अंग प्रदर्शन करब सुन्दरता कोना?

नारी सुंदरताक दुरुपयोग समाज लेल अकल्याणकारी

model girlसुन्दरताक परिभाषा भारतवर्षीय संस्कृति मे सत्य तथा शिव सँ जुड़ल अछि। ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ – अर्थात् जे सत्य अछि वैह शिव अछि आ जे शिव अछि वैह सुन्दर अछि। वर्तमान अपसंस्कृतिकाल मे जाहि तरहें वस्त्र आ आभूषण सँ झाँपय योग्य अंग केँ बेसी सँ बेसी प्रदर्शन करबाक धुनकी लोकमानस मे सवार कैल जा रहल अछि ओ वास्तव मे भारतवर्षीय संस्कृतिक विरुद्ध अछि। भारतीय शास्त्र सुन्दरता आ कामुकता केँ अलग-अलग व्याख्या कएने अछि। नर ओ नारी बीच शारीरिक मिलन – संभोग हेतु ८४ आसन सहित कोकशास्त्र समान गूढ विज्ञान सेहो भारतवर्षीय शास्त्रीय उपदेशक एक अंग थीक। भारतवर्षक संस्कृति विश्व मे सनातन मानल जाइत अछि कारण सबहक आदि मे केवल आ केवल एहि ठामक आ हिन्दू शास्त्र तथा दर्शन मात्र देखाइत अछि। एतय चर्चा करब जे नारी समाज केँ प्रदर्शन योग्य शुरुअहि सँ मानितो वर्तमान समय मे आबि विकृतिक चरम कि संकेत कय रहल अछि।

नारी सुंदरताक मापदंड अंग-प्रदर्शन पर हो पुनर्विचार

विश्व सुन्दरी बनबाक अछि तऽ बिकिनी मे फोटो सूट कराबय पड़त। कैटवाक करबाक लेल नारी शरीरक विभिन्न अंग स्पष्ट झलकय ताहि तरहक परिधान प्रयोग करय पड़त। आब सुन्दरता लेल नाक-नक्श या आँखिक संग लंबा-घनगर केश आ साड़ीक आँचर सँ झाँपल माथ व समस्त शरीर आदि आउटडेटेड मानल जाइत अछि। नारीक वर्ण गोर वा श्यामली सब आउटडेटेड भऽ गेल अछि। शरीरक बनावट प्रथम आ ताहि मे देहक लंबाई संग छातीक नाप, डाँर्हक नाप सँ शुरु करू आ तेकर बाद शरीरक नाजुक अंग सब कोन कतेक देखाइत अछि, कामुकता केँ झाँपबाक बदला के कतेक खूलिकय प्रदर्शन करैत अछि, यैह सब आधार बनि गेल अछि सुन्दरी प्रतियोगिताक। सभ्य समाज मे कोनो नारीकेँ ओहि परिधान मे प्रवेश तक जायज नहि छैक, लेकिन विश्व बौद्धिक स्तर पर सुन्दरी बनबाक लेल एहेन प्रदर्शन जरुरी छैक। निस्सन्देह तेज मस्तिष्क, सुन्दर हँसी, आकर्षक बजनाइ आ बेहतरीन अभिव्यक्ति… सुन्दरताक आरो बहुत रास मापदंड चेक कैल जाइत छैक। मुदा वर्तमान युग मे मैगजीन कवर, एड विजन, वस्तुक प्रचार संग अर्धनग्न नारीक प्रयोग – शैक्षणिक संस्थानक प्रचार हो वा कोनो तरहक प्रचार, केवल अर्धनग्न आ कामूक नारीक प्रदर्शन सँ मानव ध्यानाकर्षण काफी प्रचलन मे आबि गेलैक अछि।

सुंदरता आ भारतीय दर्शन: सत्यं शिवं सुन्दरं

“मूल्यशास्त्रक महावाक्य छैक सत्यं शिवं सुन्दरं – मानव जीवन केर यैह तीन मूल्य छैक। जे सत्य छैक वैह शिव छैक आर जे शिव छैक वैह सुंदर छैक। पश्चिम केर सौंदर्यशास्त्री यैह मानिकय चलैत अछि जे सुंदरता द्रष्टा केर दृष्टि मे छैक। यानी सौंदर्य बोध नितांत व्यक्तिनिष्ठ छैक। परंतु भारतीय मनीषा सुंदरताक एहि परिभाषा केँ नकारि दैत अछि। ओ सत्य-शिव-सुन्दर केँ सर्वथा वस्तुनिष्ठ मानैत अछि। मूल्य सापेक्ष नहि वरन् निरपेक्ष होइछ। मनुष्य तही लेल मनुष्य अछि, कियैक तँ ओ मूल्यक अधीन रहैछ। मूल्य ओकर विशिष्ट संपत्ति थिकैक। सुन्दर कि थीक? जे शिव अछि वैह सुंदर अछि। अर्थात जेकरा मे शिवत्व नहि छैक, ओकरा मे सौंदर्य सेहो नहि छैक। यस्मिन् शिवत्वंनास्ति तस्मिनसुन्दरंअपिनास्तिएव।” – विचार रखैत छथि डा. दुर्गादत्त पाण्डेय।

सुंदरता पर भिन्न-भिन्न राय: भारतीय शास्त्रमत पूर्ण विज्ञ

कतेक लोक मन केँ सुख देवयवाली चीज केँ सुन्दर मानैत छथि, लेकिन डा. पाण्डेय एकरा बचकानी मानैत अपन उपरोक्त दावीक पक्षमे आगू कहैत छथि: “सुख आ दु:ख संस्कारगत होयबाक नाते व्यक्तिनिष्ठ होइत छैक। अनुकूल वेदनाक नाम सुख थीक आर प्रतिकूल वेदनाक नाम दु:ख थीक। एक्कहि चीज केकरो सुख दैत छैक आ केकरो दु:ख। परंतु सुंदरता तँ वस्तुनिष्ठ टा छैक। हमरा लोकनिक शास्त्र कहैत अछि जे कल्याणकारी अछि वैह सुन्दर अछि। ई जरूरी नहि जे सब सुखद चीज सुंदरो हो।”

गीता कहैत अछि जे भोग केर सुख भ्रामक अछि और अंतत: दु:खवर्धक सेहो – ये हि संस्पर्शजाभोगा दु:खयोनय एवते। एहनो सुख होइत छैक जे शुरू मे अमृत जेकाँ लागत, मुदा परिणाम विषतुल्य होइत छैक। यदि क्षणिक सौंदर्यबोध आगू चलिकय दीर्घकालीन दु:खक कारण बनय तँ ओ कदापि सुन्दर नहि भऽ सकैछ। कष्टकर होयबाक कारणे वर्तमान मे साधना भले असुन्दर लागय, मुदा प्रगति मे सहायक होयबाक कारण सँ वैह सुन्दर होइछ। गीता सेहो कहैत अछि: यत्तदग्रे विषामिवपरिणामेमृतोपमम्।

एतय ई सवाल उठि सकैत अछि कि जे कष्ट देवयवला अछि ओ सुन्दर कोना भऽ सकैत अछि? यदि कोनो कष्टकर अभ्यास दीर्घकालीन सौन्दर्य केर बोध करेबा मे समर्थ अछि तऽ ओ तप थीक और एहि लेल ओ सुन्दर अछि। प्रमादजनितसुख सुन्दर भइये नहि सकैत अछि। चूंकि तप विकास केर द्योतक थीक, तैँ ओ सुन्दर कहाइछ। एहि तरहें सुन्दर केर परिभाषा निश्चित करैत डा. पाण्डेय लिखलैन अछि जे “यत् शिवं तत् सुन्दरम्।” शिव केर अर्थ थीक मंगल। मंगल शब्द मग् धातु सँ बनल अछि, जेकर अर्थ होइछ कल्याण। एहि तरहें शिव मे उत्कर्ष अछि; विकास अछि; प्रगति अछि।

शास्त्र बाहरी प्रगति केँ तिरस्कार नहि करैत अछि, अपितु सम्मान सँ ओकरा अभ्युदय कहैत अछि। अशिक्षा सँ शिक्षा दिश, दरिद्रता सँ समृद्धि दिश, अपयश सँ यशक दिश, निस्तेज सँ तेजस्विता दिश बढब प्रगति थीक। समृद्धिक पाछू कर्मकौशल होइत छैक। प्रतिष्ठा केकरो उपहार मे नहि भेटैत छैक। विद्वान टा विद्वानक श्रम केँ जनैत छैक: विद्वान् जानाति विद्वज्जन परिश्रम:। श्रम तँ स्वयं सुंदर छैक, कियैक तँ ओ तप थिकैक।

भीतरी प्रगतिक सेहो प्रस्थान बिंदु जीवन मूल्य होइछ। जीवत्व सँ ब्रह्मत्वक दिशा मे गेनाय आध्यात्मिक प्रगति होइछ। सत्व मे स्थित भेनाय प्रगति थीक; विनम्रता मे अवस्थित भेनाय प्रगति थीक; भक्ति मे प्रतिष्ठित भेनाय प्रगति थीक। शिवत्व केर अर्थे छैक प्रगति या कल्याण। तैँ ई मानिकय चलू जे शिव अछि वैह सुन्दर अछि। यैह जीवन दर्शन केर प्रमाणित मंगलमयी सूत्र थीक।

सुंदरता सँ जुड़ल प्रक्रिया: शारीरिक-मानसिक-व्यवहारिक हित लेल अनुकरणीय

डायटिंग करब, स्वस्थ शरीर केर निर्वाह करब, कम फैट्स मेन्टेन करब, देह मे फूर्ती राखब, घर हो वा कार्यालय – सब ठाम चुस्त-दुरुस्त शरीर एवं मानसिकता सँ नारी मूल्य केँ उच्चो सँ उच्चतर निर्वाह करब हमरा लोकनिक समाजक हित मे होयत। चाहे फिल्म हो, चाहे यथार्थ समाज – हरेक जगह स्वच्छताक आवश्यकता अछि। नारी शरीरक प्रदर्शन भारतीय संस्कृतिक विकासक हित मे कदापि नहि भऽ सकैत अछि। एहि दिशा मे विद्वत् समाजक संग राज्यक सेहो जिम्मेवारी बनैत अछि जे आवश्यक मापदंड केर विकास करय। महिला हिंसा तथा उत्पीड़न केर जैड़ मे सेहो नारी अंग तथा कामूकताक प्रदर्शन पर बेर-बेर सवाल उठैत रहल अछि। हरेक सामाजिक प्राणीकेँ नारी शरीर आ आत्मा बीच संतुलन राखिकय व्यवहार करब परम कर्तब्य होयत।