मैथिलीक महत्‌त्रयः डा. सुभद्र झा

पोथी विमर्श

– डा. रामदेव झा रचित ‘डा. सुभद्र झा’ – साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित

चिन्हू मैथिली भाषाक महत्‌त्रय डा. सुभद्र झा केँ

मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मे खास रूप सँ अवसर भेटैत अछि अनुभवी साहित्यकार, कथाकार, उपन्यासकार, कवि, लेखक आदि सँ भेंट करैत हुनका सब सँ विशेष किछु सिखबाक…. यैह भेल एहि बेर दिल्ली मे फेर। आदरणीय कथाकार अशोक सर साहित्य अकादमीक बुक स्टाल पर नजरि पड़ि गेलाह। ओहो संभवतः अपना लेल किछु पठनीय पोथी कीनय मे व्यस्त छलाह। धीरे सऽ हमहुँ ओतय गेलहुँ आ कहलियैन अपन रुचि, पूछलियन्हि जे अपने त कहि सकैत छी जे एहि तरहक विषय पर कोन पोथी सब मैथिली मे भेटत। आरो, किछु पोथी जे हमरा सनक लोक केँ पढबाक चाही सेहो सुझाव देल जाउ। ओ तुरन्त किछु पोथी देखौलनि। हम आँखि मुनिकय ओ सब चुनैत गेलहुँ। हमर रुचि विशेष रूप सँ शोध ग्रन्थ आ यथार्थ तथ्यांक सब राखयवला पोथीपर छल। मिथिलाक आर्थिक संरचना, बाढि सँ विभिन्न वर्ष भेल नोक्सानी आ सरकारी राहत सँ पीडित वर्ग केँ पुनर्वास, कोसी बाँध परियोजना, राजनीतिक हालात, इत्यादि हमर रुचिक विषय थिक। कथाकार अशोक सर जे-जे पोथी कहैत गेलाह, से सब लेलहुँ। अन्त मे ओ बायोग्राफी केर किछु पोथी देखौलनि। अपनहि हाथ सँ ‘रामदेव झा कृत सुभद्र झा’ पोथी लय केँ कहलनि जे हम चाहब कि अहाँ ई पोथी जरूर पढी। अपन मिथिलाक एक महान व्यक्तित्व भेल छथि डा. सुभद्र झा आर रामदेव बाबूक उत्कृष्ट काज मे एकरो मानल जाइत अछि। सहर्ष लेल। पढब शुरू केलहुँ आइये भोर मे। मोन गदगद अछि। वास्तव मे डा. सुभद्र झा केर जीवनी बहुत रास प्रेरणा प्रदान कय रहल अछि। तहिना रामदेव बाबूक बेहतरीन लेखनशैली आनन्द-आनन्द केने अछि। उपारम्भ आ जीवन वृत्त पढिकय फेसबुक पर एलहुँ आ ई लिखय सँ अपना केँ नहि रोकि पाबि रहल छी जे डा. सुभद्र बाबू लेल रामदेव बाबू प्रयोग कयलनि अछिः
 
“संस्कृत व्याकरण-परम्परामे पाणिनी, कात्यायन एवं पतंजलि मुनित्रय वा महत्‌त्रय मानल जाइत छथि, तद्वते मैथिलीयो भाषाक व्यवस्थित व्याकरण देनिहार तथा एकर स्वतन्त्र भाषात्वकेँ निर्विवाद रूपमे स्थापित कयनिहार तीन गोट मनीषी सर्वथा अविस्मरणीय छथि। मैथिली व्याकरणक महत्‌त्रयमे पहिल छथि जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन जे उनैसम शताब्दीक अन्तिम चरणमे सर्वप्रथम मैथिलीक व्याकरण (मैथिली ग्रामर) तथा मैथिली शब्द-संग्रह (मैथिली वोकाबुलरी)क रचना कऽ मैथिलीक स्वतन्त्र भाषात्व स्थापित कऽ देलनि। ओ सिद्ध कऽ देलनि जे मैथिली सर्वथा पूर्ण विकसित साहित्यिक परम्परासँ समृद्ध स्वतन्त्र भाषा थिक।
 
मैथिली भाषाकेँ शास्त्रीय गरिमा प्रदान कयनिहार दोसर मनीषी भेलाह महावैयाकरण पं. दीनबन्धुझा जे संस्कृत व्याकरणक सूत्र-पद्धतिक अनुसरण करैत मिथिला-भाषा-विद्योतन नामक ग्रन्थक रचना कयलनि। ओही क्रममे मिथिला भाषा कोश तथा मिथिला भाषा धातुपाठ ग्रन्थक रचना कयलनि।
 
मैथिली व्याकरणक महत्‌त्रयमे तेसर मनीषी थिकाह डा. सुभद्र झा। ओ मैथिलीक समुचित अधिकार प्राप्तिक हेतु विभिन्न स्तरपर चलैत आन्दोलन ओ विरोध, दुनूकेँ देखलनि। मैथिली भाषाक अपन स्वतन्त्र व्याकरण, समृद्ध शब्द-सम्पदा आ कतोक शताब्दीसँ चलि अबैत जीवन्त साहित्य-परम्पराक अछैत, मैथिली एकटा स्वतन्त्र भाषा थिक – ई बात स्वयंसिद्ध रहनहुँ एकरा एकटा बोलीमात्र अथवा हिन्दीक बोली सिद्ध करबाक निरन्तर कुचक्र चलयबाक प्रयास द्वारा एकर विकास ओ समुचित अधिकार प्राप्तिसँ वंचित कऽ सर्वतोभावेन विकासक पथकेँ अवरुद्ध कयल जा रहल छल। एहनमे विश्वमान्य भाषाविज्ञानक सिद्धान्तक आधारपर मैथिलीक स्वरूप-विवेचन ओ स्वतन्त्र भाषात्वकेँ स्थापित करबाक गम्भीर प्रयोजन आबि गेल छल। बीसम शताब्दीक चारिम दशकमे युवा अध्येता सुभद्र झा एहि उत्तरदायित्वकेँ स्वीकार कयलनि तथा महान् भाषाशास्त्री डा. सुनीति कुमार चटर्जीक मार्गदर्शनमे अत्यन्त कठिन परिश्रमसँ मैथिली भाषाक प्राचीन, मध्य ओ आधुनिक कालीन भाषिक स्वरूपक गम्भीर अध्ययन कऽ निष्कर्ष रूपमे दि फार्मेशन अफ दि मैथिली लैंग्वेज सदृश वृहद् ग्रन्थक रचना कऽ स्वतन्त्र भाषाक रूपमे मैथिलीक गरिमाकेँ देश-विदेशमे प्रतिष्ठापित कऽ देलनि।
 
डा. सुभद्र झा वैदिक, संस्कृत ओ प्राकृत वाङ्मयक विशेषज्ञ, बहुभाषाविद् तथा भाषाशास्त्रीक रूपमे अत्यन्त प्रतिष्ठित रहलाह। प्राचीन भारतीय वाङ्मयक क्षेत्रमे हुनक वैदुष्यक अवदान अत्यन्त गरिष्ठ रहलनि। ताहि संग अपन मातृभाषा मैथिलीक सेहो अनन्य उपासक रहलाह। मैथिलीकेँ बोली, हिन्दीक बोली अथवा आंचलिक भाषा कहनिहारक प्रति सर्वथा आक्रोशित रहनिहार डा. सुभद्र झा ने केवल अपन मातृभाषा मैथिलीक सम्मान ओ गौरवक रक्षार्थ सतत बद्धपरिकर रहैत छलाह अपितु अपन सर्जनात्मक गद्य साहित्यसँ मैथिलीक श्री-समृद्धि-वृद्धिमे सेहो बहुमूल्य योगदान करैत रहलाह। डा. सुभद्र झाक भारतीय विद्यामे जे अवदान रहलनि, मैथिलीक लेल ओ मैथिली साहित्यमे कृतिक रूपमे जे योगदान कयलनि ताहि सभ लऽ कऽ भविष्यमे ओ चिरकाल धरि जीवित एवं चिरस्मरणीय रहताह।”
 
– डा. रामदेव झा
(अपन पोथी डा. सुभद्र झा केर उपारम्भ शीर्षक मे उपरोक्त विचार रखने छथि।)
 
वर्तमान युग मे आबिकय हम मैथिल सन्तान कतेक भाग्यशाली छी जे भारतक संविधान, नेपालक संविधान, विभिन्न प्रान्तक संविधान मे हमरा लोकनिक भाषा सम्मानित ढंग सँ विराजमान अछि। ई अलग बात भेलैक जे आइयो हम सब राज्य द्वारा पोषित कम शोषित बेसी छी, परञ्च स्वाभिमान जाहि-जाहि सपुत मे जागि गेल ओ अपन निजी कमाई केर पैघ हिस्सा अपन भाषा, साहित्य, संस्कृति आ समाज लेल खर्च करैत ‘स्वयंसेवा-स्वसंरक्षण’ केर सिद्धान्त पर अग्रसर अछि। एना हमरा लोकनि सनातनजिवी संस्कृति – सभ्यता ‘मिथिला’ केँ एहि घोर कलिकाल धरि बचौने छी, ई बाँचल रहत युगों-युगों धरि एहि मे हम सब कियो आश्वस्त छी।
 
हरिः हरः!!