मैथिलसर्जक कृष्णकान्त झा विरचित बेहतरीन ‘रघुपत्यष्टकं’

रघुपत्यष्टकम - संस्कृत सृजनकर्मी कृष्णकान्त झाक नव रचना

१९ सितम्बर २०२० । मैथिली जिन्दाबाद!!

रघुपत्यष्टकं
 
– श्री कृष्णकान्त झा रचित एक बेहतरीन आ भावयुक्त रचना
 
राजीवनयन त्रिभुवनभूषण।
भवदुःखहरण परमात्म विभो॥
सीतावल्लभ रघुकुलनन्दन।
नलिनायतलोचन राम प्रभो ॥1॥
 
रघुकुलनायक करधृतसायक।
मंगलदायक भव पाहि विभो॥
अनुरूप स्वरूप विरूपारूप ।
अजस्र सहस्त्रस्वरूप प्रभो ॥2॥
 
शिवमानसहंस रघुवंशवतंश
निषूदनकंस सुवंश विभो॥
उत्तम सर्वोत्तम पुरूषोत्तम।
नरोत्तम सीताराम प्रभो ॥3॥
 
मायाधिपते जीवाधिपते ।
सकलाधिपते परमेश विभो॥
अमंगलनाशक असुरविनाशक
मंगलशासक पाहि प्रभो ॥4॥
 
मैथिलिवंदित मिथिलानंदित।
मैथिलमंडित शिवलीन विभो॥
रमणीयवदन काननचंदन।
सुरमुनिकार्ये श्रीप्रवीण प्रभो॥5॥
 
खरदूषण-तारक असुरसमर्दक।
बालिनिषूदक अजित विभो॥
सुग्रीव-विभीषण शरणागत।
सुसंत-सुरक्षक पूज्य प्रभो ॥6॥
 
शबरीबदरीफल-आस्वादक
कृपालु दयानिधान विभो ॥
हे कल्पतरो हे परमेश्वर ।
हे सुन्दर सत्य सुजान प्रभो ॥7॥
 
खलभंजक रक्षक च मोक्षक ।
हे पापविभंजक राम विभो ॥
संकटमोचन उत्पललोचन ।
हनुमत्स्वामी मम् रक्ष प्रभो ॥8॥
 
रघुपत्यष्टकं पुण्यं स्मृत्वा पठतु राघवम्॥
विरचितरामभक्तेन रामानुग्रह भवेद्ध्रुवम्॥
 
॥श्रीरघुपत्यष्टकं ब्रह्मार्पणमस्तु॥