मैथिली गीत-संगीत-नृत्यक बाजार पर भोजपुरी-हिन्दीक राज, समाधान किः मंथन

मैथिली कलाकार लेल रोटीक जोगार
 
(सुझाव अपेक्षित, सिर्फ छूछ आलोचना आ फुस्टिकबाजी फेसबुकिया विरोध सँ काज नहि चलत।)
 
हिन्दी सिनेमा नाम मे एकटा गीत ‘चिट्ठी आयी है आयी है चिट्ठी आयी है’ बड लोकप्रिय भेल छल। एहि गीतक पृष्ठभूमि मे जाहि बात केर फिल्मांकन कयल गेल छलैक ताहि मे स्वदेशक भाइ केर व्यथा गजलकार पंकज उदास केर कन्सर्ट मार्फत परदेश मे बेसी पाइ कमाय लेल गेल दोसर भाइ लेल किछु सन्देश छलैक। एहि गीत मे एकटा पाँत अबैत छैक, “फसल कटी आयी वैसाखी, तेरा आना रह गया बाकी, चिट्ठी आयी है…”। एक भाइ जे गाम मे अछि तेकरा दोसर भाइ केर कमाय केर पाइ सँ बेसी ओहि भाइ केर गाम लौटब जरूरी छैक। ओ एतेक तक कहि दैत छैक जे ‘देश पराया छोड़ के आजा, पंछी पिंजड़ा तोड़ के आजा…. आजा उम्र बहुत है छोटी, अपने घर में भी है रोटी…’ आर एहि पाँति धरिक सब बात केँ सुनैत-सुनैत प्रत्येक मिथिलावासी प्रवासी विवेकशीलक आँखि सँ जँ नोर नहि झहरय लागल तऽ फेर जे कहू।
 
ई प्रसंग एहि लेल मोन पाड़लहुँ अछि जे काल्हि सँ रानी झा गायिका वा विकास झा वीजे गायक वा विभिन्न छोट-पैघ कलाकार जे मैथिली भाषा मे अपन रोजी-रोटी ताकिकय अपन जान-प्राण ‘मैथिली भाषा ओ संस्कृति, कला-गीत-संगीत-नृत्य आदि’ मे लगौने अछि – तेकरा लेल रोटी केर जोगार लगाबयवला बहुत रास भाइ अपन गाम-घर मे रहिकय ‘मंच-उद्घोषक’ आदिक कार्य कय केँ अपनो आ सब कलाकार सभक वास्ते रोजी-रोटीक व्यवस्था कय रहल अछि। एहने एकटा भाइ छथि “प्रवीण सोनू”। महीना मे ५-१० टा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम सँ लैत धार्मिक जागरण व विभिन्न तरहक ‘साटा कार्यक्रम’ सब करैत आबि रहला अछि। प्रस्तुत फोटो मे हिनकर समग्र परिचय भेटि जाइत अछि। बहुत मेहनती अदाकार होयबाक संग-संग हास्य, व्यंग्य, पब्लिक मनोरंजन लेल अपन सब किछु निछाबड़ कय देनिहार प्रवीण सोनूक कय गोट कार्यक्रम विराटनगर मे बैसिकय फेसबुक लाइव मार्फत हम देखलहुँ आ बहुत दिन सँ गौर करैत-करैत काल्हि रानी झा केर बेलाउजक बटन खोलू राजाजी वला गीतक प्रसंग पर हिनका टैग करैत याद केलहुँ, ई जनैत जे प्रवीण सोनू बहुत कठिन संघर्ष आ मेहनति सँ अपन गामहि मे रोटी कमा-कमा परदेशी भाइ सब सँ मिथिला मे सेहो अन्न-पानि भेटैत छैक, लोक चाहथि तँ अपन स्वदेश मे सेहो स्वरोजगार-रोजगार-काज आदि कय केँ जीवन चला सकैत छथि से सन्देश दैत रहैत छथि…. अतः हम ‘चिट्ठी आयी है…’ गीत केँ शीर्ष पर राखिकय आगाँ अपन बात राखब।
 
रानी झा गायिका होइथ कि कंचन पाण्डे जे लाइव स्टेज सिंगर छथि, कि होइथ पूनम मिश्रा आ कि जूली कि स्नेहा कि मैथिली कि रंजना झा आ कि शारदा सिन्हा मैडमजी – पब्लिक लेल गायिकी सँ ‘मनोरंजन’ प्रमुख माँग होइत छैक। प्रवीण सोनू वा रामसेवक ठाकुर वा कियो मंच उद्घोषक केर काज होइत अछि पब्लिक केर भावना बुझि, पब्लिक केर नब्ज-नाड़ी अपन कुशाग्रता सँ टटोलि ताहि तरहक गीत, नृत्य, प्रहसन आदि परोसबाक। कतहु कार्यक्रम हुअय, केहनो कलाकार रहय, पब्लिक जे माँगत से जँ देबैक तऽ कार्यक्रम भेल सूपर सँ ऊपर, आ से जँ नहि देबैक तऽ कनीकाल मे पब्लिक पोन-तोन झाड़ैत चलि जायत अपन घर, अहाँ सब मंच पर खूब शास्त्रीय गीत-संगीत केर सरगम गाबिकय अपन दुनिया मे रमल रहू। एहनो नहि छैक जे शास्त्रीय गीत गेनिहार मे पब्लिक केँ रुचि नहि छैक, मुदा कम छैक। आ से कम एहि द्वारे छैक जे युग मुताबिक म्युजिक धूम-धड़क्का हेबाके टा चाही, खूब नाचल जा सकैक तेहेन बीट आ कलाकारहु केँ जँ कनी-मनी डाँर्ह लचकाबय आबि गेल तऽ बुझू जे सोना मे सोहागा…! प्रवीण सोनू केँ गाम-गाम केर डिमान्ड नीक सँ पता छन्हि। सच पुछू तऽ हमरा सेहो अपन गामहि केर युवा समाज संग सहकार्य करैत म्युजिकल कन्सर्ट आदि मे शास्त्रीय गीत-संगीत सँ लैत आर्केस्ट्रा वाली सब घाँत बुझल अछि। हमरो हूट-आउट कय दैत अछि अपने गामक धियापुता सब आ आनि लैत अछि ‘आर्केस्ट्रा’। हम चाहियोकय नहि रोकि पबैत छी। तखन, ओकरा सब केँ ज्ञान खुजौक जे कविता पाठ केलो सँ सम्भ्रान्त आ नीक मनोरंजनात्मक कार्यक्रम कयल जा सकैत छैक से कय केँ देखा दैत छियैक। लेकिन ई कठोर सत्य छैक जे वर्तमान समय मिथिला समाज मे ‘विदेशिया नाच’ चरम-सीमा नांघि देने अछि।
 
एक बेर हमहुँ जानि-बुझिकय जनकपुर सँ एकटा आर्केस्ट्रा नाच केर विशेष पार्टी मंगबेलहुँ, १२ बजे राति धरि विद्यापति गीत-संगीत पर सम्पूर्ण आयोजन रहल आर तेकर बाद छोट-छोट वस्त्र पहिरिकय एकदम वेस्टर्न म्युजिक आ डीजे धून पर बेतहाशा नाचयवाली नर्तकी आर ताहि संग-संग गामक बच्चा सँ लैत बुढ तक केर स्टेजक आगाँक नाच, हम देखिकय पागल भऽ गेल रही। किछु सम्भ्रान्त मैथिलीक ध्वजावाहक अतिथि लोकनि सेहो ताहि विद्यापति स्मृति पर्व समारोह मे आयल छलाह। राति १२ बजे हुनका लोकनिक कार्यक्रम समापन कय देला उपरान्त विश्राम लेल चलि गेल छलाह, लेकिन जखन ई वेस्टर्न म्युजिक ओ हार्डकोर बीट्स हुनका हृदयगति केँ चुनौती देबय लगलनि तखन ओहो सब काते-करोटे कुर्सी आदि लगाकय कलियुगक लीला सब देखय लगलाह। ई यथार्थ स्थिति छैक। हमरा अपन गाम मे दुर्गा पूजाक भसाउन दिन सेहो मोन पड़ैत अछि। युवारूप मे हम स्वयं एकटा नया चीज शुरू केने रही – लय पर ‘जयकारा’ – जय-हो-जय-हो, दुर्गा मैया-जय हो जय हो, लक्ष्मी मैया – जय हो जय हो, आदि करी आ युवा सब खूब मस्त भऽ कय संग दियए। बच्चा सब सेहो संग मे खूब गाबय। ई सिलसिला लगभग १० वर्ष धरि खूब चलल। जेनरेशन २ सेहो एकरा १-२ वर्ष तक चलेलक। लेकिन ता धरि ई ‘डीजे कल्चर’ केर प्रवेश भऽ गेलैक त सादासादी केँ के पूछैत अछि!! तेकर बाद तऽ चालू भऽ ‘रात दिया जलाके पिया क्या-क्या किया’। ई सारा बात पर केकरो कोनो नियंत्रण नहि, हमहुँ विवाद सँ बचय चाहैत छी आ केकरो स्वतंत्रता पर अंकुश लगेनाय उचित नहि मानि अपन प्रतिष्ठाक रक्षा अपने करय चाहैत छी, चुप रहलहुँ, चुप छी, चुप रहब। आर, यैह भोगल अनुभवक आधार पर हम रानी झा द्वारा अपन रोटीक जोगार केर विरोध कदापि नहि कय सकब, प्रवीण सोनू संग बहुत बात भेल काल्हि एहि मादेः
 
प्रवीण सोनूः Hiiii
हमः बाय
जे हमरा कहय हाय
ओकरा हम कही बाय
जे कहय जय मिथिला
ओकरा कही जय जानकी
 
प्रवीण सोनूः सर, जय मिथिला! हम सब तरहक कार्यक्रम करैत छी। काल्हि हमर आर्केस्ट्रा कार्यक्रम छल। सर, हमरा आयोजक आ व्यवस्थापक जे कहैत छथि से करय पड़ैत अछि।
 
हमः ठीक बात! हम बुझि सकैत छी।
 
प्रवीण सोनूः और हमर पहिचान पहिने आर्केस्ट्रा सँ भेल अछि। सर, हम मिथिला के लेल काज करब ओहि बारे मे हम सोचैत छी। अहाँक नजरि सँ कोनो भी प्रोग्राम दूर नहि अछि। अहाँ सँ बात करय के छल मुदा एखन तक अभिलाषी छी। हम अपन गलती के सुधारय के धीरे-धीरे कोशिश कय रहल छी। बाकी अहाँक आशीर्वाद।
 
हमः खूब आशीर्वाद!
 
प्रवीण सोनूः सर, हम ओतय कि कय सकैत छलहुँ?
 
(जाहि कार्यक्रम पर हम हुनका ई लिखने रही जे स्टेज पर सँ गायिका आ उद्घोषणाक माध्यम सँ पब्लिक एन्टरटेनमेन्ट लेल शेरो-शायरी आ अश्लीलता भरल गोटेक बात सँ हमहुँ लजा गेल रही… ताहि सन्दर्भ मे ओ पुछलनि।)
 
हमः कहब बाद मे।
 
प्रवीण सोनूः कि सर? अपने सऽ दूर अछि कुनू भी शो? सर, हमरा सऽ कतय गलती भेल से बता दियऽ। आगाँ सऽ हम सुधार करब।
 
हमः कोनो गलती नहि भेल।
 
प्रवीण सोनूः सर, गलती तऽ भेल होयत। एखन हम सीख रहल छी। अहाँक सुझाव हमरा लेल वरदान होयत।
 
हमः हम देब सुझाव, कनिकाल मे।
 
प्रवीण सोनूः बिल्कुल।
 
एहि वार्ताक बाद हम किछु सुझाव देबाक लेल सोचि रहल छी। लेकिन मिथिलाक पब्लिक, ओकर डिमान्ड आ ताहि अनुसारे सप्लाइ केँ अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त देखैत छी त फेर गुम भऽ जाइत छी। आशा करैत छी जे पाठक लोकनि अवश्य किछु मदति करता। अपने सब सँ निवेदन जे मंच सँ फूहरता परसबाक आ मैथिली कार्यक्रमक, मैथिली गीत-संगीत-नृत्य-नाटक-मनोरंजन-फिल्म आदि केँ प्रवर्धन लेल हिन्दी, भोजपुरी आदिक अतिक्रमण युग मे कि सुझाव देबनि। प्लीज….!
 
हरिः हरः!!