मिथिलाक भोज आ बारीकक महत्व

लेख

– वाणी भारद्वाज

भोज मे बारीकक महत्व

समाजक बदलैत स्वरूप मे सबकिछु बदलैत जा रहल अछि. ताहि क्रम मे भोज-भातक आ बारीक मे सेहो बदलाव अवश्यमभावी छैक. हमर नेनपन गाम मे किछु समय बीतल अछि. कतेको भोज गाम-घर मे खेने छी. गाम सब मे भोजो कतेको तरहक होइत अछि. जेना, बरियतिया भोज, मुरनक भोज, एकादशी केर भोज, कुमरम केर भोज, रातिम केर भोज, आ श्राद्धक भोज, बर्षी इत्यादिक भोज. पैघ रहै या छोट गाम रहै, किछु नहि किछु होइते रहैत छैक. पहुलका भोज मे भरि गामक वा पैघ गाम रहल त भरि टोलक स्त्रीगण, पुरुष आ बच्चा सब अपसियांत रहल. स्त्रीगण सब भोर मे एक उखराहा तरकारी-तीमन सब काटि-खोटि आबैत छलीह. बेरू पहर पान-तान लगा आबैत छलीह. पहिने ऐतेक सज-धज के प्रचलन नहि छलैक. कनिया-मनिया सब घर मे सुनैत रहैत छलीह सब बात. पुरुष सब के त बैसकी के संगे घरबैया के सब तरहक उद्वेग के अपन बात सं शान्त करेला. आ सब तरहक सहयोग केला. बुतरु सब कियो नोत दै लेल जा रहल अछि, कियो फला घर सं चौकी, कुर्सी त जाजिम. कतेको चीजक काज पडैत छै. से सब टा पहिने भरि टोल वा गाम सं मांगिकय चलैत छल. आब त बड़का-बड़का टेन्ट हाउस छैक ओतहि सं एके बेर सब समान आयल. किनको ओतय सं किछु मांगय केर रिवाजे खतम भ रहल अछि. तथापि भोज क भिनसर मे भरि गाम नोत दै लेल जे सबसं बुधियार रहल से गेलाह, बेरुपहर एक गोट बुतरु साईकिल सं पैडिल मारैत गेल आ बाहरे सं टाटे लग सं ‘बिझो भ गेल यौ’.. कहैत फेर पैडिल मारलक… एना एना करैत सौंसे बिझो क आबैत छलाह. ओना आब ई बात नहि रहि गेल अछि. आब कार्ड छपैय छैक ओहि मे समय आ दिन लिखल रहल, जाउ आ खाउ आ घर वापिस जाउ. सांझ मे भरि गामक लोक अपन लोटा के संगे अयलाह, धिया-पूता सेहो रहल, तहियाक बात छल आब त कार्ड पर नाम बैकछा क’ लिखल रहैत छैक. बड़की टा दलान रहैत छलैक, एक बेर मे दुइ सय लोक केँ संगे बैसा देल जाइत छल. पहिने बैसकी मे पुआर केर बीड़ा देल जाइत छल, सब के लोटा-गिलास मे पैन परोसल गेल. आब पात बिछायल जायत, भोज मे पहिने केरा केर पात पर भरि गाम केँ बसबैर सं केरा पात काटल जायत छल. ओ पात कतबो फाटल रहै मुदा दुइ टा स तीन टा पात केँ ओरिया क बिछा, पैनक छिच्चा सं शुद्ध क लैत छलाह. पहिने नेना बारिक पानि, नून आ अचार बँटलाह. फेर साग भेल, भाटा-अदौडी, डालना, कथू के भुजिया परसल गेल, फेर भात – धिपल-धिपल भात, ताहि के बाद सोन्हगर गढगर दैल आ दालिक पीठे पर कडकल घी बारीक ल दैत जायत छलाह. आ दैल पर घी पडिते .. होऊ शुरू करू. दुइ चारि कौर लोक अखन खेबे कैल आ कि बारीक लोकनि अपन-अपन बासन, डोल मे दालि, डालना ल बिदा भेलाह. ‘डालना, डालना, किनको डालना चाही’, कियो भाटा-अदौडी केर डाक दैत बढैत गेला, जिनका जे चाहैत छलैन्ह ओ बारीक केँ बजेलाह आ बारीक बड खुश भ परसला. कोनो कोनो भोजमे माछ-माउस के इन्तजाम रहैत छल. ओहि दिन दालि भात एक दू सानन खेलाक बाद माछ-माउस के बाट जोहय लगलाह. भोज मे जे माउस बँटताह से बारीक कनि होशगर रहलाह. ओ घरबैया के इंतजाम केँ ध्यान मे राखैत नोतहारि केँ नीक जेकाँ परोसलाह. आ परसन सेहो यथोचित देलाह. जाहि सं नोतहारि सेहो खुश आ घरबैया के जस-जस भ जायत छल. आ अंत मे दही परसल गेल. आ दही के पीठे पर कोहा मे चीनी ल बारीक बँटलाह. मधुर मिठाई केर ओतेक चलन नहि रहैक. कोनो-कोनो भोज मे लड्डू मिठाई आ शकरौरी के चलन छल. फेर हाथ धोला पर पान-सुपाडी लेलाह आ अपन- अपन घर दिस सब बिदा भेलाह. मुदा आब नहि ओ भोज – नहि भात. आ नहि ओ बारीक नहि ओ खैनहार. सब किछु बदैल गेल. पहिलुका बारीक केर बांटय केर तरीका आबैत छलन्हि. कोना सब केँ होइन्ह से सोचैत छलाह. आ घरबारी वा आयोजनकर्ता सेहो तत्पर रहैत छलाह जे सब खेलाह कि नहि. आबक बारीक अपन प्रियगर केँ नीक सं परोसलाह, आ घरबारी वा आयोजनकर्ता केँ ई सब देखैय केर समय जेना नहि रहल. तं एहेन आयोजने करै केर कोन काज? बदलैत समाज मे ऐहेन व्यवहार आ बारीकक अभाव जेना खैल रहल अछि.