्रदर्शन सेहो करैत छथि।

 

माय संग मौसी सभ केँ सेहो ओतबे सम्मान दैत रहैत छथि। ताहि सँ ओहि तरहक शंका आ दुविधा व्यक्त कयनिहार व्यक्तित्व सब केँ मुंहतोड़ जवाब भेटैत रहैत अछि। मैथिलीभाषी सिर्फ हिन्दिये नहि, कम सँ कम संस्कृत, भोजपुरी, नेपाली व अन्य समीपस्थ भाषा मे निश्चित महारत हासिल करय मे अव्वल होइत छथि। अंग्रेजी सेहो एहि नव भाषाक अंगीकरण मे महारतक गुणक आधार पर मैथिलीभाषी लेल बहुत भारी नहि। मिथिलाक विद्याधर सब केँ जँ लैटिन आ जर्मनी या कोनो अन्य भाषाक आवश्यकता हेतनि त ओकरो बहुत थोड़ परिश्रम सँ अपना बना सकैत छथि।

 

लेकिन तेँ अपन मातृभाषा केँ लात मारिकय कियो दोसरक सेवा करैत छथि तँ हुनका गृहद्रोही कहय मे कोनो हर्ज नहि छैक। एहनो कतेको लोक छथि जे अपनहि धियापुता सँ अपन मातृभाषा नहि बाजि मौसी-भाषा वा विदेशी-भाषा बजैत छथि, ओ अपनहि सँ अपन तिनू लोक केँ भ्रष्ट करैत छथि कारण वैह धियापुता अपन संस्कृति सँ बाहर कतहु मिक्स भऽ जाइत अछि आर एहेन लोकक निजता वा मैथिलत्व ओत्तहि समाप्त भऽ जाइत छन्हि। कतेको एहेन लोकक घर मे सनगोइह आ अजोध भीतर मे आ छत पर बर-पिपर केर राज अछि। कतेकोक घराड़ी पर त सियार सेहो भूकल करैत अछि। आ से सिर्फ अपन भाषा छोड़लथि, सन्तान गाम छोड़ि देलकनि, आर अपन संस्कार सँ बाहर भेलाह… ओ गेलाह।

 

एखन हमरा लोकनि देखि रहल छी जे मैथिली मे सृजनकर्म खूब गतिमान अछि। कियो अपन मातृभाषाक अनुपम सृजनक अनुवाद कय अंग्रेजी मे वृहत् पटल पर अनबाक काज कय रहला अछि, कियो फिल्म निर्माण केर कार्य कय भाषा लेल अनिवार्य आवश्यक आधुनिक पोषण देबाक कार्य कय रहला अछि, कियो विद्यालय आ गाम-गाम मे घुमिकय धियापुता मे मातृभाषा मे सृजन करबाक कार्य सिखा रहला अछि, सैकड़ों केर संख्या मे मिथिलाक्षर प्रशिक्षण करा रहला अछि, अपनहु जेबीक पैसा लगाकय मैथिली पोथी प्रकाशन करा रहला अछि, कियो महिला समाज मे लेखनीक संग समाज लेल अगुवाई करबाक प्रशिक्षण करा रहला अछि, जिनका जाहि तरहें होइत छन्हि से अपन मातृभाषा लेल समर्पित भऽ सेवादान कय रहला अछि।

 

प्रवास स्थल सँ मैथिलीक सेवाक सेहो लगभग १०० वर्ष पूर्ण होयबाक आख्यान एहि लेल भेटैत अछि जे कोलकाता विश्वविद्यालय सँ मैथिलीक पठन-पाठन हो आ कि बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी सँ या फेर पटना विश्वविद्यालय सँ – अपन मातृभाषाक महत्व केँ आत्मसात कयनिहार शख्सियत सभक प्रयासहि सँ, हुनका लोकनिक एकजुटता आ नीक भविष्यक शिलान्यास सँ आइ ई सब सकारात्मक बात हम सब देखि पाबि रहल छी। अपन मातृभाषा प्रति सेवाक ई भाव मोक्षदायी ब्रह्मार्पण मस्तु सूत्र केँ मैथिल जीवनक एक प्रबल आधार होयबाक सत्य केँ सिद्ध कय रहल अछि। समस्त मातृभाषासेवी प्रति हमर बेर-बेर नमन! बस सब कियो एहने समर्पित भाव सँ मैथिली केँ बढबैत चलू! ॐ तत्सत्!!

 

हरिः हरः!!