मिथिलाक विवाह – अत्यंत रोचक आ आध्यात्मिक विध-व्यवहारक वर्णन

मिथिलाक लोकपरम्परा आ विवाहः एक शोध

दहेज मुक्त मिथिला फेसबुक समूह पर पैछला सप्ताह वैवाहिक परिचय केर संकलन भेल छल। विवाह लेल उपयुक्त सम्बन्धक विकल्प आजुक समय मे मिथिलावासी लेल चुनौतीपूर्ण भऽ गेल अछि। एहि चुनौतीक कारण कतेको रास महत्वपूर्ण आ आवश्यक परम्पराक क्षरण सेहो भऽ रहल अछि। तेँ समय-समय पर एतय सहभागी हजारों सदस्य लोकनि सँ वैवाहिक परिचय आपस मे आदान-प्रदान करैत स्वस्थ वैवाहिक परम्परा केर निर्वहन लेल प्रयास कयल जाइत अछि।

एहि सप्ताह लेल ‘कन्यादान’ विषयक गम्भीरता सँ नव पीढी केँ अवगत करेबाक अवधारणा पर कार्य कयल जा रहल अछि। कन्यादान केर महत्ता पर पूर्वहि केर एक लेख सेहो प्रकाशित कयल जा चुकल अछि। एकर ऐगला कड़ी मे मिथिलाक लोकपरम्परा मे कन्यादान जेहेन महत्वपूर्ण रस्म निभेबाक लेल कि सब कयल जाइछ ताहि पर केन्द्रित अछि।

मनन योग्य विषय

बेटीक जन्म सँ विवाह धरिक गोत्र पैतृक पक्ष सँ भेटल – अर्थात् जन्म पाबि शिक्षा-दीक्षा आ जीवनचर्याक समस्त गुण, धर्म आ ज्ञान आदि पिता परिवार मे प्राप्त कयलक। पढि-लिखिकय शारीरिक रूप सँ मातृत्व प्राप्त करय योग्य बनि गेलाक बाद ओ अपन परिवार बसेबा योग्य मानल जाइछ आर ओकरा परगोत्री वर-सासुर विदाह करबाक परम कर्तव्य पैतृक परिवार द्वारा पूरा कयल जाइत अछि। एहि विधि-व्यवहार केँ विवाहोत्सव कहल जाइछ। विवाह मे अनेकों प्रकारक कर्मकांडीय पद्धति केर व्यवहार कयल जाइछ।

एतय श्रीमती आशा चौधरी, पिताम्बरी देवी व कतेको विदुषी लोकनि उपस्थित छथिन। संभवतः ओ लोकनि नीक सँ विवाह केर अवसर पर बेटी लेल कि सब विध पूरा कयल जाइछ ओ लोकनि नीक सँ कहि सकैत छथि। जे जानकार छी, कृपया एक-एक विध-व्यवहार केर सूची जँ संभव हुअय त जारी करू। आभारी होयब। एहि चर्चा मे बहुत गूढ रहस्य छुपल अछि जेकरा हम एहि सप्ताह केर विमर्श मे अपने सभक समक्ष चर्चा मे आनय चाहि रहल छी। कृपया सहयोग दी।

एखन एहि कन्यादान केर मंत्र पर ध्यान दियौक –

अद्येति………नामाहं………नाम्नीम् इमां कन्यां/भगिनीं सुस्नातां यथाशक्ति अलंकृतां, गन्धादि – अचिर्तां, वस्रयुगच्छन्नां, प्रजापति दैवत्यां, शतगुणीकृत, ज्योतिष्टोम-अतिरात्र-शतफल-प्राप्तिकामोऽहं ……… नाम्ने, विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्तरदायित्व-भारम्, अखिलं अद्य तव पत्नीत्वेन, तुभ्यं अहं सम्प्रददे। वर उन्हें स्वीकार करते हुए कहें- ॐ स्वस्ति।

(स्रोतः विकिपीडिया)

१. श्रीमती पीताम्वरी देवी लिखैत छथि –

सिध्दियान्त

विवाह में सबसे पहिने विवाह ठीक भेलाक बाद सिद्धियान्त होइत अछि। ई बहुत नीक मिथिला के परंपरा अछि। एहि में बर पक्ष आर कनिया पक्ष के किछु गोटे एकटा सार्वजनिक स्थान पर बैसैत छथि आर पजियार जे पंजी के ज्ञाता छथि ओ बर ओ कन्या दूनू पक्ष के चारु कुल बर के माता-पिता ओ कन्या के माता-पिता के पंजी में देखैत छथि जे कतौ से सात पीढ़ी तक कोनो सम्बन्ध तऽ नहि भऽ रहल छैक। जदि कतहु सँ सम्बन्ध आबि जाइत छैक तऽ विवाह नै होइत छैक। बर वला आर कनिया वला दू भाग में बैसैत छथि आर पजियार बीच में बैसिकय दुनू पक्ष केँ चारू कुल केर सात पीढ़ी धरिक नाम लैत छथिन, हुनकर सब के कतय विवाह भेल छनि, ओ सब कोन मूल के छथि, कोन पाँजि छनि, कोन गोत्र छनि, ई सबटा पजियार बतबैत छथि। एकरा पजियार जे पढ़ैत छथि ओकरा ‘उतैढ़’ कहल जाइत छैक। एहि में दुनू पक्ष केर जे ओतय रहैत छथि हुनका पहिने तऽ पान-सुपारी दय केँ बिदाह करैत छलाह, मुदा आब तऽ चाह-पाने टा नहि भऽ सब तरहें सत्कार-सम्मान होइत छैक। आब नमकीन, मधुर के पैकेट, आदि सेहो बाँटल जाइत छैक। पजियार कन्यागत केँ तालपत्र पर सिध्दियान्त भय गेल, अमुक दिन विवाह होयत, बर के पिता के नाम लिखिकय फल्ला बाबूक बालक संग फल्ला बाबूक कन्याक – से दैत छथि। ओकरा कन्या गत लऽ जा कय अपन गोसाउन सीर में रखैत छथि। आर, कन्या केँ पियर साड़ी आ लहठी पहिराकय काकी-दादी सब भगवती के गीत गबैत छथि। बेटी के ‘कुमार’ गबैत छथि । कुमार में गीत केर भावार्थ रहैत यऽ जे आब हमर बेटी हमर कुल सँ बाहर भऽ गेली। हुनका बाबा कन्यादान कय देलखिन। ओ दोसर कुल केर भऽ गेलीह।

किछु ठाम सिद्धियान्त नहि होइत अछि। ओतय पंजी प्रथा से विवाह नै होइत अछि। ओतय विवाह सँ पूर्वहि कन्यागत बर केर पुरा घर-घरैन लेल कपड़ा-लत्ता दान-दहेज केर समान, बर लेल चेन्ह, अंगुठी, आदि लय केँ बरवला ओतय १०-१५ गोटे सँ जाइत छथि आर ओतय भोजन-भात करैत छथि, आर बर केर छेका करैत छथि। जेकरा मिथिला में खानपान कहल जाइत अछि। विवाह केर पहिल विध एतहि सँ शुरू होइत अछि।

२. श्रीमती आशा चौधरी लिखैत छथि –

बहुत बहुत धन्यवाद प्रवीण नारायण चौधरी जी केँ जे हमरा एतेक मान सम्मान दय रहल छथि, जेकर की हम पात्र नहिं छी, तथापि हम कोशिश कय रहल छी।

सिद्धांत केर बारे मे पिताम्वरी दीदी त बहुत नीक सँ बता देलथि, परंतु ओकर स्वरूप आइ के दिन मे बदलि गेल अछि। आब कतहु ओकरा सगुण कहल जाइत अछि आ कतहु ईंगेजमेंट।

वरक परिछन

जखन लड़का आबि जाइत छथि तऽ सब सँ पहिने परिछन शुरू होइत अछि। परिछन = परीक्षण! मतलब जे वर केर जाँच होइत छैन्ह। जाँच एहि बातक जे कोनो तरहक शारीरिक वा अन्य ऐव (कमजोरी) तऽ नहि छैन्ह।

परिछन काल मे वर केर कुर्ता-गंजी सब उतरबा कय देखल जाइए जे देह मे कोनो दाग (बीमारी) त नहि छैन्ह। वर सँ परिचय पुछल जाइए जे वर बौक बताह त नहिं अछि। कनियां मुँहक पान वर केँ खुआयल जाइत अछि ताकि दुनूक प्रेम बनल रहत। नाक पकड़ल जाइत अछि जे वर केँ मिरगी या साँस सम्बन्धी कोनो आरो गंभीर बीमारी त नहि छैन्ह। केरापातक भालरि देखायल जाइत अछि जे आइ दिन सँ आब कनियांक लेहाजे अहिना डोलैत रहब। ठक-बक देखाबय के मतलब भेल जे आब अहां केँ ठकि लेलहुं। हमरा सबहक पूर्वज सब ब्रह्मचारी बनि गुरुकुल मे शिक्षा अध्ययन करैत छलाह, विवाह ओतहि सँ तय होइत छलन्हि। तेँ ब्रह्मचारी सँ गृहस्थ बनेबाक प्रक्रिया केँ ठकबाक बोध हेतु ई विध होइत अछि। ठकि एहि लेल लेलहुं जे आब अहाँ गृहस्थाश्रम शुरू करू। मूजक डोरी संँ बान्हि देलहुँ यानि आब अहाँ बंधन मे छी, आब स्वतंत्र नहि छी। उड़ीदक घाटि चिन्हायल जाइत अछि, सब घाटि सँ बेसी उड़ीदक घाटि फेनाइत अछि से ओहिना अहाँ अपना जीवन मे आगू बढ़ू।

मिथिलाक विवाह मे बहुतो तरहक विध होइत अछि तेँ कहाबत छैक जे ब्याह स विध भारी!

३. श्रीमती किरण झा लिखैत छथि –

विवाहक विधक ओरियाओन

हम अपना जनतबे एहि तरहे लिख रहल छी ,धन्यवाद प्रवीण चौधरी जीके 🙏

विवाह सँ विध भारी

१- कोबर
*भगवती गीत गाबि कोबर लिखल जाइत अछि देवालमें
* नीचामें अरिपन देल जाइत अछि
*अहिबात, पुरहर राखल रहैत अछि
*हाथीपर सरबामें सुपारीक गौर, तामामें मटिया सिन्दुर रहैत अछि

२- मातृकापूजा
* साड़ी, लहठी, सिन्दुर, चौदहटा जनउ, सुपारी , तील, जौ, अक्षत, गंगाजल , पंचगव्य, अरिपन

३-आममहु विवाह
* चंगेरामें पाँचटा आरत पात, धागा, सिन्दुर, पिठार

४- धोबिन केँ सोहाग
* अरिपन पर पालो राखल, चुरा, दही, चीनी
*कनियाकें साड़ी पहिरा कुमारी गौरी पूजय लेल बैसा देल जाइत अछि

५- आज्ञापान
* चंगेरामें अगरबत्ती, पान, सुपारी लऽ कऽ कन्याक भाइ जाइत छथि
*बरागत साड़ी, गहना, इत्यादि एहिमें राखि दैत छथिन्ह
*भाइ ओ चंगेरा भगवतीक चिनबार पर राखि दैत छथि

६-परिछन
* डालामें – ठक, बक, जानडाला, काउछक दीप, कलाइ बेसन, भालैर, पाँचटा आमक मूठरा, पाँचटा गोबरकें मूठरा आमक पात पर राखल, चानन, काजर, सिन्दुर, चितौरक माला, फूलक माला, पानक पात, आरत पात, पान लागल, कनियाक आँठि सुपारी
* खबासनी सिरहर नेने ठाढ़
* बरके नाक पकड़ि मड़बा (परिछन चौकी) के चारू कोन घूमेनायमें घैलमे ठेहुन भिड़ेनाय

७- बरके कपड़ा बदलनाइ
* धोती, जनउ आ डोराडैर

८- ओठंगर

*अरिपन पर उखैर-समाठ, धान, आठटा सुपारी, आठटा हरदि, धागा
*आठटा ब्राह्मण आ एक नौआ

९- नैना जोगिन
* चारिटा आरत पात, सिन्दुर, पिठार, बियनि, आमक पल्लव
* चानन, दूबि, सोना (सिथनोतब) माला दूटा

१०- कनियाँ बर बेदी तर (मड़बा पर) विवाह
* अरिपन, अहिबात, पुरहर, वेदी गारल आ कोसा, पाथर
*चंगेरामे – तिल, कुश, शंख, अक्षत, गाय घी फूलही कटोरीमें, सुरूप, आरिबला मटकुरी पानि राखल
* फूलही थारी, आमक ढहुरि,
*जन्मगाँठ – धोती, धान, सुपारी, पैसा
*चंगेरामें लाबा कोनिया

११- सिन्दुरदान
* तामामें मटिया सिन्दुर, साँखसहेली, सोना, सोनक गेरूली
* पहिने वर सिन्दुरदान करता तकराबाद पाँचटा अहिबाती

१२- घोघट
* सासुरसँ आयल साड़ी

१३- चुमान
* डालापर धान, दही, केरा, नारियल, मिठाई, बाटीमें
रांगल चाउर, दूबि
* कनियाँ हाथमे सिन्दुर, वरक हाथमें पान सुपारी पैसा

४. नवभारत टाइम्स सँ प्राप्त एक हिन्दी लेख केर अनुवाद

मैथिल विवाह केर अनोखा पद्धति!

मिथिलांचल में वैवाहिक रीति-रिवाज कनेक अलग होइत छैक. अक्सरहाँ हमरा सभक जीवन शैली सँ अपरिचित लोक केँ हमरा ओतुका विवाह केर विध–व्यवहार बेतुका और दीर्घावधि लगैत छैक. लेकिन ई सर्वविदित अछि जे मैथिल दम्पति लोकनि मे जे पारस्परिक प्रेम भाव होइत छैक, एक दोसरक प्रति जे  सम्मान केर भावना होइत छैक, ओ गौर करयवाली बात छैक. कहियो-कहियो एकदमे बेमेल विवाह सेहो सफल भऽ जाइत छैक.

सबसँ पहिने वर जखन वधु केर द्वार पर अबैत अछि तऽ वर केँ सभक सोझाँ अपन कपड़ा बदलय पड़ैत छैक जाहि सँ वर केर कोनो शारीरिक दोष त नहि? फेर (विधकरी-एक अनुभवी महिला जिनका ऊपर सब विधि–व्यवहार करबेबाक जिम्मा रहैत अछि) द्वारा  परिछन केर दौरान वर सँ गृहस्थ जीवन केर व्यवहारिक प्रश्न सब पूछल जाइत छन्हि. जेना दुइ दालिक बेसन मे फर्क बुझनाय आदि. फेर कोहबर में नैना-जोगिन. जाहि मे भावी पत्नी और साली केँ बिना देखनहि (दुनू कपड़ाक ओहार मे नुकायल रहैत छैक) ताहि मे सँ एक केँ चुननाय. एहि मे लोक केँ खूब मनोरंजन त होइते छैक, वरक पारखी नजरि सेहो बुझय मे आबि जाइत छैक. तेकरा बाद समाज परिवार केर बुजुर्ग लोकनि संग मिलिकय ओठंगर कुटल जाइत छैक यानि पूरे समाज केर स्वीकृति केर संग गृहस्थ जीवन मे प्रवेश केर अनुमति. चाहे ओठंगर कूटनाय हो या भाइ केर संग मिलिकय धान-लावा छिटनाय, एहि तमाम रिवाजक पाछाँ कोनो न कोनो व्यवहारिक तर्क होइते टा छैक. फेर आमक काँच लकड़ी केँ प्रज्वलित कय ओहि केर समक्ष मन्त्र द्वारा विवाह संपन्न कराओल जाइत छैक। वैह आगि पर ओठंगर मे कुटल धान केर चाउर सँ वर खीर बनबैत अछि अर्थात् गृहस्थी मे पूर्ण सहयोगक तैयारी. वधु केँ प्रथम सिंदूर दान अलग सिंदूर (भुसना)  सँ कयल जाइत छैक. मतलब एखन तक वर केर परीक्षा संपन्न नहि भेल अछि! एहि विवाह केर बाद वर–वधु कोहबर (वर–वधु केर कोठली) मे जाइत अछि. कोहबर केर चित्र सभ द्वारा सजायल गेल रहैत छैक जाहि मे सांकेतिक रूप सँ गृहस्थ जीवनक महत्व केँ देखायल जाइत छैक. एहि दिन सुहाग शैया नहि सजायल जाइत  छैक बल्कि जमीन पर सुतबाक व्यवस्था कयल जाइत छैक. कोहबर मे विधकरी वघू केँ लय कय अबैत छथि आर वर-वधु केेर झिझक केँ तोड़बाक माध्यम बनैत छथि. ऐगला तीन दिन धरि यैह क्रम चलैत छैक. वर-कन्या विधकरी केर माध्यम सँ मात्र मिलैत छथि. एहि तीन दिनक दौरान वर-वधू केर भोजन मे निमक नहि खुआओल जाइत छन्हि. जाहि सँ इन्द्रिय शिथिल रहय. विध सब निरन्तर दिन भरि चलैत रहैत अछि. वर–वधु एक दोसर केँ नीक जेकाँ बुझय लगैत छथि. हँ, बरियाती लोकनि वर केँ छोड़िकय वापस चलि जाइत छथि.

असल विवाह चारिम (चतुर्थी) दिन फेर होइत अछि. अगर कन्या अपरिपक्व हो तँ, वर किछु दिन ससुरारिये मे रहि जाइत अछि जाहि सँ कन्या केँ अन्जान माहौल मे ढलय मे असुविधा नहि हो. कहियो-कहियो त सालो भरि या ओहू सँ बेसी दिन धरि लड़की अपन नैहरे मे रहि जाइत अछि. एहि दौरान सालो भरि हरेक पाबनि–त्योहार मे लड़की लेल सनेश सब अबैत रहैत छैक. अंत मे सुविधानुसार कन्या केर विदाई होइत छैक, जेकरा द्विरागमन कहैत छैक.

एहि पूरे आयोजन मे गौर करयवाली बात छैक, समाज मे परिवार केर महत्व, परिवार अगर संस्कारी हेतय तऽ कन्या सेहो नीक संस्कारवाली हेतैक. एतय ऊपरी सुन्दरता सँ बेसी सुन्दर संस्कार केँ देखल जाइत छैक कियैक तँ स्त्री मात्र परिवार केँ संस्कार दैत अछि. मिथिलांचल मे महिला लोकनि केँ काफी महत्व देल जाइत छन्हि.

मैथिल विवाह केर मूल स्वरूप यैह थिक, हाँ आब लोक अपन सुविधानुसार फेर-बदल कय केँ विवाह संपन्न करबैत छथि. गाम मे एखनहुँ धरि यैह रीति रिवाजक अनुसार विवाह होइत छैक.

(ई लेख एखन निरन्तरता मे रहत, जेना-जेना लेख संग्रह होयत, एकरा एडिट कय केँ जोड़ि देल जायत।)