मातृभाषा, मातृभूमि ओ मातृअस्मिताक संरक्षण-संवर्धन तथा प्रवर्धनक सर्वश्रेष्ठ सिपाही

विशिष्ट व्यक्तित्व आ विद्वानक संस्मरण मे ‘डा. जयकान्त मिश्र’

सन्दर्भः डा. महेन्द्र नारायण राम ‘नीलकमल’ द्वारा डा. जयकान्त मिश्रक बारे संस्मरण आलेख

ई सब कहेता देवता, याद करत भविष्यक पीढी

भविष्यक पीढी केँ मैथिली भाषा-साहित्यक संग मैथिल पहिचान केँ बचौनिहार गोटेक व्यक्तित्व साक्षात् देवता समान स्मृति मे औतनि, तेहने गोटेक व्यक्तित्व बीच एकटा प्रखर सूर्य भेलाह अछि डा. जयकान्त मिश्र। डा. मिश्र केर आजीवन योगदान पर मिथिला सांस्कृतिक परिषद् कोलकाता एकटा काफी महत्वपूर्ण कृति “जयकान्त मिश्र समज्ञा” केर प्रकाशन २० नवम्बर, २०१६ – जयकांत मिश्र जयन्ती दिवस केँ केलक अछि। एकर संपादन प्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीय रामलोचन ठाकुर एवं नवीन चौधरी द्वारा भेल अछि।
 
आइ एहि पोथी मे संकलित एक रचना “जे हम जनलौं….” शीर्षक मे रचनाकार लोकसाहित्यक पुरोधा आदरणीय श्री महेन्द्र नारायण राम ‘नीलकमल’ केर पढल अछि। पढैत देरी रहल नहि गेल त अपन आजुक लेख मे अपना संग-संग नव पीढी (नव युग) आ आगाँक आबयवला पीढी लेल युनीकोड भाषा मे किछु उपयोगी बात लिखि रहल छी। महेन्द्र नारायण रामजी अपना संग डा. जयकान्त मिश्र केर भेंटघांट आ वार्ता केँ बड़ा उपयोगी ढंग सँ रखलनि अछि। डा. जयकान्त मिश्र द्वारा दायर याचिका जाहि मे मैथिलीक माध्यम सँ प्राथमिक शिक्षाक मौलिक अधिकार प्राप्ति लेल बिहार सरकार विरुद्ध पटना उच्च न्यायालय मे दायर कएने छलाह ताहि सन्दर्भ मे बतेलनि अछि। ताहि दिन स्वयं महेन्द्र नारायण रामजी तत्कालीन बिहारक मानव संसाधन विकास विभागक माध्यमिक ओ उच्च शिक्षा विभाग मंत्री श्री राम लखन राम रमणजीक निजी सचिव रहथि। आर डा. जयकान्त मिश्र संग अपन भेंट मंत्रीजीक चेम्बर – पटना सचिवालय मे मंत्रीजी संग भेंटक प्रकरण पर लिखने छथि। मंत्रीजी केँ अपन बात कहिकय घुरैत काल हिनका संग सेहो अपन बात रखलनि –
 
– मैथिलीक पढाइ प्राथमिक शिक्षा मे होअ से कमिश्नर के मौखिक निर्देश देल गेलनि अछि। संयोग छल ओ चैम्बर मे बैसल छलाह।
 
– जी श्रीमान्!
 
– मैथिली माध्यम सँ प्राथमिक शिक्षा, मैथिलीक विद्यालय स्तरीय पोथी सरकारक माध्यम सँ प्रकाशन, मैथिली शिक्षकक नियुक्ति, प्रशिक्षण आदि कतिपय विषय पर आधारित एक रिट याचिका सं. ७५०५ माननीय पटना उच्च न्यायालय मे दायर कऽ देलियनि अछि। आ मंत्रीजीकेँ अवगत करा देलियनि अछि। अहाँ कनेक मोन पाड़ैत रहबनि।
 
– जी श्रीमान् ई हमरो कर्तव्य थिक।
 
– से एकटा काज आओर मंत्रीजी के कहलियनि अछि। महेन्द्रजीकेँ निजी सचिव रखलहुँ से नीक काज केलहुँ। ओ मैथिली सेवी छथि। से अहूँ छी। इहो देखैत रहबैक जे हुनक भावना केँ ठेस नहि पहुँचैक।
 
पटना स्थित सचिवालय मे डा. मिश्र केर व्यक्तित्वक वर्णन करैत श्री रामजी लिखलनि अछि जे ओ धोती, कुर्त्ता, दोपट्टा आ पाग संग हाथ मे छड़ी लेने सरल स्वभाव वला लोक छलाह।
 
हमरा एकटा आरो स्मृतिक उल्लेख जहिनाक तहिना करबाक इच्छा भऽ रहल अछि। कनी गौर करू। डा. मिश्र केर जमाना मे सेहो ई समस्या रहल जे मैथिली भाषा मे बेसी लेखनकार्य अगड़ा जाति-समुदायक रहल आर डा. महेन्द्र नारायण राम संग अपन पहिले भेंट मे ओ ई बात स्वयं डा. राम सँ व्यक्त करैत हुनका खूब आशीर्वाद देने छथि –
 
डा. महेन्द्र नारायण राम केँ पता चलल छलनि जे जयकान्त बाबू अपन गाम गजहारा आयल छथि, तैँ भेंट-दर्शन लेल आतुर सर्जक-हृदयक आबेस सँ डा. राम साइकिल चढि परोरियाही गाछी आ तेकर डेराओन झमटगर गाछी आदि टपैत सनसनायल हुनकर पर पहुँचि गेल छलाह। गलीक कात हुनकर साधारण सन घर पर पहुँचलाक बाद ओ बाहर निकलल रहथिन। प्रणाम पाती उपरान्त –
 
– बैसू। केम्हर एलहुँ?
 
– अपनेक दर्शन करऽ लेल आ आशीर्वाद लेबऽ लेल। जनतब भेल अपने गाम आयल छी। दौड़ि गेलौं, श्रीमान्।
 
– अहाँक कि नाम?
 
– महेन्द्र नारायण राम!
 
– ओ, अहीं महेन्द्र नारायण राम छी? अहाँके हम जनैत छी। अहाँक पोथी हमरा भेटल अछि। अहाँ नीक लिखैत छी। हमरा कोना जनैत छी?
 
– श्रीमान् १९८२ मे एम.ए.क छात्र पटना विश्वविद्यालयक रही। श्रद्धेय गुरुवर आनंद बाबू विभागाध्यक्ष छलाह। पता चलल रहय जे अपने आयल छी, कोनो बैसार मे। अपने इलाहाबाद सँ आयल छी। मस्तिष्क मे अपने हैट पैंट शूटादि मे होयब। गजहरा उमेश बाबूक पुत्र। अंग्रेजीक विद्वान् से बेसी रूपे छाप पड़ल छल। एहि सँ बेसी नहि। मुदा से अपने सँ भेंट नहि भऽ सकल छल। अपना केँ हम ओहि लायक नहि बुझने रही। हम सभठाम धकधकाइत रही, श्रीमान्।
 
(बगल मे बैसल गजहराक एक विद्वान् केँ बुझावय लगलाह जयकान्त बाबू)
 
– मैथिली के आब क्यो मारि नहि सकैत अछि। एहि दिन लेल हम संघर्ष करैत रहलहुँ अछि। खुटौना घर छनि। डा. झम्मन रामक सुपुत्र। हिनक पोथी जे प्रकाशित अछि से बड़ अनुसंधानपरक से नीक। पत्र पत्रिका आ सेमिनार-गोष्ठी आन्दोलन आदि मे सेहो बढि-चढिकए भाग लैत छथि। हम हिनका सँ बड़ऽ प्रभावित भेलहुँ अछि। गाम घरक वस्तु के खोजि समेटि रहल छथि।
 
(तदोपरान्त महेन्द्र नारायण रामजी सँ मुखातिब भऽ)
 
– जाउ महेन्द्रजी! मोन सँ आशीर्वाद दैत छी। अहाँ खूब लिखू। कलम नहि रोकब।
 
एतेक कहैत घर सँ प्रसाद मंगा खुऔलनि आर हमरा समस्त मैथिलीभाषी लेल आइ एकटा एहेन महान् लेखक केँ आरो ऊर्जान्वित कय के समर्पित कय देने छथि जिनका पर हम सब क्यो गर्व करैत छी।
 
कतेको सभादि मे आइ-काल्हि एकटा फैशन चलि गेल छैक। मैथिलीक किछु कथित उच्च जातिक विद्वान् वा अभियानी वा कवि वा नेताजी मंच सँ ताली लूटय लेल बेर-बेर ई बात बजैत छथि जे ‘मैथिलीक अभियान मे, साहित्य मे, राजनीति मे, वा मंच पर, इत्यादि मे जा धरि गैर-बाभन-काइथ नहि औता तऽ मैथिलीक कल्याण संभव नहि होयत।’ ई त शाश्वत सत्य थिकैक जे कोनो काज मे जा धरि सामूहिक योगदान, सर्ववर्गीय योगदान वा चिन्तन-चिन्तादि नहि कयल जायत, कल्याण संभव नहि अछि। हम त ईहो कहब जे मनुष्य जीवन मे पर्यन्त आर जाहि तरहक सामाजिक अवधारणा मे हमरा लोकनि अपन जीवनयापन चला रहल छी ताहू मे आइ या पहिने या आबयवला कोनो समयविन्दु मे कथमपि एकल जाति-समुदायक वर्चश्व मे जीवनचक्र संभव नहि होयत। रहल बात आगू बढबाक, आगू पहुँच बढेबाक – ताहि लेल डा. झम्मन राम सँ होइत डा. महेन्द्र नारायण राम आ आगाँक पीढी मे सेहो ओहने शिक्षा, संस्कार आ सोच होयब आवश्यक अछि। डा. राम केँ कियो आंगूर पकड़िकय मंच पर चढेलकनि तखन आगू एलखिन से सच नहि छैक। ई हूबा स्वयं हरेक समुदाय आ व्यक्ति मे हेबाक चाही जे अपन शिक्षा, संस्कार आ सोच केँ एतेक सामर्थ्यवान् बनाउ जे स्वयं स्वामित्व ग्रहण करबाक लेल अपन अधिकार जता सकब। आजुक स्वार्थभरल संसार मे एक त जातीय बंधन या पहिचान जातीय संस्कार जीबित नहि रहि जेबाक कारण केकरो कोनो मतलब तक नहि रहि गेल छैक, ताहि पर सँ डा. जयकान्त मिश्र या तेहेन प्रभावशाली कियो स्वयं जमीन पर काज केनिहार नहि, तैँ स्वयं स्फुरणाक आवश्यकता बेसी छैक। मंच सँ ताली लूटनिहार केँ स्वयं एहि दिशा मे डेग उठेलाक बादे ई नैतिक अधिकार भेटत जे अहाँ दोसर सँ ई अपेक्षा करी।
 
लौटैत छी डा. जयकान्त मिश्र पर डा. राम द्वारा राखल अत्यन्त महत्वपूर्ण लेखनीक अन्तिम भाग पर, जे जनतब हमरा सहित समस्त नवतुरिया लेल विशेष प्रेरणादायक अछिः
 
मैथिलीक मूर्धन्य विद्वान्, मैथिलीक अप्रतिम आन्दोलनकारी, मिथिला राज्य निर्माणक स्वप्नद्रष्टा आओर अंग्रेजीक अधिष्ठापित अध्यापक छलाह डा. जयकान्त मिश्र गजहरा (मधुबनी) निवासी – महामहोपाध्याय परिवारक एक महान् सपुत जे अपन मातृभाषा, मातृभूमि आ मातृअस्मिता लेल सदैव चिन्तनशील रहिकय व्यवहार मे पर्यन्त एहि सब मूल्य ओ मान्यता केँ स्थापित करैत रहलाह। अपन जीवनक उषाकाल सँ अस्ताँचलक समय धरि ओ सक्रिय रहलाह – आर एहेन सक्रियता कोनो महापुरुष सँ मात्र संभव होएत अछि। कतय १९४३ आ कतय २००९ – ६६ वर्षक कार्यकाल ओ अपन मातृभाषा आ मातृभूमि लेल सक्रिय रहिकय सेवा देलनि। देश आ विश्व केर अनेकों प्रतिष्ठित मंच पर मैथिलीक झंडा फहरौलनि। अंग्रेजीक प्रसिद्ध प्राध्यापक रहितो ओ लड़ाई मैथिली भाषाक लड़लनि। भारतीय गणराज्य मे मिथिला राज्य केर स्थापना हो तेकर प्रबल समर्थक छलाह। यथार्थतः आइयो बिना राज्य निर्माण भेने कतेको सरोकार पाछाँ छूटल अछि। विकास आ प्रगति गौण अछि। आम जनमानस मे अपन निजत्वक रक्षाक आत्मबोध तक हेरा गेल अछि। राजनीतिक विद्रुपता केहेन जे लोक जाति आ धर्मक नाम पर विखंडित अवस्था मे अछि। नामक पाछाँक टाइटिल सँ स्नेह आ घृणा आदि उत्पन्न होयबाक विचित्र मनोदशा चारूकात नंगटे नाचि रहल अछि। कियो जन्म लियअ आ जनककालीन मिथिलाक सामाजिक समरसता – वेदानुसार नियन्त्रित वर्णव्यवस्था आ आपसी सौहार्द्र कायम हो, यैह शुभकामनाक संग, लेख केँ विराम दैत रचनाकार डा. राम आ स्मृति कयल स्रष्टा डा. मिश्र दुनू केँ प्रणाम करैत छी।
 
हरिः हरः!!