मैथिली गीत मे अश्लीलता पर सामाजिक संजाल मे उठल विवादः परम्परावाद वर्सेस बाजारवाद

१९ सितम्बर, २०१८. मैथिली जिन्दाबाद!!

रानी झा द्वारा गायल गेल गीतक स्नैपशौट

मैथिली भाषाक मधुरता मे एक विलक्षण आ अनुपम आधार अछि हर मौसम, हर क्षण आ हरेक अवसर लेल विशिष्ट गायन परम्परा जे मिथिलाक सभ्यता केर पूर्णता, प्राचीनता आ पारम्परिकताक मान्यता पर चलबाक प्रतिबद्धता केर परिचायक मानल जाइछ। लोकगीत सँ जीवनक सिद्धान्त धरि प्रतिपादित होयबाक अनेकानेक शोध कार्य तक एहि भूभाग मे संभव भऽ सकल। ताहि ठाम कलियुगी वातावरण आ बाजारवाद केर नग्नता, अश्लीलता आ खुल्लापन आइ बेतरतीब ढंग सँ अपन बाजार विस्तार कय रहल अछि ई कहय मे आ मानय मे कोनो अतिश्योक्ति नहि। गाम-गाम आ ठाम-ठाम पर भोजपुरी फूहर गीत आ डीजे धुन पर अश्लील गीत मे गोटेक खास प्रकृतिक युवा मैथिल समाज कतहु थिरकैत, कुदैत आ नचैग-गबैत देखा जाइत अछि। एक तरफ दुर्गाजीक भसाउन होमय काल मे परम्परा अनुसार ‘समदाउन’ केर गान होइत रहैत अछि, लोक मे भगवतीक विदाईक समय होयबाक कारण एकटा उदासीक माहौल रहैत अछि, परञ्च एहि सब सँ बेखबर वर्तमान मिथिलाक किछु अति-उत्साही युवातुर, अपसंस्कृति केर पोषक तत्त्व सब अपनहि उन्मादी जोश मे डीजे केर धुन आ तरह-तरह केर धुम-धड़क्का गीत बजाकय ओहि पर तेना नचैत रहैत अछि जे बस आजुक दिन ओकर जीवनक अन्तिम दिन रहैक, फेर काल्हि हेतैक कि नहि से ओकरा नहि पता छैक, बस आइये जतेक नाच-गान करक छैक से ओ करत आ कियो ओकरा नहिये दबाइर सकैत अछि, नहि हँटा सकैत अछि, उच्छृंखलताक पराकाष्ठा मे देखल जाइछ वैह मिथिला समाज जेकर सभ्यताक गान सारा विश्व समुदाय अपन-अपन ग्रंथ आ शोधालेख सब मे करैत रहल अछि।

यैह मुद्दा पर एखन कोनो रानी झा नाम्ना गायिका केर गीत ‘खोलू खोलू यौ राजाजी बेलाउज के बटन’ काफी चर्चा मे आयल अछि। सामाजिक संजाल पर सक्रिय एन्टी अपसंस्कृति समूह केर गोटेक युवा द्वारा एहि तरहक गीत आ वीभत्स नाच जाहि मे खुलेआम नंगापन आ कामूकताक प्रदर्शन कयल गेल अछि, तेकर विरोध कय रहल छथि। ओत्तहि किछु युवा समूह जे ‘डीजे कल्चर’ आ ‘आधुनिक बाजारवाद’ केर सिद्धान्त केँ मानैत छथि, ओ ओहि गीतक समर्थन मे उतरल अछि। एक दिश एन्टी अपसंस्कृति केर युवाक तर्क छैक जे एहि तरहक गीत सँ समाज पर गलत असर पड़ि रहल अछि, बेटी-बहिन आ महिलाक गलत तस्वीर मानसपटल मे दुष्प्रचारित होइत अछि, ओत्तहि समर्थक वर्गक कहब छैक जे यदि मिथिला मे भोजपुरी, हिन्दी आ आन भाषाक अश्लील गीत बाजार पर अधिपत्य जमा लैत अछि आर तेकर विरोध एहि ठामक आम समाज नहि कय पबैत अछि, कथित एन्टी अपसंस्कृति समूह ओकर विरोध यथार्थ धरातल पर नहि कय सकल, तखन आब मैथिली मे सेहो जँ एहि तरहक धुरखेल शुरू भेल आ मैथिलीक कलाकार केँ एहि तरहें रोजी-रोटी भेटि रहल अछि, श्रोता-दर्शक आदि एहि सब तरहक आधुनिक डीजे कल्चर मे भेटि रहलैक अछि, तँ एकर विरोध आ एहि तरहक गीत गेनिहार गायक, गीतकार वा कलाकार केर विरोधक बात अपने-आप मे गलत अछि। विवाद चरम पर एखन नहि पहुँचल अछि। एखन विवाद शुरुए भेल बुझू। एन्टी अपसंस्कृति वर्सेस मोडर्न युग मोडर्न फैशन मे मिथिला समाज एखन बहस शुरुए केलक अछि।

मैथिली भाषाक हितचिन्तक लोकनि सोशल मीडिया मे एहि बहस मे एन्टी अपसंस्कृति समूह केर संग दैत देखाइत अछि, जखन कि यथार्थ धरातल सँ जुड़ल यथार्थताक माननिहार आ समाज केर लोक मे बहुल्यजनक डिमान्ड केर संग अर्थशास्त्रक सिद्धान्त आवश्यकता, माँग आ आपूर्ति अनुरूप उत्पादकता केँ बढावा देनिहार लेल मैथिली गीत मे अश्लीलता सँ अन्य भाषाक अतिक्रमण कमजोर पड़बाक तर्क देखल जा रहल अछि। हर हाल मे मैथिलीक बाजार बढबाक संकेत तऽ अछि, लेकिन उन्नतिक बदला अवनतिक बात चिन्ताजनक सेहो छैक एकरा नहि नकारल जा सकैत छैक। समग्रता मे मैथिली भाषा-साहित्य, कला, रंगकर्म, गीत-संगीत आदि मे विदेशी धुन आ शैलीक नकल जतय चरम पर देखल जाइछ, जतय पैरोडी गीत बिना मैथिलीक मौलिक गीत सुननिहार श्रोता तक नहि, एतय तक जे बारीक पटुआ तीत जेकाँ अपन भाषा आ परम्परा सँ लोक अपने दूर जा रहल समय मे – ई विवाद केर पक्ष-विपक्ष कोन सही, कोन गलत ई कहब मोस्किल लागि रहल अछि। ई सच छैक, सम्भ्रान्त वर्गक लोक, सुसंस्कृत समाज आ बुद्धिजीवी वर्ग मे मौलिकता प्रति रुचि रहत; ओत्तहि पिछड़ा आ अल्प-साक्षर वर्ग मे आधुनिकताक लहैर हावी रहत। अतः समाजक विविधता मे मैथिली गीत-संगीतक विविधता केँ यथार्थ माँग अनुसार समर्थन देबय मे कोनो हर्ज नहि। एहि अपसंस्कृति सँ बचेबाक लेल जनजागरण केर पैघ जरूरत अछि, जाहि मे सोशल मीडिया सँ उठायल विवाद नोइसो बरोबरि काज करत ई कहब संभव नहि अछि। एहि तरहक विवाद सब चलैत रहबाक चाही, विकासशील समाजक यैह पहिचान थिक, बेर एला पर जमीन पर उपस्थित बहुल्यजन आ ओकर माँग मे अश्लीलता, नग्नता, फूहरता आ यूट्युब पर अत्यधिक हिट्स आदिक स्थिति मे परिवर्तन तखनहि आओत।

सच त ई जरूर छैक जे कोनो सम्भ्रान्त लोक अपन घर-परिवार मे ई अश्लील गीत सब एकदम नहि सुनत… जँ ओकर बात पड़ोसक लोक मानत तऽ ओ कतहु एहेन गलत अपसंस्कृति केँ स्वीकार तक नहि करत। लेकिन यथार्थ अवस्था – वर्तमान मिथिला समाज आ ताहि मे रहनिहार करोड़ों मैथिल जनसमुदाय केर माँग कि छैक ई स्वतः गामक लाउडस्पीकर आ बड़का-बड़का साउन्ड बौक्स सँ आबि रहल आवाज अपने-आप परिचय दय दैत छैक। ८०% लोक आइ नग्नता, अश्लीलता, फूहरता, आदि सँ भरल गीत-संगीत केँ सुनैत आ दोसरो अपन माय-बहिन-भाउज-बेटी-पोती सहित छोट-पैघ सब कियो खुलेआम सुनैत अछि…. कोनो लाज-धाख आ लेहाज हमरा नहि कतहु देखायल कथित नीक लोक कान मुनि लैत अछि, आँखि मुनि लैत अछि, मुंह चुप कय केँ अपना घरक भीतर मे नुका जाइत अछि। बाजारवाद हावी अछि वर्तमान समाज पर। गायक-गायिका आ कि गीतकार द्वारा यैह सब दिशा मे बेसी सोचल जाइत अछि जतय दर्शक बेसी भेटैछ।
 
मैथिली एहि सब मे पाछू छल। लेकिन आब अहु भाषा मे ई सब कुकाज शुरू भऽ चुकल अछि। आब मैथिली सेहो जल्दिये बाभन-काइथक भाषा सँ ऊपर जनसामान्य केर भाषा बनि जायत, कारण आब ईहो नंगा नाचय लेल अपन पियाजी सँ सरेआम बेलाउजक बटन खोलय लेल आह्वान कय रहल अछि। आब ब्राह्मणवाद केर तीर चलौनिहार बड़का प्रगतिशाली स्तम्भकार सब केँ नीक अवसर भेटत, ओ खुलिकय कहि सकता जे नहि आब मैथिली ‘जनसामान्य’ केर भाषा बनि गेल। कारण मैथिलीक गीत चमरटोली, दुसधटोली, मुशहरी, मियाँ टोल, आदि सब तैर खूब बजैत देखैत छी। कतहु ‘हाथ घोंसियाबय दे….’ बाजि रहल अछि तऽ कतहु ‘गोरी तोहर चोली बहुत हौट छौ’ बाजि रहल अछि… विद्यापतिक ‘के पतिया लय जायत रे मोरा प्रियतम पास’ सुननिहार सब नुका गेल अछि आब। समझदार लोक लेल इशारा काफी अछि। समाजक अस्मिता केँ रक्षा करबाक लेल केकरा आइ फुर्सत छैक? फुरसतिये फेसबुकिया अभियान सँ परिवर्तन कतय धरि आओत? सोचय जाउ।

हरिः हरः!!